
शाहजहाँ भी इसे मुग़ल वंश का अगला बादशाह बनते हुए देखना चाहता था. शाहजहाँ ने आरम्भ में दारा शिकोह पंजाब का सूबेदार बनाया गया. दारा एक बहादुर और समझदार इन्सान था.और वह सभी धर्म और मज़हबों का समान रूप से आदर करता था. उसकी इस बात से कट्टरपंथी मुसलमान नाराज रहते थे और उसे इस्लाम बिरोधी कहते थे.
मुल्लाओं की नाराजगी का लाभ उठाने के लिए दारा के छोटे भाई "औरंगजेब" ने अपने आपको कट्टर मुस्लिम दिखाना शुरू कर दिया, जिससे कट्टर मुसलमान "दारा शिकोह" के बजाय "औरंगजेब" को अगला शासक बनाने की बात करने लगे. यह देखकर "औरंगजेब" ने अपने आपका और भी ज्यादा कट्टर हिन्दू बिरोधी रुख अख्तियार कर लिया.

दारा शिकोह ने आगे की तैयारी करने के लिए अपने पुराने मित्र, दादर के अफ़ग़ान सरदार "मलिक जीवन ख़ान " के पास शरण ली, लेकिन जीवन खान गद्दार निकला. उसने "दारा" को "औरंगजेब" के हवाले कर दिया. औरंगजेब ने क्रूरता की हदें पार करते हुए पहले अपने बड़े भाई को भिखारियों की पोशाक में हथिनी पर बिठाकर सारे शहर में घुमाया.
उस पर मुल्लाओं के सामने धर्मद्रोह का मुकदमा चलाया. उस पर आरोप लगाया गया कि- वह अन्य तुच्छ धर्मों को भी "महान इस्लाम" के बरावर मानता है. मुल्लाओं ने उसे काफिर करार देकर, सजा ए मौत का ऐलान कर दिया और 30 अगस्त, 1659 को दारा शिकोह का सर काट कर मार दिया गया. दारा के बड़े बेटे सुलेमान की भी ह्त्या कर दी.
औरंगजेब की क्रूरता यहां भी ख़त्म नहीं हुई . उसने दारा का कटा सर एक थाली में रखकर जेल में बंद अपने पिता शाहजहाँ और उनकी बढ़ी बेटी बेगम जहाँ आरा के सामने पेश कर अपनी
ताकत का नगा प्रदर्शन किया. तब शाहजहाँ ने कहा -हिन्दू अपने भाई को हक़ दिलाने के लिए लड़ते है और एक तू है जो भाई का हक़ मारने के लिए उसकी हत्या कर दी.

दारा और सुलेमान की ह्त्या के बाद राज्य की दारा समर्थक प्रजा बाग़ी हो गई थी. तब मामले को स
म्हालने के लिए "औरंगजेब" ने अपनी एक बेटी का निकाह दारा के दुसरे बेटे से कर दिया. इस प्रकार भारत की जनता को एक समझदार राजा के बजाय क्रूर राजा की क्रूरता झेलनी पडी. भारत के इतिहास में औरंगजेब भारत का दुर्भाग्य साबित हुआ
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