Sunday, 7 January 2018

पेशवा कौन थे ? (भाग -4) : पेशवा नारायणराव / पेशवा रघुनाथ राव

पेशवा माधव राव का अल्पायु में निधन हो जाने के कारण उनके 18 बर्षीय छोटे भाई "नारायणराव" (जन्म 1755 : मृत्यु 1773) को 13 दिसंबर 1772 को ग्यारहवा "पेशवा" घोषित किया गया. उस समय उनका चाचा नारायण राव, (जिसने पेशवा माधवराव को धोखे से निजाम के हाथों गिरफ्तार कराया था) जेल में बंद था.
रघुनाथराव ने अपनी गलती मानते हुए अपनी भाभी और भतीजे से माफी मांग ली. पेशवा नारायण राव और उनकी माता गोपिकाबाई ने "माधव राव" की म्रत्यु के बाद रघुनाथ राव को माफ़ करके रिहा कर दिया. परन्तु उसका यह पश्चाताप मात्र एक दिखावा था. जितना धूर्त वह था उससे भी ज्यादा धूर्त उसकी पत्नी आनंदीबाई थी.
आनंदीबाई अपनी जेठानी से अंदर ही अन्दर बहुत ज्यादा ईर्ष्या भी रखती थी. अपनी पत्नी के प्रोत्साहन से रघुनाथराव ने अपने भतीजे पेशवा "नारायणराव" के खिलाफ षड्यंत्र रचा. हालांकि उसका उद्देश्य पहले केवल पेशवा को बंदी बनाना था लेकिन बाद में अपनी पत्नी के इशारे पर उसने 30 अगस्त 1773 पेशवा नारायण राव की हत्या कर खुद पेशवा बन गया.
इस प्रकार पेशवा नारायण राव का कार्यकाल केवल कुछ माह का ही रहा. पेशवा रघुनाथराव (जन्म 1734 : मृत्यु 1784) साहसी और महत्वाकांक्षी तो था लेकिन इसके साथ ही वह अन्य पूर्ववर्ती पेशवाओं के उलट बहुत ज्यादा स्वार्थी और लालची थी था. वह साथी सेनानायकों के बजाय अपनी पत्नी आनंदीबाई की सलाह पर ज्यादा चलता था.
पेशवा रघुनाथराव को न मराठा सेना पसंद करती थी और न ही राज्य की जनता. इसी बीच पूर्व पेशवा नारायण राव की विधवा ने पुत्र (माधवराव द्वितीय) को जन्म दिया. 18 अप्रेल 1774 को पेशवा माधवराव के बफादार और पेशवा रघुनाथराव को नापसंद करने वाले "नाना फडनवीस" ने एक माह अट्ठारह दिन के बालक को 13वा पेशवा घोषित कर दिया.
आधिकारिक तौर पर पर पेशवाई "पेशवा रघुनाथ राव" के पास थी लेकिन देश की अधिकांश जनता मासूम बालक "माधवराव द्वितीय" को अपना पेशवा मानती थी. अब मराठा शक्ति के दो केंद्र बन गए थे. एक तरफ पेशवा रघुनाथ राव और दुसरी तरफ बालक माधव राव द्वितीय के नाम पर उनके अभिभावक "नाना फडनवीस".
"नाना फडनवीस" (1741-1800) के पूर्वज पेशवा परिवार के बहुत पुराने बफादार थे. नाना फडनवीस का सही नाम "बालाजी जनार्दन भानु" था. उन्होंने भी पेशवा परिवार के प्रति सदैव बफादारी का प्रदर्शन किया. वे पेशवा माधवराव के बहुत ही बफादार थे. (नाना फडनवीस के ऊपर मैं अलग से एक लेख लिखने का प्रयास करूँगा).
अपनी सत्ता को स्थाई बनाने के उद्देश्य से पेशवा रघुनाथराव ने 1775 में अंग्रेजों के साथ सूरत की संधि कर ली. अपनी भाभी और भतीजों को धोखा देने वाले रघुनाथराव को अंग्रेजों ने 1782 में करारा धोखा दिया. अंग्रेजों ने रघुनाथराव सत्ता छीन ली और उसकी पच्चीस हजार मासिक पेंसन लगा दी. अब वह अंग्रेजों की कठपुतली मात्र बनकर रह गया.
पुराने पेशवाओं के बफादार, उसको बैसे ही पसंद नहीं करते थे. अंग्रेजों से संधि करने के कारण उसका रहा सहा सम्मान भी चला गया. इन सब कारणों से 48 साल की आयु में, 1784 में ह्रदय आघात से उसकी म्रत्यु हो गई. उसकी म्रत्यु के बाद पेशवा माधवराव द्वितीय पेशवा हो गए और उनके अभिभावक के रूप में "नाना फडनवीस" काम देखते रहे.
माधवराव द्वितीय (जन्म -1774 : म्रत्यु 1795) अभी पेशवाई को सीख - समझ ही रहे थे कि - एक दिन अचानक महल के छज्जे से गिरकर उनकी म्रत्यु हो गई, उस समय उनकी आयु मात्र 21 बर्ष की थी. मराठा साम्राज्य में एक बार फिर नेतृत्व का संकट पैदा हो गया. ऐसे में फिर "नाना फडनवीस" ने मराठों को एकजुट रखने का काम किया.

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