Sunday, 3 March 2019

महात्मा गांधी : भारत में मुस्लिम तुष्टीकरण के जनक

 "1857 की क्रांति" भले ही असफल हो गई थी, लेकिन उसने एक बहुत बड़ा काम किया था कि - भारत के हिन्दू और मुस्लिम एक हो गये थे. हिन्दुओं और मुस्लिमो ने एकजुट होकर कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों का मुकाबला किया और शहीद हुए. हिन्दू - मुस्लिम की यह एकता 1857 से लेकर 1920 तक बरक़रार भी रही. हिन्दू मुस्लिम एकता को भंग किया 1921 के "खिलाफत आन्दोलन" को समर्थन देने की "गांधी जी" की अदुर्दार्शिता ने.
तुर्की का सुलतान (खलीफा) अपने आपको दुनियाभर के मुसलमानों का नेता कहता था. प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने तुर्की को विघटित कर सुलतान को गद्दी से उतार दिया था. भारत के मुसलमान खुलकर सुलतान के समर्थन में आ गए और अंग्रेजों के खिलाफ "खिलाफत आन्दोलन" शुरू कर दिया. खिलाफत आन्दोलन (1919-1924) भारत में मुख्यत: मुसलमानों द्वारा चलाया गया धार्मिक आन्दोलन था.
इस आन्दोलन का उद्देश्य तुर्की में खलीफा के पद की पुन:स्थापना कराने के लिये, अंग्रेजों पर दबाव बनाना था. भारतीय मुसलमानों को खुश करने के लिए "गाँधी जी" ने कांग्रेस की ओर से खिलाफत आन्दोलन के समर्थन की घोषणा कर दी. श्री विपिन चन्द्र पाल, डा. एनी बेसेंट, सी. ऍफ़.एंड्रूज आदि जैसे नेताओं ने कांग्रेस की बैठक में खिलाफत के समर्थन का विरोध किया. लेकिन गाँधी जी खिलाफत आन्दोलन के खलीफा ही बन गए थे.
"कांग्रेस" ने मुसलमानों पक्ष में जगह-जगह प्रदर्शन किये. "अल्लाह हो अकबर" जैसे नारे लगाकर मुस्लिमो की भावनाएं भड़काई गयी. "महामना मदनमोहन मालवीय" तथा कुछ अन्य नेताओं ने चेतावनी दी कि- खिलाफत आन्दोलन की आड़ मैं मुस्लिम भावनाएं भड़काकर भविष्य के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है किन्तु - गांधीजी ने कहा ‘ मैं मुसलमान भाईओं के इस आन्दोलन को "स्वराज" से भी ज्यादा महत्व देता हूँ".
भारतीय मुसलमान खिलाफत आन्दोलन करने के वावजूद, अंगेजों का तो बाल भी बांका नहीं कर पाए, किन्तु उन्होंने पुरे भारत मैं मृतप्राय मुस्लिम कट्टरपंथ को, जहरीले सर्प की तरह जिन्दा कर डाला. खिलाफत आन्दोलन की असफलता से चिढ़े मुसलमानों ने पुरे देश मैं दंगे करने शुरू कर दिए. केरल के मालावार क्षेत्र में "मुस्लिम मोपलाओं" ने वहां के हिन्दुओं पे जो अत्याचार किये, उसकी कहानी सुनकर तो ह्रदय ही दहल जाता है.
"महात्मा गाँधी" कांग्रेसी मुसलमानों को तुष्ट करने के लिए "मोपला विद्रोह" को अग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह बताकर आततायिओं को स्वाधीनता सेनानी सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे, जबकि "मोपला" मैं हजारों हिन्दुओं की हत्या की गयी और 20,000 हिन्दुओं को धर्मान्तरित कर मुस्लिम बनाया गया. एनी बेसेंट ने कहा – “असहयोग आन्दोलन को खिलाफत का भाग बनाकर गांधीजी ने मजहवी हिंसा को पनपने का अवसर दिया.
मोपलाओं द्वारा किये गए अत्याचारों पर "डा. अम्बेडकर" ने अपनी पुस्तक "भारत का बिभाजन" में लिखा था : मालाबार और मुल्तान के बाद कोहाट में मजहबी उन्मादियों ने हिन्दुओं पर भीषण अत्याचार किये. ‘गाँधी जी हिंसा की प्रत्येक घटना की निंदा करते थे किन्तु गाँधी ने इन हत्याओं का कभी विरोध नहीं किया. गाँधी हिन्दू- मुस्लिम एकता के लिए इतने व्यग्र थे कि इसके लिए हिन्दुओं की हत्या से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था.
