Sunday, 3 March 2019

सलीम और अनारकली

आखिर सलीम और अनारकली के सम्बन्ध से अकबर इतना नाराज क्यों था ?
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हम में से ज्यादातर ने फिल्म "मुग़ल ए आजम" देखी है. उसमे दिखाया गया है कि- अकबर के बेटे सलीम (जहांगीर) का अनारकली नाम की कनीज से इश्क हो जाता है. अकबर इस सम्बन्ध के खिलाफ था. उसको लेकर बाप बेटे में ठन जाती है. सलीम बागी हो जाता है और दोनों के बीच में सैन्य युद्ध की नौबत तक आ जाती है
अकबर अनारकली को पकड़कर दीबार में जिन्दा चुनवा देने का नाटक करता है लेकिन अनारकली की माँ को दिए बचन को निभाने की खातिर उसे चोर रास्ते से जिन्दा निकलवा देता है. आज की पीढ़ी इस फिल्म में दिखाई गई उसी कहानी को ही इतिहास मानती है जो 1962 में के. आसिफ की फ़िल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में दिखाया गया था.
सलीम -अनारकली का जिक्र न अकबर के शासनकाल में "अबुल फजल" द्वारा लिखित "अकबरनामा" में है और न जहांगीर की "ताज़ाक़-ए-जहाँगीरी" में है, जो उसके 1605 से 1622 के शासनकाल का वर्णन करती है. अब सवाल उठता है कि - आखिर के. आसिफ की अनारकली कहाँ आयी कहाँ से और कैसे आई ?
इसको जानने और समझने के लिये हमें 1920 के "लौहार" चलना पड़ेगा जहां एक नाटककार "इम्तियाज़ अली ‘ताज" थे, जो उस वक्त गवर्मेंट कॉलेज लौहार में पढ़ते थे, उन्होंने अपने कॉलेज के पास बने एक पुराने मकबरे को देखा था जिसको अनारकली का मकबरा कहा जाता था. वहां उस कब्र पर यह पंक्तियाँ लिखी हुई थी.
ता कयामत शुक्र गोयं कर्द गर ख्वाइश रा
आह! गर मन बज बीनाम रुइ यार ख्वाइश रा :– मजनूं सलीम अकबर
इसका अर्थ है कि - "हे खुदा में तुझको कयामत तक याद करूँगा,
एक बार फिर मेरे हाथों में महबूबा का चेहरा आ जाये"
यह मजनूं सलीम अकबर, जहांगीर ही था जिसने 1615 में इस कब्र पर मकबरा बनवाया था. इतिहास में यह कहीं दर्ज नही है कि- इस कब्र में कौन है लेकिन लाहौर की जनता पीढ़ी दर पीढ़ी यही मानती आ रही है कि यह अनारकली की ही कब्र है. लाहौर के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी सलीम - अनारकली की प्रेम कहानी के किस्से सुनते सुनाते आ रहे हैं.
इम्तिहाज़ अली ‘ताज’ ने इस मकबरे और उस पर जहांगीर की लिखी इश्क में डूबी दो लाइन तथा लाहौर में बुजुर्गों से सुने मुगलिये किस्सों को पिरो कर आशिकी का, एक नाटक लिखा और दुनिया को सलीम अनारकली की दास्तान ए मुहब्बत पेश कर दी. ताज ने नाटक के शुरू में ही लिखा था कि-यह काल्पनिक कहानी है.
लेकिन एक मुगलिये शहजादे और महल की नाचनेवाली के इश्क का किस्सा कुछ इस तरह लोगों को पसंद आया कि- नाटकों, नौटंकियों और फिल्मों के सहारे नया इतिहास बन कर लोगो तक पहुंच गया. इम्तिहाज़ अली ‘ताज’ की इसी कहानी को, "के. आसिफ" ने एक राजनैतिक प्रपोगंडे को स्थापित करने के लिये इस्तेमाल किया.
भारत को 1947 में मुसलमानों ने धर्म के आधार पर तोड़ा था, इसलिये बहुसंख्यक हिन्दुओ के बीच मुस्लिम इतिहास और मुसलमानों की छवि अच्छी बनाने के लिये अकबर को धर्मनिर्पेक्षिता का आदिपुरुष बना कर प्रस्तुत किया गया. इस फिल्म में अकबर की केवल एक पत्नी दिखाई गई जो हिन्दू थी और पूरी आजादी से कृष्ण की पूजा करती थी.
जबकि अकबर का निकाह जोधाबाई को मुसलमान (मरियम उज जमानी) बनाने के बाद हुआ था. अकबर एक अय्यास राजा था. उसके हरम पत्नियों, उप पत्नियों, रखैलों और बंदियों की संख्या लगभग 500 बताई जाती है. जब अकबर खुद इतनी सारी औरतों से सम्बन्ध रख सकता था तो उसे सलीम के एक सम्बन्ध से इतना ऐतराज क्यों था ?
फिल्म में अकबर को ऐसा धर्मनिरपेक्ष शासक दिखाया गया जो 20वी शताब्दी के मुसलमानों की ‘टू नेशन थ्योरी’ को नकारता है और भारत के मुसलमानों की छवि को सुधारता है. इसी फिल्मी इतिहास के घाल मेल में अनारकली की जीवन दान देने वाला अकबर महान हो गया और लाहौर में मकबरा होते हुये भी, अनारकली कहीं गुम हो गयी.
