1905 से 1915 की क्रांतिकारी गतिबिधियों को द्वितीय स्वाधीनता संग्राम कहा जाता है. युगांतर, अनुशीलन समिति, अभिनव भारत, हिन्दू महासभा, आदि की कार्यवाहियां, कामागाटामारू घटना, "1857- प्रथम स्वातंत्र समर" नामक ग्रन्थ का प्रकाशन, कर्नल वायली और कलक्टर जैक्सन का बध, सावरकर को कालापानी, इस कालखंड की प्रमुख घटनाये है.

इसके अलावा राजा महेंद्र प्रताप जाट का आजाद हिन्द फ़ौज बनाकर काबुल से देश की आजादी का ऐलान करना, लाला हरदयाल और श्याम कृष्ण वर्मा का लन्दन में देश की आजादी के लिए आवाज उठाना, मदनलाल धींगरा - करतार सिंह साराभा- खुदीराम बोस, बाघा जतिन,.. का बलिदान, "द्वितीय स्वाधीनता संग्राम" की महत्वपूर्ण घटनाये हैं.
उपरोक्त घटनाओं में से ज्यादातर पर मैं लेख लिखचुका हूँ जिनको आप मेरी टाइम लाइन अथवा ब्लॉग में पढ़ सकते हैं. इस काल खंड का अध्यन करने पर आप पायेंगे कि - अपने जन्म से लेकर तीस साल तक कांग्रेस का आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था. यह मात्र अंग्रेज टाईप भारतीयों की अंग्रेजों की चापलूसी के लिए बनी एक संस्था मात्र थी.
इसके अलावा आप एक बात और नोट करेंगे कि - 1858 के बाद से लेकर 1915 तक अंग्रेजों के खिलाफ कार्यवाही करने वाला कोई मुस्लिम नाम आपको बहुत मुश्किल से ही मिल सकेगा. बैसे यदि किसी को इस कालखंड के किसी मुश्लिम क्रांतिकारी का पता हो तो मुझे बताने की अवश्य कृपा करे , मैं उन की महानता पर भी कुछ लेख लिखना चाहता हूँ.
अब पुनः वापस आते है कांग्रेस पर. 1885 में जन्मी कांग्रेस का 1915 तक (तीस साल तक) कोई ख़ास महत्त्व नहीं रहा. 1905 से 1915 तक का समय बहुत ही उथल पुथल का रहा मगर कांग्रेस ने हमेशा उससे दूरी बनाकर रखी. 1915में में तो एक वार को अंग्रेज भी घबरा गए कि - उनको भारत छोड़ना पड़ सकता है. तभी अचानक गांधीजी का आगमन हुआ.
गांधीजी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था. 1888 में वकालत की पढ़ाई करने इंग्लैण्ड चले गए. वकालत की पढ़ाई करने के बाद 1893 में दक्षिण अफ्रीका जाकर वकालत का कारोवार करने लगे. 1915 में जब द्वितीय स्वाधीनता संग्राम अपने चरम पर था, तब अचानक गांधीजी का भारत आना हुआ और अचानक स्वाधीनता संग्राम थम गया.
गांधी जी ने देशवाशियों को समझाना शुरू कर दिया कि - हिंसा का रास्ता छोड़ दो, इससे कोई लाभ नहीं है. हम अहिंसा पूर्वक अंग्रेजों से अपने लिए अधिकार मांगेगे. लोग भी गांधीजी की बातों में आ गए उनको लगने लगा कि - इससे हमें बिना खून खराबे के आजादी मिल जायेगी. लेकिन गांधी ने बड़ी चतुराई से स्वराज की लड़ाई, को सुराज की लड़ाई में बदल दिया.
गांधी जी ने स्वराज (अर्थात स्वतंत्रता ) की मांग के बजाय सुराज ( अच्छा राज) मंगाना शुरू कर दिया. देश की जनता इससे भ्रमित हो गई. हालांकि कान्ग्रेस में भी लाला लाजपतराय, विपनचन्द्र पाल और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेता थे जो "आजादी" की मांग को लेकर अड़े थे , मगर उनको भी अंततः गांधी जी की जिद के आगे झुकना पडा.
गांधीजी ने 1918 में चम्पारन और खेड़ा में किसानो के लिए किये आंदोलन में पहली सफलता मिली, इससे देशवाशियों का उनमे विशवास बढ़ गया. 1919 में अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में गांधीवादी तरीके से जनसभा कर रहे,लोगो पर अंग्रेजों ने अंधाधुंध गोलियां चला दी. लेकिन इस मुद्दे पर गांधी जी ने कभी भी बोलना उचित नहीं समझा.
