Thursday, 9 March 2017

पूर्वोत्तर का शिवाजी "लचित बोड़फुकन"

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) के सैन्य प्रशिक्षण में जो कैडेट सर्वश्रेष्ठ घोषित होता है, उसको “लचित बोड़फुकन मैडल” से सम्मानित किया जाता है. इससे पता चलता है कि - “लचित बोड़फुकन” अवश्य ही कोई महान व्यक्ति रहे होंगे. लेकिन हमारी स्कूल की किताबों में कभी भी उनके बारे में  कुछ बताया नहीं गया है.  

जानकारी हाशिल करने पर पता चला है कि “लचित बोड़फुकन” असम के सेनापति और महान योद्धा थे जिन्होंने औरंगजेब के सम्पूर्ण भारत पर कब्जा करने के सपने  को असम में तोड़ दिया था. “लचित बोड़फुकन”  24 नवंबर 1622 को हुआ था. उनकी वीरता और बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर असम के राजा “चक्रध्वज सिंह” ने उनको अपना सेनापति बनाया था.

उस समय दिल्ली पर “औरंगजेब” का शासन था. वह समस्त भारत को इस्लामी राज्य बनाना चाहता था. लेकिन उत्तर में गुरु गोबिंद सिंह, मध्य में छत्रसाल, दक्षिण में शिवाजी और पूर्वोत्तर में “चक्रध्वज सिंह” उसको कड़ी चुनौती दे रहे थे. औरंगजेब ने असम पर हमला किया लेकिन “लचित बोड़फुकन” के नेतृत्व ने मुघल सेना को भागने पर मजबूर कर दिया.

इस पराजय का बदला लेने और पूर्वोत्तर भारत को जीतने का सपना लेकर औरंगजेब ने एक विशाल सेना, 40 पानी के जहाजों में, ब्रह्मपुत्र के रास्ते ढाका से गुवाहाटी के लिए रवाना की. अचानक हुए भीषण हमले में असम के लगभग 10,000 सैनिक मारे गए और “लचित” भी से घायल हो गए. असम सेना भी एक बार पीछे हटने लगी थी.

लेकिन फिर भी वे एक नाव में सवार हुए और सात नावों के साथ मुग़ल बेड़े की ओर बढे.  उन्होंने सैनिकों से कहा, "यदि आप में से कोई वापस जाना चाहता है तो चला जाए लेकिन मैं अपना कर्तव्य छोड़कर पीछे नहीं हटूंगा.  उनकी जोशीली बाते सुनकर पीछे हटते सैनिक दोगुने जोश के साथ मुग़ल सेना पर टूट पड़े.
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उसके बाद तो उसने मुग़ल सेना को सम्हलने का अवसर ही नहीं दिया और आधी से ज्यादा मुघल सेना का सफाया कर दिया. बाक़ी मुघल सैनिक अपनी जान बचाने के लिए भाग गए. यह युद्ध “सराईघाट की लड़ाई” के नाम से जाना जाता है. इस युद्ध में पराजित होने के बाद किसी मुघल का दोबारा पूर्बोत्तर पर चढ़ाई करने का साहस नहीं हुआ.

देश आजाद होते ही शिक्षा पर वामपंथी बिचारधारा वालों का कब्जा हो गया था और उन लोगों ने देश की सच्चे महापुरुषों के बारे में, देश वाशियों को बताना जरुरी नहीं समझा. मुझे पहली बार उनका नाम तब सुनने को मिला था जब 24 नवंबर को उनकी जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका स्मरण किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में उनका नाम सुनने के बाद मैंने गूगल एवं फेसबुक मित्रों के माध्यम से  “लचित बोड़फुकन” के बारे में जानकारी हाशिल करने का प्रयास किया. जब उनके बारे में जानकारी मिली तो उनके प्रति मन श्रद्धा से भर गया. मेरी कोशिश होगी कि – उन के बारे में और जानकारी प्रापक कर और विस्त्रत लेख लिखूं.   


         

2 comments:

  1. Unfortunately the warriors have been replaced by the treacherous ones .Bharat Ratna is awarded to all but not to Field Marshal K.M.Kariappa ( PBUH) .

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  2. Unfortunately the warriors have been replaced by the treacherous ones .Bharat Ratna is awarded to all but not to Field Marshal K.M.Kariappa ( PBUH) .

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