"इंडियागेट" पर, अंग्रेजों के लिए लड़ने वाले सैनिकों के स्थान पर अब,
कीर्ति चक्र, विजेताओं के नाम लिखे जाने चाहिए.
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जो भी दिल्ली गया होगा या दिल्ली में रहता है, वो दिल्ली के इंडिया गेट पर अवश्य गया होगा. हमें बताया जाता है कि - वो भारत के वीर सैनिको का स्मारक है. हम सभी वहां पर श्रद्धा से सर झुका देते हैं क्योंकि हम अपनी सेना और सैनिकों का दिल से सम्मान करते हैं. हमने शायद कभी ये जानने की कोशिश भी नहीं की वो सैनिक कौन थे और किसके लिए लड़े थे.
दरअसल यह स्मारक, अंग्रेजों ने 1931 में, उन सैनिकों की याद में बनबाया था, जो प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों के लिए लड़े थे. यहाँ पर 13,300 सैनिको के नाम लिखे हैं जिनमे लगभग 4,300 अंग्रेज अफसरों और सैनिको के नाम हैं. भारतीय सैनिक भी वो हैं, जिन्हें अपने अंग्रेज मालिको के इशारे पर, अपने भाइयों पर भी गोली चलाने में हिचक नहीं होती थी.***********************************************************
जो भी दिल्ली गया होगा या दिल्ली में रहता है, वो दिल्ली के इंडिया गेट पर अवश्य गया होगा. हमें बताया जाता है कि - वो भारत के वीर सैनिको का स्मारक है. हम सभी वहां पर श्रद्धा से सर झुका देते हैं क्योंकि हम अपनी सेना और सैनिकों का दिल से सम्मान करते हैं. हमने शायद कभी ये जानने की कोशिश भी नहीं की वो सैनिक कौन थे और किसके लिए लड़े थे.
इसके सामने जो छतरी लगी है इसमें तत्कालीन अंग्रेज राजा जार्ज पंचम की मूर्ति लगी हुई थी. इसके सामने का रास्ता "किंग्स वे - अर्थात राजा का पथ" कहलाता था. जिनका नाम बाद में बदलकर "राजपथ" कर दिया गया. आजादी के दिल्ली की जनता ने मांग की कि - वहां से जार्ज पंचम की मूर्ति को हटाया जाए, मगर नेहरु इसके लिए तैयार नहीं थे.
नेहरु का मानना था कि ऐसा करने से अंग्रेज नाराज हो सकते हैं, क्योंकि 15 अगस्त 1947 में आजादी मिलने के बाबजूद, 15 जनवरी 1949 तक, सेना का नियंत्रण अंग्रेजों के पास ही था. तब दिल्ली के राष्ट्रवादी लोगों ने इसको हटाने के लिए जबरदस्त अभियान चलाया, फिर जाकर नेहरु को मजबूर होकर मूर्ति को "कोरोनेशन पार्क" में स्थानांतरित करना पड़ा.
अर्थात हम वहां जिन जवानो के सम्मान में शीश झुकाते हैं वो न तो भारत की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारी हैं और न ही आजाद भारत के दुश्मन देशों से लड़ने वाले सैनिक. यह स्मारक तो अंग्रेजों की सेना में नौकरी करने वाले और अंग्रेज मालिकों की खातिर, देशभक्त क्रांतिकारियों को मारने वाले, अंग्रेजों के गुलाम सैनिकों का है.
अंग्रेजों की सेवा करने वाले भारतीय मूल के सैनिक भी, कभी क्रांतिकारियों की मदद नही करते थे. ये सैनिक भारतीयों या अन्य देश के क्रांतिकारियों पर, अंग्रेज मालिको के इशारे पर गोलियां चलाया करते थे. देश की आजादी के लिए निस्वार्थ संघर्ष करने वाले आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिकों पर भी, यही अंग्रेजों के गुलाम सैनिक गोली चलाते थे.

हालांकि इंडिया गेट पर जो "अमर जवान ज्योति" जलती है वो 1971 में भारत पाक युद्ध में शहीद हुए सैनिको के सम्मान में स्थापित की गईं गई थी. इसलिए मैं जब भी कभी इंडिया गेट पर जाता हूँ केवल उसको ही प्रणाम करता हूँ और अन्य लोगों को भी यही समझाता हूँ. अंग्रेजों द्वारा बनाए गए ऐसे स्मारकों में परिवर्तन करने चाहिए.
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