मुहम्मद साहब के नेतृत्व में अरब बहुत शक्तिशाली हो गए थे. उन्होंने एक बड़े साम्राज्य पर अधिकार कर लिया था, जो इससे पहले अरबी इतिहास में शायद ही किसी ने किया हो. सन् 632 में पैगम्बर मोहम्मद की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी को "खलीफा" कहा गया. "खलीफा" मुहम्मद साहब का प्रतिनिधि माना जाता है.
इस्लाम के पहल॓ खलीफ़ा "अबु बकर" थ॓ जो मुहम्म्द साहब के सबसे शुरू के अनुयायियों में से एक थ॓. इसके बाद "उमर" दुसरे खलीफा बने और उनके बाद उस्मान तीसरे खलीफा बने. उस्मान के बाद अली चौथे खलीफा बने, उनकी हत्या भी पिछले दो खलीफ़ाओं की तरह कर दी गई थी . सिया - शुन्नी में झगड़े की बजह भी यही चली आ रही है.
ज्यादातर खलीफाओं की हत्या के बाद खिलाफत का परिवर्तन हुआ. खलीफ़ा बनने का अर्थ था - इतने बड़े साम्राज्य का मालिक. अतः इस पद को लेकर विवाद होना स्वाभाविक था. सारी दुनिया के मुसलमान खलीफा को अपना नेता मानते थे. चाहे कोई मुसलमान किसी भी देश में रहता हो, उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण खलीफा का फरमान होता था.
1924 में तुर्की के शासक कमाल पाशा ने, अंग्रेजों के सहयोग से, खिलाफ़त का अन्त कर दिया और तुर्की को एक गणराज्य घोषित कर दिया. तब भी मुसलमानों ने खलीफा को बहाल करने के लिए जगह जगह आन्दोलन किये. भारत में भी जो मुसलमान 1858 के बाद अंग्रेजों के बिरुद्ध नहीं बोले उन्होंने भी तब अंग्रेजों के बिरुद्ध "खिलाफत आन्दोलन" चलाया.
उस समय भारत में एक तथाकथित "सत्यवादी माहात्मा" ने झूठ बोलकर मुसलमानों के इस "खिलाफत आन्दोलन" को अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई बताया. उन्होंने हिन्दु आन्दोलनकारिओं को समझाया कि - मुसलमान भी लड़ाई में हमारे साथ है. हिन्दुओं को झूठ समझाया कि - "खिलाफत" का मतलब "अंग्रेजो के खिलाफ" कार्यवाही है.
अरबी में ख़लीफ़ा का अर्थ प्रतिनिधि या उत्तराधिकारी होता है. कुरान में इसे न्यायप्रिय शासन के रूप में देखा गया है. आज भी दुनिया के अधिकाँश मुसलमान खिलाफत का समर्थन करते हैं. 2006 में एक सर्वेक्षण' में शामिल मुस्लिम्स में से दो-तिहाई ने "सभी इस्लामी देशों को एक नई ख़िलाफ़त के तहत एक हो जाने" का समर्थन किया था.
इस्लामी चरमपंथी संगठन "आईएसआईएस" ने इराक़ और सीरिया में अपने कब्ज़े वाले इलाक़े में 'ख़िलाफ़त' यानी इस्लामी राज्य का ऐलान किया. आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया) ने 29 जून 2014 को अपने प्रमुख "अबु बक्र अल-बगदादी" को एक नया 'खलीफा' घोषित किया हैं. शेष दुनिया के लिए यह बड़ी चिंता का बिषय है.
आईएस प्रमुख अबू बकर अल-बग़दादी ने ख़ुद को 'ख़लीफ़ा' यानी दुनिया के मुसलमानों का नेता बताया. अल-बग़दादी का कहना था कि 'ख़िलाफ़त' के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर करना, दुनिया भर के सभी मुसलमानों की धार्मिक जिम्मेदारी है. लेकिन मध्य-पूर्व क्षेत्र में इसके ख़िलाफ़ बहुत तीखी प्रतिक्रिया और आलोचना हुई.है.
हालांकि ज्यादातर मुस्लिम देशों ने उसे अपना "खलीफा" मानने से इनकार कर दिया है लेकिन फिर भी इसको बहुत हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. उसके इशारे पर दुनिया भर में जो युवा आतंकवाद का रास्ता अपना रहे हैं या आतंकी कार्वहियाँ कर रहे हैं उनको देखते हुए "खिलाफत" को पूरी तरह से नकारना बेबकूफी ही होगी.
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