वीर विक्रमादित्य भारत के एक महान सम्राट थे. उनका राज आज के समस्त भारत से लेकर ईरान और अरब तक फैला हुआ थ , जिसकी राजधानी उज्जैन थी. वीर विक्रमादित्य के राज को भगवान् राजा रामचंद्र के राज के बाद दुसरा सर्वश्रेष्ठ राज माना जाता है. उनके राज में देश ने कृषि, चिकत्सा, वास्तुशास्त्र, कपड़ा और आभूषण उत्पादन, शस्त्र निर्माण, कला, साहित्य, आदि सभी क्षेत्रों में बहुत उन्नति की हुई थी.
उनके राज में भारत में इतनी सम्पन्नता थी कि सोने का सिक्का चला करता था. इसीलिए उनके समय को भारत का स्वर्णयुग कहा जाता है. उनके राज में विद्वानों को बहुत सम्मान था.उनके दरबार में 9 ऐसे विद्वान् मंत्री थे जो अपने अपने क्षेत्र में पारंगत थे. उन 9 मंत्रियों को विक्रमादित्य के नवरत्न कहा जाता था. इन नवरत्नों में उच्च कोटि के विद्वान, श्रेष्ठ कवि, गणित के प्रकांड विद्वान और विज्ञान के विशेषज्ञ आदि सम्मिलित थे.
सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों के नाम धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बेताल भट्ट, घटखर्पर, कालिदास,.वराहमिहिर और वररुचि कहे जाते हैं. इन नव रत्नों में साहित्यकार कालीदास और चिकित्सक धन्वन्तरी से तो सभी परिचित हैं शेष भी अपने विशेश गुणों के लिए विख्यात थे. इनमे से एक रत्न "वराहमिहिर" ने ही प्राचीन गणनाओं और अपने शोध के आधार पर भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत) का आविष्कार किया था.

उज्जैन में महाकाल का मंदिर बनाने तथा अयोध्या को दुबारा बसाने और वहां पर भव्य राम जन्मभूमि मंदिर बनाने का कार्य भी सम्राट वीर विक्रमादित्य ने किया था. हरिद्वार में जो हरि की पौड़ी है, उसका निर्माण भी सम्राट वीर विक्रमादित्य ने अपने बड़े भाई भर्तहरी के नाम पर किया था, जो मन में वराग्य उत्पन्न होने पर अपना राज अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को सौंपकर, सन्यासी हो गए थे और गुरु गोरखनाथ के शिष्य बन गए थे.

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