Tuesday, 2 January 2018

गुरु गोबिन्द सिंह

"जब-जब होत अरिस्ट अपारा, तब-तब देह धरत अवतारा : गुरु गोविन्द सिंह"
अर्थात जब-जब धर्म का ह्रास होकर अत्याचार, अन्याय, हिंसा और आतंक के कारण मानवता खतरे में होती है तब-तब दुष्टों का नाश एवं सत्य, न्याय और धर्म की रक्षा करने के लिए ईश्वर स्वयं इस भूतल पर अवतरित होते हैं. गीता में भी भगवान् श्री कृष्ण ने यही कहा है.
17 वीं सदी में जब भारत के काफी हिस्से पर मुघलों का शासन था, अपने भाइयों की ह्त्या और बाप को कैद कर औरंगजेब दिल्ली की गद्दी पर बैठ गया था, उस अधर्मी और अत्याचारी के कारण देश की धर्मी जनता का जीना मुस्किल था. लोगो को धर्म छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा था और धर्म न छोड़ने वालों को सताया जा रहा था. महिलाओं की इज्ज़त खतरे में थी.
ऐसे समय में बिहार की राजधानी पटना में गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के यहाँ "गुरु गोबिन्द सिंह जी" का जन्म हुआ. अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से यह 22 दिसंबर सन् 1666 ई. थी. परन्तु उनका जन्मदिन भारतीय कैलेण्डर के अनुसार मनाया जाता है और इसके हिसाब से यह इस बार 2017 में 25- दिसंबर को पड़ रहा है.
औरंगजेब द्वारा गुरु तेग़बहादुरजी को शहीद करने के कारण 9 वर्ष की आयु में "गुरु गोबिन्द सिंह" को गुरु गद्दी पर बैठाया गया. 'गुरु' की गरिमा बनाये रखने के लिए उन्होंने अपना ज्ञान बढ़ाया और संस्कृत, फ़ारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएँ सीखीं. इसके साथ साथ उन्होंने धनुष- बाण, तलवार, भाला आदि चलाने की कला भी सीखी.
गुरु गोबिन्द सिंह ने धर्म, संस्कृति व राष्ट्र की आन-बान और शान के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था. गुरु गोबिन्द सिंह जैसी वीरता और बलिदान इतिहास में कम ही देखने को मिलता है. उन्होंने संकल्प लिया कि - मैं ऐसे योद्धा तैयार करूंगा जो अकेले सवा लाख से टकराने का हौशला रखते होंगे और जो धरती जुल्म का सफाया कर देंगे.
इसके लिए उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की. खालसा का अर्थ है खालिश अर्थात शुद्ध बिचार वाले. उनके आव्हान पर सारे देश से देशभक्त और धर्मवीर लोग उनके शिष्य बनकर उनके द्वारा चलाये खालसा पंथ में शामिल हो गए. उन्होंने तथा उनके शिष्यों ने अधर्मियों को कड़ी टक्कर दी. उनके पुत्र भी धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए.
गुरु गोविन्द सिंह ने मुघलों से अनेकों युद्ध लडे, जिनमे से प्रत्येक युद्ध पर महाकाव्य लिखा जा सकता है. उन्होंने मुट्ठी भर धर्म योद्धाओं के साथ मुघलों की लाखों की संख्या वाली विशाल फ़ौज को कड़ी टक्कर दी. गुरु गोविन्द सिंह एक योद्धा के साथ साथ एक परम विद्वान् भी थे. उन्होंने अनेकों रचनाये भी लिखी जो युगों युगों तक मानव जाति का मार्गदर्शन करती रहेंगे.
गुरु गोबिन्दसिंह की सचखंड गमन 7 अक्तूबर सन् 1708 ई. में नांदेड़, महाराष्ट्र में हुआ था. अपने अंतिम समय उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और उन्हें मर्यादित तथा शुभ आचरण करने, देश से प्रेम करने और दीन-दुखियों की सहायता करने की सीख दी. उन्होंने यह भी कहा कि- अब कोई देहधारी गुरु नहीं होगा और अब 'गुरुग्रन्थ साहिब' ही उनका मार्ग दर्शन करेंगे.
गुरु गोविन्द सिंह के बारे में किसी कवि ने लिखा है ;-
एक से कटाने, सवा लाख शत्रुओं के सिर, गुरु गोबिन्द ने बनाया, पंथ ख़ालसा
पिता और पुत्र सब देश पे शहीद हुए, नहीं रही सुख साधनों की, कभी लालसा
ज़ोरावर - फतेसिंह दीवारों में चुने गए, जग देखता रहा था, क्रूरता का हादसा
चिड़ियों को बाज से लड़ा दिया था, मुग़लों के सर पे जो छा गया था, काल सा

No comments:

Post a Comment