Sunday, 26 March 2017

सम्राट अशोक



आज 26-मार्च को भारत बर्ष के महान सम्राट "अशोक" का जन्मदिन मनाया जा रहा है. हालांकि अधिकांस भारतीय इतिहासकार उनका जन्मदिन "अगस्त 304 BC" मानते है. मुझे नहीं पता कि - उनकी जन्म तिथि का सोर्स किया है, लेकिन जब लोग मना रहे हैं तो मैं भी इसी को उनका जन्मदिन मानते हुए उनके सम्मान में कुछ लिखना चाह रहा हूँ.
सम्राट अशोक , मौर्य वश के तीसरे सम्राट थे. सम्राट "चन्द्रगुप्त मौर्य" उनके दादा तथा सम्राट "बिन्दुसार" उनके पिता थे. उत्तर भारत में उनकी माता का नाम सुभद्रांगी बताते है और दक्षिण भारतीय परम्परा में उनकी माता का नाम रानी धर्मा बताया जाता है . दोनों ही परम्पराओं में सम्राट अशोक की माता को "ब्राह्मणी" बताया जाता है.
लंका की परम्परा में बिंदुसार की सोलह पटरानियों और 101 पुत्रों का उल्लेख है. जिसमे अशोक की माता "रानी धर्मा" को बताया जाता है. बताया जाता है कि - महल के षड्यंत्र की शिकार होने के कारण "रानी धर्मा" को बिंदुसार ने यथोचित सम्मान नहीं दिया था. महल में एकमात्र ब्राह्मणी होने के कारण उनकी माता को कई बार उपेक्षा का शिकार होना पडा.
अपनी उपेक्षा से दुखी "रानी धर्मा" ने अपने पुत्र "अशोक" को राजा बनाने का स्वप्न देखा और अपने पुत्र को बड़ी मेहनत से भविष्य के सम्राट के रूप में तैयार किया. माना जाता है कि - गृहयुद्ध में अपने सभी सौ भाइयों की ह्त्या करने के बाद ही अशोक को राजगद्दी मिली थी. 272 ई. पूर्व से लेकर 232 ई. पूर्व तक "अशोक" का शासनकाल माना जाता है.
अशोक ने भी अपने पितामह चंद्रगुप्त मौर्य और पिता बिंदुसार की भाँति ही युद्ध के द्वारा साम्राज्य विस्तार किया. अशोक के राज्य की सीमा लंका से ईरान तक फ़ैल चुकी थी. पूरब में राज्य का विस्तार करने के लिए कलिंग पर किया गए अशोक के आक्रमण के परिणाम ने अशोक की जीवन धारा ही बदलकर रख दी थी.
माना जाता है कि - कलिंग की कमजोर मगर देशभक्त जनता ने शक्तिशाली सम्राट अशोक की सेना का अंतिम सांस तक सामना किया. कलिंग विजय के बाद अशोक को "लाशों" के सिवा कुछ नहीं मिला. उस विनाश को देखकर अशोक के मन में युद्ध और हिंसा के प्रति नफरत पैदा हो गई. उसके बाद अशोक ने महात्मा बुद्ध के सिद्धांत को अपना लिया.
अशोक को अपने दादा और पिता से एक शक्तिशाली साम्राज्य विरासत में मिला था जिसेका नेतृत्व क्षमता और युद्ध के द्वारा अशोक ने और विस्तार किया था. बौद्ध बन्ने से पहले अशोक एक शक्तिशाली साम्राज्य का निर्माण कर चुका था इसलिए अशोक को आगे बिना हिंसा के भी अपना राज चलाने में कोई बिशेष परेशानी नहीं हुई.
अशोक ने लगभग 40 वर्षों तक शासन किया एवं 232 ईसापूर्व में उसकी मृत्यु हुई. उसके कई संतान तथा पत्नियां थीं पर उनके बारे में अधिक पता नहीं है. उसके पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा ने बौद्ध धर्म के प्रचार में योगदान दिया. अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य राजवंश लगभग 50 वर्षों तक चला. लेकिन उसके उत्तराधिकारी निर्बल साबित हुए.
उसने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया. वैदिकधर्म के अनुयायियों पर अनेको तरह के प्रतिबन्ध लगाए. शक्तिशाली अशोक के शासन काल में तो वे खामोश रहे पर अशोक के बाद के, अपेक्षाकृत कमजोर शासकों के समय में वे फिर से उभर आये थे.
अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म का खूब विस्तार हुआ लेकिन वैदिक धर्म वालों ने भी हर संभव तरीके से अपने धर्म को बचाए रखा. मौर्य वंश के अंतिम और कमजोर शासक वृहदरथ, का बध करके पुष्यमित्र शुंग ने "शुंग वंश" की स्थापना की. शुंग के शासन काल में पुनः वैदिक धर्म को उसका खोया हुआ सम्मान वापस मिल गया था.

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