Tuesday, 2 January 2018

गुरु गोविन्द सिंह से औरंगजेब का विवाद

गुरु गोबिंद सिंह की बढ़ती शक्ति से परेशान होकर, औरंगजेब ने सरहिन्द के नबाव बजीर खान को दस लाख की फ़ौज देकर, सन्देश दिया कि - मेरा यह सन्देश आनंदपुर में गोविन्द सिंह तक पहुँचाओ और अगर वो मान ले तो ठीक है नहीं तो आनंदपुर पर हमला कर उसे नष्ट कर दो. उसको बंदी बनाओ या उसकी हत्या कर दो. औरंगजेब का सन्देशकुछ इस प्रकार था.
(गुरु) गोविंद सिंह स्वयं को बादशाह कहलाना तथा सैनिकों को इकठ्ठा करना बंद करे. उसको अपने सिर पर राजाओं के समान सिरपेंच (कलगी) रखना छोडना होगा, किले के छत पर खड़ा रह कर सेना का निरीक्षण करना तथा अभिवादन स्वीकारना भी बंद करना होगा. वह चाहे तो एक सामान्य ‘संत’के रुप में अपना जीवन व्यतीत कर सकता है.
लेकिन अगर यह चेतावनी देनेके पश्चात भी, वह अपनी कार्यवाहियां बंद नहीं करता है, तो वो (बजीर खान), उसे (गुरु गोविन्द सिंह को ) सीमा पार करे, उसे बंदी बनाए अथवा उसकी हत्या करें और आनंदपुर को पूर्णत: नष्ट करे. औरंगजेब के इस शाही फरमान का गुरु गोविन्द सिंह जी पर कुछ भी असर नहीं हुआ और उन्होंने अपने कार्य को पूर्ववत जारी रखा.
तब फरवरी 1695 में औरंगजेब ने एक और आदेश निकाला :- एक भी हिंदू (जो मुगल राजसत्ता के कर्मचारी हैं उन्हें छोडकर ) सिर पर चोटी न रखे, पगड़ी न पहने, हाथ में शस्त्र न ले. उसी प्रकार पालकी में, हाथियों पर तथा अरबी घोडों पर न बैठे. जो भी हिन्दू / सिक्ख इस आदेश को नहीं मानेगा उसको म्रत्यु दंड दिया जाएगा और सम्पत्ति जब्त कर ली जायेगी.
तब गुरुजी ने इस आदेश के जबाब में अपना एक प्रतिआदेश निकाला :- मेरे सिक्ख ( शिष्य ) केवल चोटी ही नहीं बल्कि पूरे के पूरे केश रखेंगे, वे संपूर्ण केशधारी होंगे तथा वे केश नहीं कटवाएंगे. वे सर पर सदैव पगड़ी भी पहनेंगे, वे हमेशा शस्त्र धारण भी करेंगे, वे हाथियों पर, घोडों पर तथा पालकी में भी बैठेंगे. उसके बाद जो हुआ वो इतिहास में अमर है.

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