"इम्तियाज़ अली ‘ताज" से भी पहले भारतीय लेखक "नूर अहमद चिश्ती" ने 1860 में अपनी किताब ‘तहक़ीक़ात-ए-चिश्तिया’ में "अनारकली का नाम लिया था. उसने लिखा था कि - ‘अकबर बादशाह की सबसे खूबसूरत और पसंदीदा रखैल अनारकली थी, जिसका असली नाम नादिरा बेगम उर्फ शरफ़-उन-निस्सा था.
अनारकली का फिर जिक्र 1892 में "सईद अब्दुल लतीफ" की "तारीख-ए-लाहौर" में भी आया है, जिसमे लिखा है कि ‘अनारकली का नाम नादिरा बेगम उर्फ शरफ़-उन-निस्सा ही था और वो अकबर की रखैल ही थी लेकिन उसको अकबर ने सलीम के साथ अवैध सम्बन्ध होने के शक में जिंदा चुनवा दिया था’.
इसका मतलब यह है कि - लाहौर में अनारकली के अस्तित्व को लेकर कोई शक नही था लेकिन वो अकबर की रखैल के रूप में जानी गयी थी. इसका मतलब यह है कि 20 वीं शताब्दी की सलीम की मुहब्बत अनारकली, 19 वीं शताब्दी में अकबर की रखैल थी जिसके नाजायज सम्बन्ध अकबर के बेटे सलीम के साथ भी थे.
अगर विदेशी इतिहासकारों की लिखी बातों को माने तो, लिखित इतिहास में अनारकली का पहला जिक्र एक ब्रिटिश घुम्मकड़ व व्यापारी "विलियम फिंच" के संस्मरणों में मिलता है. फिंच ने 1608 से 1611 तक में नील का व्यापार करने के लिये लाहौर की यात्रा की थी. उस वक्त जहांगीर को बादशाह बने 3 वर्ष हो चुके थे.
उसने लिखा है कि ‘अनारकली बादशाह अकबर की बीबियों में से एक थी जो अकबर के पुत्र दानियाल शाह की मां थी. वह 40 साल की थी लेकिन बहुत खूबसूरत थी. अकबर को यह शक हो गया था कि- अनारकली का उसके बेटे सलीम (जो उस वक्त करीब 30 साल का और तीन बच्चों का बाप था ) के साथ नाजायज सम्बन्ध हैं.
जब 1605 में जहांगीर बादशाह बना तो अपनी मुहब्बत के प्रतीक के तौर पर कब्र पर मकबरा बनवाया था’. विलियम फिंच के बाद आये एक ब्रिटिश यात्री "एडवर्ड टेरी" ने अपने संस्मरण में लिखा है कि - बादशाह अकबर ने शहजादे सलीम को उत्तराधिकारी से हटा देने की धमकी दी क्योंकि सलीम के अनारकली के साथ नाजायज सम्बन्ध थे,
अनारकली को बेटे सलीम को अपने इश्क में फंसाने का गुनेहगार मानते हुए अकबर ने, अनारकली की ज़िंदा दीवार में चुनाव दिया था. इसी बात पर अब्राहम रैली ने 2000 में प्रकाशित अपनी किताब "द लास्ट स्प्रिंग: द लाइव्स एंड टाइम्स ऑफ द ग्रेट मुग़लस" में अकबर - सलीम - अनारकली पर शंका व्यक्त करते हुए लिखा है
"ऐसा लगता है कि अकबर और सलीम के बीच "ओएडिपालकॉन्फ्लिक्ट"(सौतेली माँ और पुत्र के बीच अवैद्ध सम्बन्ध
को लेकर संघर्ष) था. रैली ने अपनी बात को सिद्ध करने के लिये अब्दुल फजल द्वारा उल्लेखित एक घटना को आधार बनाया है. जिसमे वो लिखते है कि- एक शाम शाही हरम के पहरेदारों ने हरम में पकड़े जाने पर सलीम को पीटा था.
कहानी यह बताई जाती है कि- एक पागल शाही हरम में घुस आया था और सलीम उसको पकड़ने के लिए हरम में घुस आया था लेकिन पहरेदारों ने उसी को ही पकड़ लिया था. यह सुनकर बादशाह अकबर गुस्से में खुद वहां पहुंच गये और तलवार से उसका गला काटने जारहे थे कि उन्होंने सलीम का चेहरा देख कर अपना हाथ रोक लिया.
16वी शताब्दी में जन्मी और मरी अनारकली, 5 शताब्दियों की कहानी की यात्रा में 21वी शताब्दी में अकबर की बीबी से रखैल और फिर अकबर के दरबार की बांदी बन चुकी है.जो सलीम की प्रेमिका बन गई. वो शहजादे सलीम की सौतेली मां से सलीम के प्रेम में गिरफ्त एक गरीब कनीज बन चुकी है. (फिल्म - मुगल-ए-आज़म , अनारकली )
आज कई लोग अनारकली को काल्पनिक भी बताते है. लाहौर में अनारकली का मकबरा और उस पर "सलीम" के इश्क में डूबी हुई पंक्तिया सबूत के तौर पर लिखी होने के बाद भी, लोग उसको क्यों भुला देना चाहते हैं ? ऐसा तो नहीं कि- मुग़लिया शासन के दौर के सत्य को शर्मिंदगी से बचाने के लिए अनारकली के अस्तित्व को नकारा जा रहा है ?

1 comment:

  1. आज हम टीवी पर मुगल ए आजम फिल्म देखी लेकिन पता नहीं कुछ मन को जांचा नहीं इसलिए गूगल ढूंढ रहा था तो आपका आर्टिकल मिला और सभी शंकाएं दूर हुई. 🙏. ये अपनी बहनो से विवाह करते हैं तो सौतेली माँ और बेटा ये रिश्ता इनके लिए कहा कठिन है.

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