Wednesday, 3 January 2018

पेशवा कौन थे ? (भाग -1) बालाजी विश्वनाथ / बाजीराव प्रथम


एक समय मुघलों ने अधिकाँश भारत पर अपना कब्ज़ा कर लिया था. उस समय महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज ने वहां पर मुघलों को टक्कर दी और मुघलों को वहां से खदेड़ कर हिन्दू साम्राज्य की नीव रखी. हिन्दुओं के इस मराठा साम्राज्य में प्रधानमंत्रियों को पेशवा कहा जाता था. ये राजा के सलाहकार परिषद के प्रमुख होते थे.
राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था. शिवाजी महाराज के अष्टप्रधान मंत्रिमंडल में प्रधान मंत्री अथवा वजीर का पर्यायवाची पद था 'पेशवा'. पेशवा का पद वंशानुगत नहीं था, इसको पाने के लिए अपनी योग्यता को साबित करना पड़ता था. अपनी शक्ति और बुद्धिमानी से पेशवाओं ने भारत के बहुत बड़े हिस्से को मुघलों से आजाद करा लिया था.
यूँ तो पेशवाओं ने शिवाजी महाराज के समय से ही मराठा साम्राज्य के लिए अपना बहुत योगदान दिया था लेकिन पेशवाओं का देश की जनता पर सीधा प्रभाव पड़ना प्रारम्भ हुआ था सातवे पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट (1662 1720) के समय में. छत्रपति महाराजा शाहू जी के शत्रुओं को हराने और उन्हें सिंहासन दिलवाने में भी उनका बड़ा हाथ था.
"बालाजी विश्वनाथ भट" ने, न केवल "शाहूजी" को सिंहासन दिलवाने में योगदान दिया बल्कि मराठा साम्राज्य को आपसी संघर्ष में ध्वस्त होने से भी बचाया. इन कार्यों के इनाम में छत्रपति शाहू जी महाराज ने 1713 में "बालाजी विश्वनाथ" को पेशवा नियुक्त किया. उनकी कूटनीति के कारण उनको वही सम्मान प्राप्त था जो "मौर्य शासन" में "चाणक्य" को.
उस समय तक औरंगजेब ( 1616 -1707) की म्रत्यु हो चुकी थी और मुघल साम्रज्य पारिवारिक कलह में उलझा हुआ था. ऐसे समय में उन्होंने दक्षिण-पश्चिम-मध्य भारत में मराठा हिन्दू साम्राज्य को विस्तार करने का काम किया. 1720 में उनकी म्रत्यु के बाद उनके 19 बर्षीय पुत्र "बाजीराव" पेशवा बना. वे पहले पेशवा थे जो किसी पेशवा के पुत्र थे.
बाजीराव (प्रथम) को यह पद वंशानुगत रूप से अवश्य मिला था लेकिन इसके लिए उनको अपनी योग्यता को साबित करना पड़ा था. युवावस्था से ही बाजीराव ने अपनी योग्यता का प्रदर्शन किया और मराठा शक्ति को दूर दूर तक पहुंचाया और उसने मराठा साम्राज्य को भारत में उस समय का सर्वशक्तिमान् साम्राज्य बना दिया.
बाजीराव का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था तथा नेतृत्व करने की जन्मजात क्षमता थी. अपने अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस और प्रतिभासंपन्न छोटे भाई "चिमाजी अप्पा" के सहयोग से उन्होंने बहुत बड़े क्षेत्र से "हरे झंडे" को हटाकर वहां "भगवा" फहरा दिया था. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले मराठा सेना को संगठित और प्रशिक्षित किया.
सबसे पहले 1724 बाजीराव ने शकरलेडला में मुबारिज़खाँ को परास्त किया. उसके बाद 1724 से 1726 में मालवा तथा कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित किया. अपने आपको मजबूत करने के बाद बाजीराव ने 1728 में महाराष्ट्र के सबसे बड़े शत्रु "निजामउल मुल्क" को पालखेड़ में पराजित कर उससे चौथ तथा सरदेशमुखी वसूली.
इसके बाद 1728 में ही बाजीराव ने मालवा और बुंदेलखंड पर आक्रमण कर, मुगलो के हिन्दू सेनानायक गिरधरबहादुर तथा दयाबहादुर पर विजय प्राप्त की और बुंदेलखंड को मुघलों के आतंक से आजाद कराया. इस विजय के बाद बाजीराव ने 1729 में मुहम्मद खाँ बंगश को परास्त किया. और दभोई के हिन्दू राजा त्रिंबकराव को मजबूत किया.
1731 में बाजीराव ने पुर्तगालियों को करारी शिकस्त दी. इसके बाद बाजीराव ने दिल्ली को जीतने के अभियान की तैयारी करना शुरू कर दिया. दिल्ली का अभियान (1737) उनकी सैन्यशक्ति का चरमोत्कर्ष था. 1937 में ही बाजीराव ने भोपाल के निजाम को हराया और 1739 में उन्होंने "नासिरजंग" पर विजय प्राप्त की.
इस प्रकार पेशवा बाजीराव ने अपने आपको एक महान योद्धा साबित किया. अपने पेशवाई जीवन के 20 बर्ष में बाजीराव ने कुल 41 युद्ध लड़े और प्रत्येक युद्ध में विजय प्राप्त की. इतनी लडाइयां जीतने के बाद भी कभी उनके मन में खुद राजा बनने का बिचार नहीं आया. उन्होंने जीत कर केवल छत्रपति के हिन्दू साम्राज्य का विस्तार किया.
उन्होंने बुन्देलखंड और दभोई आदि के हिन्दू राजाओं को मुस्लिम आक्रान्ताओं के आतंक से मुक्ति दिलाई, लेकिन हिन्द का यह महान योद्धा, अपने चरम ऐश्वर्य के काल में ही 40 बर्ष की अल्पायु में 28 अप्रेल 1740 को अकाल म्रत्यु शिकार हो गया. ऐसा माना जाता है कि- मुस्लिम प्रेमिका "मस्तानी" के कारण पारिवारिक कलह उनकी म्रत्यु का कारण बनी

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