Saturday, 4 March 2017

कांग्रेस की स्थापना कब, किसने और क्यों की थी ? (भाग- 01)


अक्सर कांग्रेसी बिचारधारा के लोग गुणगान करते फिरते हैं कि कांग्रेस ने देश को अंग्रेजों से आजाद कराया था. यह कितना बड़ा झूठ है इसको समझने के लिए कांग्रेस के जन्म की कहानी और इनकी कर्म कुंडली हो समझना बहुत ही आवश्यक है. वास्तव में कांग्रेस का जन्म आजादी की लड़ाई के लिए नहीं बल्कि लड़ाई की धार कुंद करने के लिए हुआ था.
कांग्रेस की स्थापना किसी देशभक्त भारतीय ने नहीं बल्कि एक ऐसे अंग्रेज अफसर ने की थी जिसको 1857 की क्रान्ति के समय, क्रांतिकारियों से बचने के लिए, अपने चेहरे को काला करके, कई दिन तक कभी साड़ी तो कभी बुर्के में औरत के वेश में छुपकर रहना पड़ा था. आपको यह को पता ही होगा कि - कांग्रेस की स्थापना ए. ओ. ह्युम ने की थी.
ए. ओ. ह्युम की नियुक्ति इटावा जिले के कलक्टर के रूप में 4 फरवरी 1856 को हुई थी. एक साल बाद 1857 में देश में अंग्रेजो के खिलाफ क्रान्ति हो गई. इटाबा छावनी के भारतीय सैनिक वागी होकर क्रांतिकारियों से मिल गए. ह्युम ने उनका दमन करने के लिए पूरी ताकत झोक दी. अनेकों बाग़ी क्रांतिकारी सैनिक, डाकू कहकर मार दिए गए.
चम्बल और यमुना के मध्य क्षेत्र में डाकू और बागी एक दुसरे का पर्याय शब्द तभी से बने हैं. अपने साथियों की निर्मम ह्त्या का बदला लेंने के लिए क्रांतिकारियों ने ए. ओ. ह्युम को जान से मारने का ऐलान कर दिया. तब ए. ओ. ह्युम 17 जून 1857 को अपनी जान बचाने के लिए अपने चेहरे को काला कर औरत के वेश में इटावा से निकल भागा.
वह 7 दिनों तक "बढ़पुरा" में छुपा रहा. क्रान्तिकारियों के दमन के बाद वह पुनः इटाबा का कलक्टर बन गया और उसके बाद 1867 तक वही तैनात रहा. बाद में "ह्युम" की विभिन्न पदों पर कई जगह तैनाती हुई. 1882 में वो रिटायर हो गया. 1857 में क्रांतिकारियों के भय से अपनी औरत के वेश में जान बचाने की शर्मिंदगी वो कभी नहीं भुला.
इसी बीच पंजाब में कूका आन्दोलन, बिहार में आदिवासियों के क्रांतिकारी अभियान के साथ साथ देश भर में छोटे बड़े विद्रोह चलते रहे. ह्युम बहुत ही शातिर दिमाग व्यक्ति था, उसने एक ऐसी संस्था बनाने का निर्णय लिया जो अंग्रेजों और भारतीयो के बीच अर्द्ध भारतीय और अर्द्ध अंग्रेज की भूमिका निभाय. इसके लिए उसने कांग्रेस का गठन किया.
उसने अपने साथ ऐसे भारतीयों को चुना, जो कहने को भारतीय थे लेकिन जिनका रहन सहन और बिचार अंग्रेजों के समान थे. व्योमेशचन्द्र बनर्जी, दादा भाई नौरोजी, सर सुरेंद्रनाथ बनर्जी, सर फीरोज शाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले, आदि को साथ लेकर 27 दिसम्बर 1885 को मुम्बई में "इंडियन नेशनल कांग्रेस" की स्थापना की.
ए. ओ. ह्युम की यह योजना इतनी कारगर साबित हुई कि - अगले बीस साल तक देश में कहीं कोई क्रांतिकारी घटना नहीं हुई. 1905 के आसपास जब बंगाल में "युगांतर" और "अनुशीलन समिति" तथा महाराष्ट्र में "अभिनव भारत" ने क्रान्ति का अलख जगाना प्रारम्भ किया तो कांग्रेस ने उन लोगों बदनाम करने का प्रयास भी किया.
उन दिनों श्याम कृष्ण वर्मा, वीर सावरकर, मदनलाल धींगरा, आदि ने देश में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया. सावरकर के ग्रन्थ "1857- प्रथम स्वातंत्रय समर" ने तो जैसे देश में क्रान्ति की ज्वाला को भड़का दिया. करतार सिंह सराभा, खुदीराम वोस, रास बिहारी बोस, जैसे हजारों युवा हथियार लेकर अंग्रेजों को मार भगाने को तत्पर हो गए.
कर्नल वायली, कलक्टर जैक्शन जैसे अंग्रेजों का क्रांतिकारियों ने बध कर दिया. 1905 से 1915 तक का समय द्वितीय स्वाधीनता संग्राम इसीलिए कहा जाता है. दुसरे स्वाधीनता संग्राम में कांग्रेस शामिल नहीं हुई बल्कि ये लोग केवल सावरकार, मदन लाल धींगरा एवं अन्य जोशीले युवाओं को बदनाम करने का काम ही करते रहे
गद्दारों की गद्दारी के चलते दुसरा स्वाधीनता संग्राम असफल हो गया. अनेकों क्रांतिकारी मुठभेड़ में मारे गए, कुछ फांसी चढ़ा दिए गए और कुछ को को कालापानी भेज दिया गया. . इसी बीच 1915 में गांधी का भारत आगमन हुआ और दूसरा स्वाधीनता संग्राम थम गया. यह कहानी थी कांग्रेस से जन्म से लेकर 30 साल तक के सफ़र की.
अपने जन्म से लेकर तीस साल तक कांग्रेस मात्र अंग्रेजो की चापलूस संस्था बनी रही. हालांकि लाल-पाल-बाल जैसों ने कुछ आवाज उठाने की कोशिश की मगर उनकी आवाज दबा दी गई. उनको गरम दल कहकर अपमानित किया जाता था. गाँधी के आगमन के बाद तो इनका महत्त्व बिलकुल ख़त्म कर दिया गया था.
1885 में क्रिसमस और न्यू ईयर की छुट्टियों के बीच में ए.ओ.ह्युम ने ऐसे 72 लोगों को अपने साथ लिया जो अंग्रेजो के भक्त थे. किसी भी संगठन का प्रथम अध्यक्षीय भाषण बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि उससे ही उस संगठन की दिशा तय होती है. कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने अपने भाषण में क्या कहा यह भी जान लीजिये.
"हम, ब्रिटश सम्राज्य के ईमानदार और स्वामिभक्त समर्थक लोग है। हमारी अभिलाषा है कि भारत मे, ब्रिटिश शासन को स्थायित्व मिले और यह कामना करते है कि भारत मे ब्रिटिश शासन अनंत काल तक चलता रहे। हमारी यह आधारभूत महत्वकांशा है कि हमको ब्रिटिश प्रशासन में हमारी हिस्सेदारी मिले। हमलोग, ब्रिटश नागरिको से ज्यादा ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठावान और उसके अटल शुभाकांक्षी है। भारत के लिये, ग्रेट ब्रिटेन ने बहुत कुछ किया है। हमें रेलवे और पाश्चात्य शिक्षा दी है। इसके लिये हमलोग, ग्रेट ब्रिटेन के प्रति सच्चे अर्थों में कृतज्ञ है"

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