हिन्दू महासभा के नेता भाई परमानन्द जी ने चेतावनी देते हुए कहा था ‘ गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुसलमानों को तुस्ट करने के लिए जिस बेशर्मी के साथ खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया और अब खूंखार हत्यारे मोपलों की प्रसंसा कर रहे हैं, यह घातक नीति आगे चलके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने मैं सहायक सिद्ध होगी. इतिहासकार शिवकुमार गोयल ने अपनी पुस्तक मैं कांग्रेस और गांधी की भूमिका का विस्तार से उल्लेख किया है.
खिलाफत आन्दोलन के समय मुस्लिमो द्वारा अमानवीय अत्याचार के कारण हिन्दुओं और मुस्लिमो के बीच दूरी पैदा हो गई और वे एक दुसरे के शत्रु बन गए. देश के सभी हिन्दू नेता दंगों पर गांधी की चुप्पी से खफा थे. अंग्रेजों ने भी उनके इस मतभेद का लाभ उठाया और मुसलमानो को अलग देश की मांग करने के लिए उकसाया. इसी बीच "अब्दुल रशीद" नामक मुस्लिम युवक द्वारा "स्वामी श्रधानंद" की ह्त्या से हालात और खराब हो गए.
अपने ग्रन्थ "1857- प्रथम स्वातंत्र्य समर" में, क्रान्ति में हिस्सा लेने वाले मुस्लिम क्रांतिकारियों के बारे सम्मान पूर्वक विस्तार से लिखने वाले और इसके लिए कालापानी की कठोर सजा भोगने वाले "स्वातंत्र्यवीर सावरकर" भी खुलकर मुसलमानों के बिरोध में आ गए और हिन्दू रक्षा के लिए प्रयासरत हो गए. वीर सावरकर जी ने मालावार क्षेत्र का भ्रमण कर वहां के अत्याचारों पर ‘मोपला’ नामक उपन्यास लिखा था.
"डा.केशव बलिराम हेडगेवार" जैसे क्रांतिकारी नेता (जो बंगाल में "अनुशीलन समिति" के सद्स्य थे, आजाद जी के गुट में भी रहे और कांग्रेस के साथ भी "सविनय अवज्ञा आंदोलन" में हिस्सा ले रहे थे ) भी खुल कर हिन्दूराष्ट्र के पक्ष में आ गए. 1921 से 1924 तक हुए मुल्तान, मालाबार , कोहाट जैसे दंगों से क्षुब्द होकर उन्होंने 1925 में "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" नामक संगठन की स्थापना की जिसका उद्देश हिन्दुओं को संगठित करना था.
मुस्लिम लीग की अलग पाकिस्तान देश बनाने की मांग का हिदुवादी दल बिरोध करते थे क्योंकि वे सारे हिन्दुस्थान को अपने पूर्वजों की विरासत मानते थे. लेकिन उन्होंने भी रोज-रोज के हिन्दू -मुस्लिम दंगे से छुटकारा पाने के लिए "पाकिस्तान" और "हिन्दुस्थान" फार्मूले को स्वीकार कर लिया. लेकिन गांधी ने यहाँ भी हिन्दुओं के साथ धोखा किया, मुसलमानों को तो पाकिस्तान दे दिया किन्तु हिन्दुओं को हिन्दुस्थान नहीं दिया.
"गाँधीजी" के उस अन्याय के परिणाम का दुष्परिणाम बंटवारे के समय हुए भीषण दंगे के रूप में सामने आया. बंटबारे को अन्यायपूर्बक करने का ही परिणाम है कि - भारत में हमेशा ही जहाँ तहां दंगे होते रहते हैं, जिसमे बहुत ज्यादा जान और माल की हानि होती रहती है. इसके अलाबा ऐसी भी चर्चा थी कि- गाँधी जी अपनी महात्मा गिरी दिखाते हुए पापिस्तान को बंगलादेश से जोड़ने वाला 10 मील चौड़ा गलियारा देना चाहते हैं.
हिन्दुओं के साथ किये गए अन्याय के लिए, गांधी को जिम्मेदार मानकर "नाथूराम गोडसे" ने गांधी को गोली मार दी थी. मानव ह्त्या बहुत ही जघन्य अपराध है और गांधी जी की ह्त्या की भी निंदा की जानी चाहिए, लेकिन जरा सोंचो कि - कहीं अगर "पाकिस्तान-बंगलादेश" गलियारा बन गया होता तो हिन्दुस्थान की आज क्या स्थिति होती ? इस बात के लिए तो "नाथू राम गोडसे" को भी प्रणाम करने का दिल करता है

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