Saturday, 4 March 2017

कांग्रेस की स्थापना कब, किसने और क्यों की थी ? (भाग- 02)

जैसा कि - आपको लेख के पहले भाग में बताया गया है कि - क्रांतिकारियों से नफरत करने वाले एक अंग्रेज उच्च अधिकारी ने, सेवानिवृत्ति के बाद, कुछ अंग्रेज टाईप भारतीयों को लेकर 1885 में "इंडियन नेशनल कांग्रेस" की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य अर्द्ध अंग्रेज अर्द्ध भारतीय लोगों का सहारा लेकर, जनता के मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत कम करना था.
ए. ओ. ह्युम की यह चाल कामयाब रही और लगभग बीस साल तक कोई क्रांतिकारी घटना नहीं हुई. 1905 में अंग्रेजों ने मुसलमानों को खुश करने के लिए, हिन्दू - मुस्लिम आवादी के घनत्व के आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया. यह बात देशभक्त हिन्दुओं को बर्दाश्त नहीं हुई और अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बनने लगा. बंग-भंग का बहुत बिरोध हुआ.
हालांकि अंग्रेजों के खिलाफ बंगाल पहले ही जागने लगा था. 1902 से ही अनुशीलन समिति और युगांतर जैसी संस्थाए उभरने लगी थीं, जो सशत्र क्रान्ति के द्वारा अंग्रेजों को भगा देना चाहती थीं, लेकिन इनको जन समर्थन नही मिलता था. ए. ओ. ह्युम की कांग्रेस ने इतना बढ़िया काम किया था कि- भारत की आम जनता भी अंग्रेजों के खिलाफ कुछ नहीं सुनती थी.
बंग-भंग के बाद युगांतर और अनुशीलन समिति ने अंग्रेजों के खिलाफ कार्यवाहियां तीव्र कर दीं, इनका उद्घोष था "वन्देमातरम". बंगाल के समस्त लोग चाहे वो हिन्दू हों या मुस्लिम वन्देमातरम का उद्घोष करने लगे. ये लोग बम बनाने, युवाओं को पर्शिक्षण देने का काम करते थे और मौक़ा मिलने पर अंग्रेजों और उनके चापलूसों का बध करने से नहीं चूकते थे.
इसी बीच महाराष्ट्र में क्रान्ति का अलख जगाने के लिए स्वातंत्रवीर सावरकर ने 1904में "अभिनव भारत" की स्थापना की. यह लोग बौद्धिकता से अंग्रेजों का मुकाबला करते थे. अभिनव भारत ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, तथा देशभक्ति पूर्ण साहित्य का प्रचार करना शुरू कर दिया. सावरकर ने 1857 के ग़दर को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम साबित कर दिया.
युगांतर, अनुशीलन समिति, अभिनव भारत, आदि पर अलग से लेख लिखकर बताउंगा, फिलहाल चर्चा कांग्रेस के स्वाधीनता संग्राम (?) पर रखते हैं. उस द्वितीय स्वाधीनता संग्राम ( 1905 से 1915) में कांग्रेस किसी भी प्रकार से शामिल नहीं हुई, बल्कि उस लड़ाई को कमजोर करने के लिए "वन्देमातरम" को लेकर विवाद पैदा करना शुरू कर दिया.
उन दिनों हिन्दू और मुस्लिम सभी "वन्देमातरम" का उद्घोष करते थे. तब इन लोगों ने बड़ी चालाकी से मुसलमानों को समझाना शुरू किया कि- वन्देमातरम का उद्घोष इस्लाम बिरोधी है. उनकी यह चाल भी काफी हद तक कामयाब रही और मुस्लिम क्रान्ति से दूर हो गए, इसी लिए द्वितीय स्वाधीनता संग्राम में बहुत ढूँढने पर इक्का दुक्का मुस्लिम नाम दिखाई देंगे.
द्वितीय स्वाधीनता संग्राम ( 1905 से 1915) से कांग्रेस खुद तो दूर रही लेकिन स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने वालों को जरुर बदनाम करती रही. मदनलाल धींगरा द्वारा कर्नल वायली का बध करने पर सावरकर की आलोचना की, कि - युवाओं को आतंकवाद का गलत रास्ता दिखा रहे हैं. नाशिक के कलेक्टर जैक्सन के बध के लिए भी सावरकर को दोषी बताया.
अंग्रेज अथवा अंग्रेज के चापलूस भारतीय के बध पर, यह लोग आलोचना करते थे लेकिन अंगेजों द्वारा किसी क्रांतिकारी की ह्त्या, फांसी अथवा कालापानी की सजा पर चुप्पी साध लिया करते थे. अंग्रेजों ने जैक्सन की ह्त्या का षड्यंत्र करने का आरोप लगाकर, 4 जुलाई 1911को द्वितीय स्वाधीनता संग्राम के सूत्रधार सावरकर को कालापानी की सजा दे दी.
दस साल कालापानी और तीन साल रत्नागिरी की सजा काटने वाले सावरकर की, कांग्रेसी नेता हमेशा ही यह झूठ बोलकर आलोचना करते रहे कि - सावरकर अंग्रेजों से माफी मागकर छूटे. यह झूठा आरोप भी वो कांग्रेस लगाती है जो खुद द्वितीय स्वाधीनता संग्राम के समय आजादी की लड़ाई से दूर रहकर अंग्रेजों की चापलूसी किया करती थी.
सावरकर की 1913 में डाली गई याचिका भी अंग्रेजों ने उसी समय खारिज कर दी थी. नाशिक षड्यंत्र के आरोप सिद्ध न कर पाने के कारण उनको 21मई 1921 को कालापानी से रिहा करना पडा था लेकिन उसके बाद भी तीन साल रत्नागिरी जेल में बंद रखा. उस काल के सभी क्रांतिकारी सावरकर को अपना आदर्श मानते थे, किसी कांग्रेसी नेता को नहीं.

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