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(शहीद जसबंट सिंह रावत की कांस्य प्रतिमा) |
क्या भारतीय सेना में ऐसा भी होता है ? जी हाँ एक सैनिक जसबंत सिंह रावत को यह सब कुछ मिलता है और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि - वे अब इस दुनिया में भी नहीं है. शहीद जसवंत सिंह रावत एक ऐसे विलक्षण शहीद सैनिक है, जिनको अमर माना जाता है. उनकी आजतक बाकायदा हाजिरी लगती है और छुट्टी पर गाँव में उनका चित्र भेजा जाता है और छुट्टी समाप्त होने पर उनका चित्र वापस लाया जाता है .
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(सेला पास / लेक) |
तीनो ने सुरक्षित जगह से मोर्चा लगाकर चीनियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. पास के गाँव की दो बहने सेला और नूरा भी उनकी मदद को आ गईं. वे उनको लगातार पानी, खाना और क्षेत्र की जानकारी देती थी. इसी बीच उन्होंने चीनी सैनिक को मारकर उनकी MMG पर कब्जा कर लिया और उससे चीनियो पर ही कहर ढा दिया. उन्होंने बहादुरी से चीनियों का सामना किया लेकिन अगले दिन त्रिलोक और गोपाल शहीद हो गए,
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(जसवंत सिंह वार मेमोरियल) |
तब चीनी सैनको ने पूरे इलाके को घेर लिया. इतने पर भी जसबंत सिंह लड़ते रहे और चीनियों को मारते रहे. उन्होंने अंतिम सांस तक चीनियों से मुकाबला किया और शहीद हो गए. चीनियों ने गुस्से में आकर उनका सर काट लिया. सेला भी बम की चपेट में आने से शहीद हो गई और नूरा को चीनी जबरन अपने साथ ले गए. 20 नबम्दर 1962 को संघर्ष विराम की घोषणा हुई तो चीनी कमांडर ने जसवंत की बहादुरी की लोहा माना.
चीनी सेना ने उनका कटा हुआ सर वापस किया और सर की कांसे की प्रतिमा भी भारतीय सेना को भेंट की. भारतीय सेना द्वारा एक मंदिर बनाकर बहां बह मूर्ती स्थापित की गई और उसकी पूजा होने लगी. जसबंत सिंह रावत को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. बहा पर दो चोटियों का नाम सेला और नुरा के नाम पर रखा गया. उनको को आजतक जीवित व्यक्ति की तरह माना जाता है.
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(नूरा पीक) |
उनके शहादत स्थल का नाम, उनके नाम पर "जसवंतगढ़ "रखा गया है. उनको लेकर अनेको किवदंतिया बन गई हैं. कहा जाता है कि - इस पोस्ट पर तैनात किसी सैनिक को जब झपकी आती है, तो कोई उन्हें थप्पड़ मारकर जगाता है. इतना ही नहीं, लोग कहते है कि- उस राह से गुजरने वाला कोई राहगीर, अगर उनकी शहादत स्थली पर बगैर नमन किए आगे बढ़ता है, तो उसे कोई न कोई नुकसान जरूर होता है.
युद्द के क्षेत्र में दुश्मन से लड़ते हुए शहीद होने के बाबजूद "जसबंत सिंह रावत" को शहीद नहीं माना जाता है क्योंकि उनको जीवित मानकर उनके साथ जीवित व्यक्ति जैसा बर्ताव किया जाता है.
युद्द के क्षेत्र में दुश्मन से लड़ते हुए शहीद होने के बाबजूद "जसबंत सिंह रावत" को शहीद नहीं माना जाता है क्योंकि उनको जीवित मानकर उनके साथ जीवित व्यक्ति जैसा बर्ताव किया जाता है.
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