Tuesday, 2 January 2018

फर्जी इतिहास बनाम सच्ची लोकगाथा

मैं अक्सर भारत के महापुरुषों की गाथाओं को, देश के सामने लाने का काम करता हूँ. यह गाथाएँ ज्यादातर स्थानीय स्तर पर लोग पीढ़ी दर पीढ़ी सुनते आये हैं और इसे सच मानते हैं. लेकिन इन गाथाओं के बारे में सारे देश को जानकारी नहीं है. अपने अपने स्थानीय महापुरुष की बात को लोग सत्य तथा सुदूर के महापुरुष की गाथा को लोग झूठ मानते है.
उदाहरण के लिए - गुरु गोबिन्द सिंह के साहबजादों के बलिदान की गाथा उत्तर भारत में लोग जानते हैं, लचित बोडफुगन की गाथा "असम" के लोग जानते हैं, वीर विक्रमादित्य / रानी दुर्गावती की गाथा मध्यभारत में गाई जाती है, गोकुला जाट / जोगराज सिंह गुर्जर / राम प्यारी गुर्जरी की गाथा हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में सुनाई जाती है,
प्रथ्वीराज चौहान / महाराणा प्रताप की गाथा पश्चिम भारत में प्रशिश्द्ध है. इसी तरह शिवाजी को महाराष्ट्र में, चेनम्मा को कर्नाटक में, छत्रसाल को बुन्देलखंड में, नाककाटी रानी को गढ़वाल में, बन्दा बहादुर को पंजाब में, बहुत ज्यादा महत्त्व दिया जाता है लेकिन शेष भारत उनके नाम और काम से लोग ज्यादा अच्छी तरह से परिचित नहीं है.
कई लोग इन गाथाओं को झूठा और अप्रमाणिक कहते हैं लेकिन हर क्षेत्र का व्यक्ति उसी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही गाथा को ही सच मानता है. इन सभी महापुरुषों की गाथाओं को सारे देश में पहुंचाने का मैंने संकल्प लिया हुआ है और फेसबुक में माध्यम से लोगों तक पहुंचा रहा हूँ. जल्द ही मैं इन लेखों को संकलित कर पुस्तक के रूप में भी लाऊंगा.
अब बात करते हैं इन गाथाओं की प्रामाणिकता की. दरअसल शासकों का इतिहास चाटुकार इतिहासकार लोग लिखते है इसलिए वो अपने जालिम स्वामी को भी महान लिखते है. जबकि हारे हुए देशभक्तों का इतिहास लोक कथाओं के माध्यम से चलता है. इसको ठीक से समझने के लिए मैं 1857 की क्रान्ति के इतिहास का उदाहरण देना चाहूँगा.
1857 की "क्रान्ति" को अंग्रेजों तथा अंग्रेज टाईप भारतीय इतिहासकारों ने "स्वाधीनता संग्राम" नहीं बल्कि "गदर" और "राजद्रोह" लिखा था. जिन स्वाधीनता सेनानियों को आज हम पूजते हैं वो लोग उस इतिहास के अनुसार राजद्रोही / गद्दार थे. लेकिन उन सभी स्वाधीनता सेनानियों की गाथाये लोक कथाओं के माध्य्म से पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहीं.
उन लोक गाथाओं और इधर उधर से सुने हुए किस्सों को संकलित कर और उनको एकीकृत कर "स्वातंत्र्यवीर सावरकर" ने पचास साल बाद 1907 में एक ग्रन्थ लिखा था "1857 प्रथम स्वतंत्र्य समर" जिसको अंग्रेजों और उनके चापलूस बुद्धजीवियों ने झूठ का पुलिंदा कहकर प्रतिबन्ध लगा दिया था और सावरकर को कालापानी की जेल में डाल दिया था.
लेकिन उनका यह ग्रन्थ देश में इतना लोकप्रिय हुआ कि - उस काल के सभी क्रान्तिकारी चोरी छुपे इस ग्रन्थ को छपवाते थे और वितरित करते थे. इस ग्रन्थ के प्रचार ने अंग्रेजों के लिखे इतिहास को झूठा तथा लोक गाथाओं पर आधारित सावरकर के ग्रन्थ को सच्चा साबित कर दिया था. जबकि उन घटनाओं के ऐतिहासिक साक्ष्य भी नहीं थे.
