Saturday, 4 March 2017

फिल्म जेहाद

सलीम - जाबेद की जोड़ी की लिखी हुई फिल्मो को देखे, तो उसमे आपको अक्सर बहुत ही चालाकी से हिन्दू धर्म का मजाक तथा मुस्लिम / इसाई / साईं बाबा को महान दिखाया जाता मिलेगा. इनकी लगभग हर फिल्म में एक महान मुस्लिम चरित्र अवश्य होता है और हिन्दू मंदिर का मजाक तथा संत के रूप में पाखंडी ठग देखने को मिलते है.
फिल्म "शोले" में धर्मेन्द्र भगवान् शिव की आड़ लेकर "हेमामालिनी" को प्रेमजाल में फंसाना चाहता है जो यह साबित करता है कि - मंदिर में लोग लडकियां छेड़ने जाते है. इसी फिल्म में ए. के. हंगल इतना पक्का नमाजी है कि - बेटे की लाश को छोड़कर, यह कहकर नमाज पढने चल देता है.कि- उसे और बेटे क्यों नहीं दिए कुर्बान होने के लिए.
"दीवार" का अमिताब बच्चन नास्तिक है और वो भगवान् का प्रसाद तक नहीं खाना चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है और वो बिल्ला भी बार बार अमिताब बच्चन की जान बचाता है. "जंजीर" में भी अमिताभ नास्तिक है और जया भगवान से नाराज होकर गाना गाती है लेकिन शेरखान एक सच्चा इंसान है.
फिल्म 'शान" में अमिताभ बच्चन और शशिकपूर साधू के वेश में जनता को ठगते है लेकिन इसी फिल्म में "अब्दुल" जैसा सच्चा इंसान है जो सच्चाई के लिए जान दे देता है. फिल्म "क्रान्ति" में माता का भजन-कीर्तन करने वाला राजा (प्रदीप कुमार) गद्दार है और करीमखान (शत्रुघ्न सिन्हा) एक महान देशभक्त, जो देश के लिए अपनी जान दे देता है.
अमर-अकबर-अन्थोनी में तीनो बच्चो का बाप किशनलाल एक खूनी स्मंग्लर है लेकिन उनके बच्चो अकबर और अन्थोनी को पालने वाले मुस्लिम और इसाई महान इंसान है. साईं बाबा का महिमामंडन भी इसी फिल्म के बाद शुरू हुआ था. फिल्म "हाथ की सफाई" में चोरी - ठगी को महिमामंडित करने वाली प्रार्थना भी आपको याद ही होगी.
कुल मिलाकर आपको इनकी फिल्म में हिन्दू नास्तिक मिलेगा या धर्म का उपहास करता हुआ कोई कारनामा दिखेगा और इसके साथ साथ आपको शेरखान पठान, DSP डिसूजा, अब्दुल, पादरी, माइकल, डेबिड, आदि जैसे आदर्श चरित्र देखने को मिलेंगे. हो सकता है आपने पहले कभी इस पर ध्यान न दिया हो लेकिन अबकी बार ज़रा ध्यान से देखना.
केवल सलीम / जावेद की ही नहीं बल्कि कादर खान, कैफ़ी आजमी, महेश भट्ट, आदि की फिल्मो का भी यही हाल है. फिल्म इंडस्ट्री पर हाजी मस्तान और दौउद जैसों का नियंत्रण रहा है, इसीलिए अक्सर अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है और पंडित को धूर्त, ठाकुर को जालिम, बनिए को सूदखोर, सरदार को मूर्ख कामेडियन, आदि ही दिखाया जाता है.
"फरहान अख्तर" की फिल्म "भाग मिल्खा भाग" में "हवन करेंगे" का आखिर क्या मतलब था ? pk में भगवान् का रोंग नंबर बताने वाले आमिर खान क्या कभी अल्ला के रोंग नंबर पर भी कोई फिल्म बनायेंगे ? मेरा मानना है कि - यह सब महज इत्तेफाक नहीं है बल्कि सोंची समझी साजिश है. गुलशन कुमार की हत्या का कारण उनका हिन्दू धर्म प्रचार ही था

फिल्म निर्माता हों या विज्ञापन निर्माता जानबूझकर , आजतक हिन्दुओं की भावनाओं का मजाक उड़ातेे रहे हैं, साथ ही अन्य धर्म के लोगों को बहुत ही सज्जन दिखाते रहे हैं. .ज्यादातर फिल्मो में "हिन्दू पंडित" को धूर्त दिखाया जाता है तो "हिन्दू ठाकुर" को बलात्कारी. इसके अलावा "हिन्दू वैश्य" को सूदखोरी के द्वारा शोषण करता हुआ दिखाया जाता है. जबकि पादरी, मौलवी, आदि भगवान् के फरिस्ते जैसे दिखाए जाते है.

यह तथाकथित बुद्धिजीवी लोग इतनी सफाई से और इतने मनोरंजक तरीके से यह सब करते थे कि - हमें खुद ही पता नहीं चलता था. आपने "मैं हूँ न" फिल्म देखी होगी. फिल्म निर्माता निर्देशक ने बेहतरीन कलाकार, बेहतरीन स्क्रीनप्ले, बेहतरीन गीत-संगीत, आदि के साथ इसमें पापिस्तान को अच्छा देश तथा भारत के राष्ट्रवादियों को विलेन साबित कर दिया था






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