Wednesday, 27 March 2019

शंख और ढपोरशंख

एक बार एक मछुआरे ने समुद्र देवता की प्रार्थन की. समुद्र देवता प्रसन्न हुए. उनसे मछुआरे ने कहा मुझे कोई ऐसी चीज दीजिये जिससे मेरा ठीक से जीवन यापन हो सके. समुद्र देवता ने उसे एक शंख दिया और कहा इससे तुम जो कुछ मांगोगे वह तुम्हे देगा लेकिन तुम्हारे मांगने के हिसाब से नहीं बल्कि तुम्हारी जरूरत का आंकलन करने के बाद.
इसके आलावा यह शंख 24 घंटे में केवल एक बार ही यह काम करेगा. अगर तुमको दुबारा कुछ माँगना हो तो उसके लिए 24 घंटे इन्तजार करना पड़ेगा. मछुआरा बहुत खुश हुआ, उसने शंख से कहा आज मुझे बहुत सारी मछलिया मिल जाए, उसके बाद मछुआरे ने समुद्र में जाल फेंका और बहुत सारी मछलिया उसके जाल में फंस गई,
अगले दिन उसने कहा मेरा बहुत सुंदर सा महल बन जाए, तो शंख से आवाज आई तुम को महल नहीं मिल सकता लेकिन मैं तुम्हारे इस घर को ठीक कर देता हूँ और उसका टुटा फूटा घर ठीक हो गया. इसी तरह शंख उसकी जरूरतों को पूरा करता रहा लेकिन अब वह मछुआरा सोंचने लगा कि- शंख बहुत कम चीज देता है
इस विचार के साथ उस मछुआरे ने फिर से समुद्र देवता की अराधना प्रारम्भ कर दी. कुछ दिन समुद्र देवता पुनः प्रसन्न हुए. मछुआरे ने उनसे कहा मुझे कोई दूसरा शंख दीजिये क्योंकि यह बहुत कम देता है हो गये और उस मछुआरे के मन की इच्छा जानकार उन्होंने उसे अपने हाथों से एक दूसरा शंख प्रदान किया
समुद्र देवता ने उससे कहा कि - इसका नाम ‘ढपोरशंख’ है. इस शंख से तुम जो कुछ भी मांगोगे, यह शंख उसका दुगुना तुम्हे देने की बात कहेगा और इससे तुम दिन में जितनी बार चाहो मांग सकते हो. इतना सुनते ही उस मछुआरे ने पुराना शंख समुद्र में वापस फेंक दिया और ‘ढपोरशंख’ को लेकर ख़ुशी ख़ुशी घर चल दिया.
घर पहुँचते ही उसने ढपोरशंख से कहा - मेरे लिए एक महल बना दो. सुनते ही वह शंख बोला- “एक क्या दो महल ले लो”. इस पर मछुआरा खुश होकर बोला, “ठीक है, दो महल बना दो”. तब शंख फिर से बोल उठा, “दो क्या चार महल ले लो”. मछुआरे ने कहा ठीक है चार महल दे दो , तब शंख से आवाज आई - चार क्या आठ ले लो.
इसी प्रकार मछुआरा शंख से जो कुछ भी मांगता, ढपोरशंख दुगना देने की बात करता लेकिन देता कुछ नहीं. इस पर झल्ला कर मछुआरा शंख पर बरस पड़ा, बोला "कैसे शंख हो तुम, वो पिछला वाला तो जो कहता था, दे भी देता था, लेकिन तुम दुगना देने की बात बात तो करते हो लेकिन देते कुछ नहीं हो
शंख से आवाज़ आई, "“अहम् ढपोर शंखनम्, वदामि च ददामि न”. अर्थात -मैं ढपोर शंख हूँ, मैं केवल दोगुना देने की बात करता हूँ देता कुछ नहीं. जिस "जिस शंख से तुम्हारी इच्छाऐं पूरी हो सकती थी, तुमने उसे तो तुमने खुद ही समुद्र में फेंक दिया. अब आप खुद निर्णय लीजिये कि आपको शंख चाहिए या ढपोरशंख.

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