29 दिसंबर 1930 को इलाहाबाद में, मुस्लिम लीग के सम्मलेन में, मशहूर शायर "इकबाल" ने पहली बार "दो राष्ट्र सिद्धांत" की बात कही और अलग मुस्लिम देश की रूपरेखा प्रस्तुत की थी. उन का कहना था कि - अंग्रेजों से आजादी के बाद भारत के मुसलमान हिन्दुओं के गुलाम बन जायेंगे इसलिए मुसलमानों के लिए उनका अपना एक अलग राष्ट्र होना चाहिए.
इकबाल एक महान शायर थे और अविभाजित भारत के प्रसिद्ध कवि, नेता और दार्शनिक थे. उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है. उन्होंने "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा" जैसा श्रेष्ठ गीत लिखा था. हिन्दू मुसलान दोनों बरावर उनका सम्मान करते थे. इन्हें पापिस्तान में राष्ट्रकवि माना जाता है
लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया कि - अनपढ़ हो या सुशिक्षित, सह-आस्तित्व का सिद्धांत किसी मुसलमान को समझ नहीं आ सकता. इकबाल की सोंच का दोगलापन इसी से समझा जा सकता है कि - एक तरफ वो लिखते थे "मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर करना" और दुसरी तरफ खुद धर्म के नाम पर देश को तोड़ने की बात करते थे
हिन्दुओं को प्रभावित करने के लिए लिखा "सारे जहाँ से अच्छा....." और उसी समय लिखते थे कि - "हो जाये अगर शाहे खुरासां का इशारा, सिजदा न करूं हिन्दोस्तां की नापाक जमीं पर" अर्थात - यदि तुर्की का खलीफा (जो अपने को सारी दुनिया के मुसलमानों का रहनुमा कहता था) इशारा कर दे तो, मैं हिन्दुस्तान की नापाक धरती पर नमाज भी नहीं पढूं.
कालांतर में यही "इकबाल" मुस्लिम लीग के अध्यक्ष बने. इकबाल ने ही "जिन्ना" को मुस्लिम लीग में शामिल करने पर जोर दिया था. यूँ तो खिलाफत आन्दोलन के समय में ही ज्यादातर मुसलमान क्रान्ति से दूर हो गए थे लेकिन इलाहाबाद में अलग मुस्लिम राष्ट्र बनाने की मांग के बाद, मुस्लिम्स खुद को हिन्दुओं से अलग दिखाने लगे थे.
सन् 1933 में चौधरी रहमत अली ने, इकबाल के उसी शेर से "नापाक" शब्द लेकर उसका विपरीत शब्द "पाक" बनाकर "पाक्स्तान" नाम के नए मुस्लिम देश की परिकल्पना की. बाद में इसका नाम बदलकर "पाकिस्तान" कर दिया गया. 29 दिसंबर 1930 का दिन भारत के इतिहास का काला दिन है जब भारत को तोड़ने का प्रस्ताव रखा गया था.
भारत से अलग होने के बाद नाम भले ही "पाकिस्तान" रख लिया था लेकिन हमेशा नापाक हरकतें करता रहा और बनने के 25 साल से भी पहले दो टुकड़ों में बंट गया. आज दुनिया में होने वाली किसी भी आतंकी घटना से पाकिस्तान का कोई न कोई सम्बन्ध अवश्य निकलता है. यह असफल राष्ट्र, आज फिर से चार टुकड़े होने की कगार पर है.
No comments:
Post a Comment