Tuesday, 2 January 2018

एनरॉन कंपनी और पी. चिदम्बरम

2003 में "एनरॉन कंपनी" ने भारत के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय अदालत में 38,000 Cr का क्षतिपूर्ति केस दर्ज किया था, एनरॉन कंपनी की और से वकील थे कांग्रेस के बड़े नेता "पी. चिदम्बरम". चिदम्बरम एनरान को भारत से मुआवजा दिलाना चाहते थे.
तत्कालीन अटल सरकार ने, "भारत" का पक्ष रखने के लिए "हरीश साल्वे" को भारत का वकील न्युक्त किया. हरीश साल्वे ने अंतर्राष्ट्रीय अदालत में भारत के पक्ष में दी गई अपनी दलीलों से "एनरॉन कंपनी" को बैकफुट पर धकेल दिया था.
गौर तलब है कि महाराष्ट्र के दाभोल में "एनरान कम्पनी" एक पावर प्लांट बना रही थी, जिसका बिरोध वहां के किसान कर रहे थे. जन बिरोध के कारण प्रोजेक्ट बंद करना पड़ा और एनरान कम्पनी ने भारत से हर्जाना माँगा था.
हरीश साल्वे ने अपनी दलीलों से "एनरान कम्पनी" को पीड़ित के बजाय वादा खिलाफी करने वाला साबित करदिया था. हरीश साल्वे ने दलील दी थी कि - एनरान कम्पनी किसानो को मुआवजा देने तथा पर्यावरण और सुरक्षा के तय मानको से पीछे हटी थी.
दुर्भाग्य से 2004 में अटल सरकार चली गई और सोनिया गांधी के नियंत्रण वाली मनमोहन सरकार आ गई. यू पी ए सरकार ने, सबसे पहले उस केस से हरीश का हटाया और उनकी जगह भी नियुक्त करने के लिए भी उनको भारत का कोई वकील नहीं मिला.
2004 में यू पी ए सरकार ने हरीश साल्वे को हटाकर, उनकी जगह पापिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिक वकील "खाबर कुरैशी" को यह केस सौंप दिया. गौर तलब है कि - उस समय पी. चिदम्बरम केंद्र सरकार में वित्त मंत्री बन चुके थे.
उधर एनरान कम्पनी ने भी उनको अपने वकील से "लीगल एडवाइजर" बना दिया. अर्थात उस समय भारत का वित्त मंत्री और भारत से 38,000 का हर्जाना मांगने वाली कम्पनी का लीगल एडवाइजर एक ही व्यक्ति था.
जाहिर सी बात है इस हालत में भारत को केस हारना ही था और भारत केस हार गया. एनरान कम्पनी को दिए जाने वाले 38,000 करोड़ के मुआबजे का कैसे कैसे बंटबारा हुआ होगा, इसका अंदाजा आप लोग खुद ही लगाते रहिये.

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