Sunday, 3 March 2019

गोकुला जाट और राजाराम जाट

औरंगजेब के जुल्म चरम पर थे, व्रज क्षेत्र में मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, हिन्दुओं को धर्म छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा था, हिन्दू पुरुषों को मारकर उनकी स्त्रीयों को जबरन उठाया जा रहा था. तब उस हैवान औरंगजेब को टक्कर देने के लिए एक जाट किसान "गोकुल सिंह" ने आगे बढ़कर औरंगजेब का मुकाबला करने का साहस किया.
गोकुल सिंह जाट (गोकुला जाट) ने जाटों, अहीरों और गूजरों को इकट्ठा कर औरंगजेब की सेना के खिलाफ लड़ने को तैयार किया. 1669 ई. मे गोकुला के नेतृत्व में जाटों ने औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह कर दिया. मथुरा के फौजदार अब्दुन्नवी ने उन पर हमला किया, लेकिन लड़ाई मारा गया.
इस सफलता से प्रोत्साहित होकर गोकुला जाट ने मथुरा से 24 मील दूर स्थित दोआब के परगना तथा शहर सादाबाद को ध्वँस कर दिया. गोकुला ने कुछ समय के लिए ब्रज को औरंगजेब के आतंक से मुक्त करा लिया था. मुघलों के लिए ये क्षेत्र अब सुरक्षित नहीं रह गया था. इस विद्रोह को कुचलने के लिए औरंगजेब विशाल शाही सेना भेजी.
प्रशिक्षित विशाल शाही सेना के सामने , ये जोशीले किसान भला कब तक मुकाबला कर सकते थे लेकिन फिर भी अपनी अंतिम सांस तक मुकाबला किया. जब लगा कि मुकाबला हार जायेंगे तो उनकी स्त्र्यों ने कहा कि तुमको हमारी चिंता रहती है इस लिए हमारा सर काटकर लड़ने जाओ और फिर या तो खुद मिट जाना या दुश्मनों को मिटा देना.
गोकुला जाट के नेत्रत्व में 20,000 जाट, शाही सेना से मुकाबला करने निकल पड़े. चार दिन चले इस युद्ध में जाटों ने मुघलों को भारी नुकशान पहुंचाया, लेकिन प्रशिक्षण, अनुशासन और युद्ध सामग्री की कमी के कारण जाटों को भी बहुत नुकशान हुआ. मुगल सेना ने 7000 जाटो को गोकुला व उसके चाचा उदयसिहँ सहित बँदी बना लिया.
इन वीरो को आगरा मे बादशाह के सामने पेश किया गया, जहाँ कोतवाली के चबूतरे पर गोकुला और उसके चाचा की टुकड़े टुकड़े करके, शहीद कर दिया गया. बाकी बँदियो का भी जँजीरो मे जकङकर अनेक यातनाएँ देकर म्रत्यु दी गई. युद्ध में मारे गए अनेकों जाटों कि विधवाओं ने अपनी इज्ज़त बचाने की खातिर जौहर कर अपनी जान दे दी.
औरंगजेब को जौहर का पता चला, तो उसने अपनी सेना को निर्देश देकर औरतों को जबरन उठवाना शुरू कर दिया. उसने सेना को सख्त हिदायत दी कि ये स्त्रीयों किसी भी तरीके से आत्म ह्त्या न कर सकें. इन स्त्रीयों को अधिकारियों और सैनकों को इनाम में दे दिया. कुछ इतिहासकार इस जुल्म को औरंगजेब द्रावारा "सति प्रथा का बिरोध" कह कर तारीफ़ करते हैं.
विद्रोह में अहीर और गूजर भी भारी संख्या में शामिल थे, लेकिन कहा उसे जाट विद्रोह ही जाता है. जाटों के इस विद्रोह के बाद देश की दबी कुचली जनता में अभुतपूर्व साहस का संचार हुआ और उसके बाद देश के अन्य इलाकों में भी विद्रोह शुरु हो गए. गोकुला जाट की शहादत के बाद जाटों का नेतृत्व "राजाराम जाट'' ने सम्हाला.
राजाराम ने मुग़लों के इलाकों में जमकर लूटपाट की एवं दिल्ली आगरा के बीच आवागमन के प्रमुख मार्गों को असुरक्षित बना दिया. जो भी मुग़ल सेनापति उसे दबाने व दण्डित करने के लिए भेजे गए वे सब पराजित होकर भाग गए. मंदिरों को तोड़ने , हिन्दू धर्म को भ्रष्ट करने करने का बदला लेने का उसने अजीब तरीका अपनाया.
उसने आगरा के पास अकबर और जहाँगीर के मकबरे पर हमला कर उसे ध्वस्त कर दिया. उसने कब्रों को खोदकर अकबर और जहाँगीर की अस्थियों को निकालकर उनका हिन्दुओं की तरह चिता में जलाकर हिन्दुओं के अपमान का बदला लिया. इस बात के लिए कुछ इतिहासकार राजाराम की निंदा भी करते हैं लेकिन ऐसा उसने केवल "जैसे को तैसा" की नीति के तहत किया था.

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