
ऐसा ही एक मोर्चा था रेजांग-ला, जिसमे मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में 13वीं कुमाऊं बटालियन की "चार्ली" कंपनी के 120 जवानो ने, चीन की 5,000 सैनको वाली विशाल ब्रिगेड को कड़ी टक्कर दी और 1,300 चीनी सैनकों को मार गिराया था.
13वीं कुमाऊं बटालियन की चार्ली कंपनी, लद्दाख के "चुशुल" में मौजूद एयरफील्ड की रक्षा कर रही थी. 18 नवंबर 1962 की सुबह चीन के लगभग 5000 सैनिकों ने इस जगह पर हमला कर दिया. वहां उस समय भारत के मात्र 120 सैनिक ही मौजूद थे.
मेजर शैतान सिंह ने इसकी सूचना रेडियो द्वारा हेडक्वार्टर को भेजी. चीन की बड़ी ब्रिगेड और उनके आधुनिक हथियारों के सामने भारतीय सैनिको की कम संख्या तथा साधारण और कम हथियारों को देखते हुए हेडक्वार्टर ने उनको पीछे हटने का निर्देश दिया.
लेकिन मेजर शैतान सिंह ने कहा "चुशुल" को गंवा देने का मतलब है, लद्दाख को गँवा देना. उन्होंने कहा - जब तक मैं या मेरा एक भी सैनिक ज़िंदा है कोई चीनी यहाँ कब्जा नहीं कर सकता. मेजर शैतान सिंह और उनके 120 सैनिक मोर्चा लगाकर तैयार हो गए.
भारत के वीर सैनिको ने चीनियों को मारना शुरू किया, तो चीनियों को एक बार यह भ्रम हो गया कि- वहां बहुत बड़ी ब्रिगेड मौजूद है. भारतीय सैनिको के पास गोला बारूद की बहुत कमी थी लेकिन उन्होंने सटीक निशाने लगाकर हजार से ज्यादा चीनियों को मारा.

असलहा ख़त्म हो जाने के बाद मेजर शैतान सिंह की देख-रेख में कई भारतीय जवानों ने तो अपने हाथों से ही चीनी सैनिकों को मार गिराया था. इस ब्रिगेड में ज्यादातर सैनिक रेवाड़ी जिले के अहीर जाति के पहलवान टाइप लोग थे .
मल्ल-युद्ध में माहिर और बेहतरीन कुश्तीबाज सिंहराम यादव ने, घात लगाकर चीनी सैनिको को बालों से पकड़ा और पहाड़ी से टकरा-टकराकर मौत के घाट उतार दिया. इस तरह से उसने अकेले ही दस चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था.
भारत के इन 120 योद्धाओं में से 114 जवान शहीद हो गए, पांच जवानों को चीन ने युद्ध कैदी के तौर पर गिरफ्तार कर लिया. हालांकि ये जवान बाद में बच निकलने में कामयाब रहे. एक सैनिक "राम चंद्र यादव" को "मेजर शैतान सिंह" ने बेस कैम्प को सारी खबर देने भेजा था .
मेजर शैतान सिंह जब अपने सैनिकों को प्रोत्साहित करने के लिए एक पलटन से दूसरी पलटन की तरफ घूम रहे थे, तभी एक चीनी एमएमजी की गोली से वह घायल हो गए. लेकिन घायल होने के बावजूद उन्होंने लड़ना जारी रखा,
1963 में जब मेजर शैतान सिंह का शव मिला था तो वह पूरी तरह जमा हुआ था और मेजर शैतान सिंह मौत के बाद भी. अपने हथियार को मजबूती से थामे हुए थे. उन महान वीरों और राष्ट्र रक्षकों की याद में "चुशूल" में एक स्मारक भी बनाया गया है.

लता मंगेशकर द्वारा गाए सदाबहार और अमर गीत 'ए मेरे वतन के लोगों' को लिखने वाले कवि "प्रदीप" की प्रेरणा भी मेजर शैतान सिंह और उनके बहादुर साथी ही थे. मेंजर शैतान सिंह के साथ साथ उन सभी 120 वीर सैनिको को सादर नमन
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