Monday, 20 March 2017

"तलाक" या "विवाह विच्छेद" पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता

तलाक एक बहुत बुरी घटना है जो किसी भी दम्पत्ति के जीवन में नहीं होनी चाहिए. इसके द्वारा केवल दो व्यक्ति (पति / पत्नी) ही नहीं बल्कि उनसे जुड़े अनेकों लोग प्रभावित होते हैं. किसी भी दम्पत्ति का कोई भी शुभचिंतक कभी यह नहीं चाहता कि-उनके मित्र या रिश्तेदार का तलाक हो, लेकिन जब विवाद ज्यादा बढ़ जाए तो तलाक बेहतर विकल्प है.

पति पत्नी एक दुसरे से दिन-रात लड़ते रहे, घर के बाहर नाजायज सम्बन्ध रखें, तनाव ग्रस्त होकर आत्मह्त्या कर लें या अपने साथी की ह्त्या करदें, उससे कहीं ज्यादा बेहतर है कि - उनको अलग कर दिया जाए और उनको नये सिरे से जीवन जीने का मौक़ा दिया जाए. प्राचीन काल से लेकर आजतक इसपर चिन्तन मनन लगातार चलता रहा है.

आज जब "तलाक" के नियमो के सिंहावलोकन की बात उठती है तो सभी लोग मुसलमानों की तरफ देखने लगते हैं. यह ठीक है कि - मुस्लिम समाज में तलाक के सम्बन्ध में कई विसंगतियां है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि -बाक़ी समाज में जो नियम हैं वो सब बिलकुल ठीक है. समाजशास्त्रियों और कानूनविदों को इन पर बिचार करना चाहिए.

जहाँ मुस्लिम समाज में तलाक देना बहुत आसान है, वहीँ हिन्दू समाज में तलाक देना बहुत कठिन है, और इन दोनों ही बातों के बुरे परिणाम देखने को मिलते हैं. जहाँ तीन बार तलाक बोलकर पत्नी को घर से निकालने वाले नियम ने मुस्लिम औरतों को भयभीत करके रखा है, वही लम्बी कानूनी प्रिक्रिया ने हिन्दू दम्पत्तियों को परेशान कर रखा है.

आज अगर किसी हिन्दू पति-पत्नी की आपस में नहीं बनती है और वो तलाक चाहते हैं तो यह प्रिक्रिया इतनी लम्बी हो जाती है कि - कई मामलो में तो उनकी दोबारा विवाह करने की उम्र भी निकल जाती है. इसके अलावा महिला के बकील समझा बुझाकर पुरुष और उसके परिवार पर दहेज तथा मारपीट का इल्जाम लगवा देते है, चाहे ऐसी कोई बात हो ही न.

ऐसे ही पति का वकील पति को, पत्नी पर चरित्रहींन होने का आरोप लगाने की सलाह देता है. फिर शुरू होता है आरोप-प्रत्यारोप तथा तारीख पर तारीख का भयानक दौर, जिसका अंत ज्यादातर पति पक्ष द्वारा मोटी रकम देने के साथ होता है. जिसमे अक्सर वकील और पुलिस भी हिस्सा लेती है. कई मामलों में तो लोगों को आत्महत्या करते भी देखा गया है.

ऐसी ही कुछ परेशानिया मुश्लिम समाज में हैं. वहां तलाक देना इतना ज्यादा आसान है कि - पत्नी सदैव इस बात से डरती रहती है कि- पता नहीं उसका पति कब तलाक दे दे. मुश्लिम समाज में यदि कोई पति तलाक देना चाहता है तो उसे पत्नी को दोषी बताने की आवश्यकता भी नहीं, बस तीन बार तलाक बोला और मेहर की रकम देकर छुट्टी कर दी.

अगर तलाक हो जाने के पर, कभी गलती का अहेसास हो जाने के बाद, दोबारा साथ रहने की इच्छा हो तो उस महिला को हलाला कराना पड़ता है. हलाला का अर्थ यह होता है कि वो महिला पहले किसी अन्य पुरुष से निकाह करे फिर वहां से तलाक लेने के बाद ही अपने पूर्वपति से दोबारा शादी कर सकती है. यह भी स्त्री के लिए बहुत मुश्किल बात है.

कुल मिलाकर तलाक की प्रिक्रिया पर पुनर्विचार परम-आवश्यक है. पुराने नियमो की अच्छाई और बुराई, दोनों पर चर्चा करने के बाद, ऐसे नए नियम बनाने चाहिए जिससे, वो चाहे महिला हो या पुरुष, हिन्दू हो या मुसलमान, किसी को भी ज्यादा परेशानी न हो और सम्बन्ध खराब होने पर, अपना सम्बन्ध बिच्छेद कर नए सिरे से अपनी जिन्दगी शुरू कर सके.

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