सर्फ एक्सल के विवादस्पद विज्ञापन को लेकर जिस तरह से अभियान चला उसके लिए सभी हिन्दुओं को हार्दिक साधुवाद. हिन्दुओं की जागरूकता का ही नतीजा है कि - "HUL" अपने "सर्फ़ एक्सल" के विवादास्पद विज्ञापन को वापस लेने पर मजबूर हुई है.
लेकिन हमें फिर भी अभी कुछ दिन तक "हिन्दुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड" के हर प्रोडक्ट्स का बहिष्कार जारी रखना चाहिए, जिससे आने वाले समय में केवल HUL ही नहीं बल्कि कोई भी कम्पनी हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने वाला विज्ञापन न बनाए.
फिल्म निर्माता हों या विज्ञापन निर्माता जानबूझकर , आजतक हिन्दुओं की भावनाओं का मजाक उड़ातेे रहे हैं, साथ ही अन्य धर्म के लोगों को बहुत ही सज्जन दिखाते रहे हैं. हिन्दुओं के इस पर कभी प्रतिक्रिया नहीं दी इससे उनका हौशला और भी बढ़ता गया.
यह तथाकथित बुद्धिजीवी लोग इतनी सफाई से और इतने मनोरंजक तरीके से यह सब करते थे कि - हमें खुद ही पता नहीं चलता था. फिल्म "शोले" में मंदिर के भीतर भगवान् की मूर्ति की आड़ में हीरो द्वारा लड़की छेड़ना हमें अच्छा लगता था.
इसी "शोले" में धर्मनिष्ठ इमाम साहब, अजान होने के बाद, बेटे की लाश को मैदान में छोड़कर, मस्जिद में नमाज पढने चले जाते हैं. इसी प्रकार फिल्म "दीवार" का नायक नास्तिक है और प्रसाद तक नहीं खाता है लेकिन 786 का बिल्ला साथ लिए घूमता है.
आपमें से ज्यादातर ने "मैं हूँ न" फिल्म देखी होगी. फिल्म निर्माता निर्देशक ने बेहतरीन कलाकार, बेहतरीन स्क्रीनप्ले, बेहतरीन गीत-संगीत, आदि के साथ इसमें पापिस्तान को अच्छा देश तथा भारत के राष्ट्रवादियों को विलेन साबित कर दिया था.
ज्यादातर फिल्मो में "हिन्दू पंडित" को धूर्त दिखाया जाता है तो "हिन्दू ठाकुर" को बलात्कारी. इसके अलावा "हिन्दू वैश्य" को सूदखोरी के द्वारा शोषण करता हुआ दिखाया जाता है. जबकि पादरी, मौलवी, आदि भगवान् के फरिस्ते जैसे दिखाए जाते है.
क्या आपने कभी किसी फिल्म अथवा विज्ञापन में ऐसा देखा है कि - मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध, आदि में से किसी की आस्था वाली बात को गन्दा कहा गया हो ? ऐसा कभी नहीं होगा और होगा तो वे लोग उस निर्माता का बुरा हाल कर देंगे.
इसके बाबजूद ये लोग सहिष्णु कहलाते है और अपने धर्म का मजाक भी सह जाने वाले हिन्दुओं को असहिष्णु कहा जा रहा है. मैं तो कहता हूँ कि अपने धार्मिक और राष्ट्रीय सम्मान के प्रतीकों के सम्मान के लिए हमें असह्ष्णु होना ही चाहिए.
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