उदाहरण के लिए - रानी झांसी की गाथा को हम जिस तरह से गाते हैं, वो भी इतिहास में उस तरह से दर्ज नहीं है. यह गाथा इतिहास की किताबों से नहीं बल्कि बुंदेलों / हरबोलों द्वारा गाये जाने वाले गीतों से ली गई थी. लेकिन आज हम उस तथाकथित प्रामाणिक इतिहास को नहीं बल्कि लोक गाथाओं के आधार पर लिखे गए इतिहास को सच मानते है.
मंगल पांडे, बहादुर शाह जफ़र, नाना साहब, तात्या टोपे, बाबू कुंवर सिंह, बेगम हजरत महल. अजीमुल्ला, अमरजीत बाठिया, भोंदू सिंह यादव, आदि क्रांतिवीरों के नाम हम किसी इतिहास की टेक्स्टबुक द्वारा नहीं बल्कि लोकगाथाओं पर आधारित "सावरकर" के ग्रन्थ "1857 प्रथम स्वतंत्र्य समर" के माध्यम से ही जान सके हैं.
अब आप ही बताइये कि- आप प्रथम स्वाधीनता संग्राम के इतिहास के लिए अंग्रेजों / राय बहादुरों के तथाकथित प्रामाणिक इतिहास को सच मानते है या लोकगाथाओं पर आधारित सावरकर के इतिहास को? जो काम 1857 की क्रान्ति की असफलता के बाद अंग्रेजों ने किया था वही काम आजादी के बाद कांग्रेस सरकार ने क्रांतिकारियों के साथ किया.
देश आजाद होते ही सत्ता कांग्रेस के हाथ में आ गई और कांग्रेसियों ने गांधी / नेहरु को ही भारत का एकमात्र महापुरुष घोषित कर दिया. देश की जनता को बताया जाने लगा कि - गांधी जी ने बिना खड्ग बिना ढाल के, केवल चरखा चला कर अंग्रेजों को भगा दिया. इसे इतना प्रचारित किया गया कि लोग अन्य क्रांतिकारियों के नाम और काम भूलने लगे.
आज जब देश जागरूक हुआ और क्रांतिकारी घटनाओं पर सवाल उठाने लगा तो कांग्रेसियों ने खुद ही यह गीत "दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल" गाना बंद कर दिया. आज आपको कोई भी कांग्रेसी आजादी की लड़ाई की घटनाओं की चर्चा दिखाई नहीं देगा. क्योंकि इनपर जितनी ज्यादा चर्चा होगी उतनी ही ज्यादा सच्चाई सामने आयेगी.
आज जब हम कांग्रेस के जन्म, कामागाटामारू की घटना, अभिनव भारत / युगांतर की क्रान्तिकारी घटनाओं, चौरीचौरा काण्ड, जैक्सन / वायली / सांडर्स / ओद्वाय्रर का बध, करतार सिंह, खुदीराम बोस, आजाद, भगत सिंह, विस्मिल, लाजपत राय , सुभाष चन्द्र बोस आदि के बलिदान का जिक्र करते हैं तो यह कांग्रेसी उस चर्चा में भाग तक नहीं लेते.
इतिहास में ये महापुरुष भी क्रांतिकारी के रूप में दर्ज नहीं है. इन क्रांतिकारियों की गाथा भी इतिहास की टेक्स्ट बुक्स द्वारा नहीं बल्कि लोकगाथाओं, कहानियों, नाटकों, कविताओं और फिल्मो के द्वारा ही जन-जन तक पहुंची है. आजादी की लड़ाई की कहानी का जो सच कांगेस सरकार द्वारा दबाकर रखा गया था वो आज देश के सामने आ चूका है.
आज मैं भी वही काम कर रहा हूँ. विभिन्न क्षेत्रों के महापुरुषों की गाथाओं का अध्ययन करके उनका अन्य कथाओं से मिलान करके, उन प्राचीन / नवीन महापुरुषों की गाथाओं को आपके सामने लाने का प्रयास कर रहा हूँ. इनको कोई कितना भी झूठ कहे लेकिन इनको मानने वाले क्षेत्र के लोग इनको ही सच मानते हैं और जल्द ही सारा देश भी मानेगा.
कल से पंजाब की महत्त्वपूर्ण गाथाओं पर मेरी पोस्ट्स आएँगी. जिनमे गुरु गोविन्द सिंह के साहबजादों के बलिदान, चमकौर की लड़ाई, मासूम बच्चों को ज़िंदा दीवार में चुनवाये जाने, चप्पड़चिडी की जंग, मोती राम मेहता का बलिदान, आदि का जिक्र होगा. इनको भी कुछ लोग झूठ कहेंगे मगर विशवास रखिये ये सब सच हैं.

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