देश की जनता अंग्रेजों से जलियावाला बाग़ ह्त्या काण्ड का बदला लेना चाहती थी मगर गांधी जी लोगों को समझाने में कामयाब रहे. उन्ही दिनों अंग्रेजो ने तुर्की के खलीफा को सिंहासन से उतार दिया था. खलीफा के समर्थन में दुनियाभर के मुसलमान सड़कों पर उतर आये. भारत में भी मुसलमान अंग्रेजों के खिलाफ उग्र प्रदर्शन करने लगे.
1921 में गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाप असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया. गाँधी जी इस आन्दोलन द्वारा ब्रिटिश राज के अधीन केवल औपनिवेशिक अधिकारों की मांग कर रहे थे जबकि देश की जनता इसको आजादी की लड़ाई समझ रही थी. कुछ इतिहासकार तो यह भी लिखते हैं कि - यह अंग्रेजों के खिलाफ जनाक्रोश शांत करने का उपाय मात्र था यह आन्दोलन.
इस आरोप को इस बात से भी बल मिलता है कि - आन्दोलन गांधीजी की उम्मीद से ज्यादा तीव्र हो गया था और लोग इसे स्वाधीनता की निर्णायक लड़ाई मानने लगे थे, जिससे अंग्रेज भी गांधीजी से नाराज हो गए थे और गांधी जी किसी प्रकार से आन्दोलन वापस लेने का बहाना ढूँढने लगे. तभी 4 फरवरी 1922 को चौरीचौरा में भयानक काण्ड हो गया.
असहयोग आन्दोलन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने गोलिया चला दी जिसमे ढाई सौ के लगभग प्रदर्शनकारी मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए. अपने साथियों की ऐसी हालत देखकर प्रदर्शनकारियों ने भी पुलिस पर हमला कर दिया तब वो 23 पुलिसवाले चौरीचौरा थाने में छुप गए, वहां पर प्रदर्शनकारियों ने आग लगाकर उनको ज़िंदा जला दिया.
गांधी जी तो शायद ऐसा कोई बहाना ही ढूंढ रहे थे. उन्होंने चौरी चौरा में पुलिस वालों को ज़िंदा जलाने की घटना का दुःख मनाते हुए, 8 फरवरी 1922 को अपने बुरी तरह से असफल "असहयोग आन्दोलन" को वापस लेने का ऐलान कर दिया. अंग्रेजों के डर से गांधी ने उन आन्दोलनकारियों को भी अपने आन्दोलन का हिस्सा मानने से इनकार कर दिया.
चौरीचौरा में अंग्रेजों ने बहुत अत्याचार किये और 172 आन्दोलनकारियों को फांसी की सजा सुनाई. गांधी जी खुद एक बड़े वकील थे और उनके अलावा भी कांग्रेस पार्टी में एक से बढ़कर एक वकील की भरमार थी, लेकिन फिर भी कोई वकील उन आन्दोलनकारियों की पैरवी करने नहीं आया और उन आन्दोलन कारियों को मरने के लिए छोड़ दिया.
ऐसे समय में आंदोलकारियों का साथ हिन्दू महासभा के संस्थापक मदन मोहन मालवीय जी ने दिया. उन्होंने हाईकोर्ट इलाहाबाद में अपील कर 153 आंदोलकारियों को फांसी से बचाया. जिन 19 आंदोलकारियों की सजा बरकरार रही उनको बचाने के लिए वायसराय से अपील की, लेकिन गांधी / नेहरु ने वहां भी हस्ताक्षर करने से मना कर दिया.

यह था 1915 से 1925 तक का वह इतिहास, जिसको कांग्रेसी अपनी महान उपलब्धि बताते फिरते हैं. कुछ इतिहासकार तो यहाँ तक लिखते हैं कि- गांधी जी और अंग्रेजों का गुप्त समझौता था कि- थोडा सा असहयोग आन्दोलन करने के बाद, अंग्रेज औपनिवेशिक स्वराज देने वाले थे, लेकिन चौरीचौरा हिंसा के बाद अंग्रेज नाराज हो गए थे.
आपकी जानकारी के लिए एक बात और बता देता हूँ , गांधी अंग्रेजो की सेना में भी नौकरी कर चुके थे