Sunday, 10 March 2019

धर्मवीर छत्रपति संभाजी राजे

छत्रपति संभाजी राजे, छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे. बीजापुर और गोलकुण्डा से मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन समाप्त करने और वहां हिन्दू राज्य स्थापित करने में प्रमुख भूमिका रही थी. उनके पराक्रम से परेशान हो कर औरंगजेब ने कसम खायी थी कि- जब तक संभाजी पकडे नहीं जायेंगे, वो अपना किमोन सर पर नहीं चढ़ाएगा.
वे एक महान योद्धा होने के साथ साथ बहुत ही कुशाग्रबुद्धि के थे. केवल 14 साल की आयु में उन्होंने बुधाभुषणम, नखशिख, नायिकाभेद तथा सातशातक यह तीन संस्कृत ग्रंथ लिखे थे. छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु (3 अप्रैल, 1680) के बाद, 10 जनवरी 1681 को संभाजी महाराज का विधिवत्‌ राज्याभिषेक हुआ था.
औरंगजेब के एक पुत्र "अकबर" ने जब वगावत की, तो उसको भी संभाजी महाराज ने ही शरण दी थी. संभाजी महाराज ने मुघलो के अलावा पुर्तगीज और अंग्रेजों से भी युद्ध लडे. शिवाजी महाराज की म्रत्यु के बाद उनके कुछ सामंत समभा जी के बजाये उनके छोटे भाई राजाराम को महाराज बनाना चाहते थे, जिसमे वे नाकाम रहे थे.
एक बार वे 200 सिपाहियों के साथ एक गुप्त रास्ते से जा रहे थे जिसका पता केवल मराठों को था. एक गद्दार सामंत गनोजी शिर्के ने मुघलो को उसकी सुचना दे दी. मुग़ल सरदार इन्सिलब खान ने 5000 के फ़ौज के साथ वहां पहुंचकर उनको घेर लिया. वे लोग बड़ी बहादुरी से लडे लेकिन संभाजी और उनके एक मित्र को गिरफ्तार कर लिया गया.
औरंगजेब ने उनको मुसलमान बनने पर, दक्कन की सारी सल्तनत सम्हालने का लालच भी दिया. लेकिन धर्मवीर संभाजी ने धर्म छोड़कर अधर्म के रास्ते पर जाने से इनकार कर दिया. इस पर पहले जुबान उनकी कटवा दी, फिर आँखे निकलवाई, किन्तु शेर छत्रपति शिवाजी महाराज के इस सुपुत्र ने अंत तक धर्म का साथ नहीं छोड़ा.
धर्मवीर संभाजी द्वारा अपना धर्म न छोड़ने पर, औरंगजेब ने उन दोनों को हिन्दू नववर्ष के दिन (11 मार्च, 1689) टुकड़े टुकड़े करके शहीद कर दिया गया. हत्या पूर्व औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज से कहा के मेरे 4 पुत्रों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिन्दुस्थान कब का मुग़ल सल्तनत में समाया होता.
जब छत्रपति संभाजी राजे के पार्थिव शरीर के तुकडे तुलापुर की नदी में फेंकें गए तो उसके किनारे रहने वाले लोगों ने उन्हें निकालकर इकठ्ठा करके उन्हें सिलकर उनका विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया. आज जो हिन्दू खुद को सेकुलर दिखाने के लिए धर्म-बिरुद्ध कार्य कर रहे हैं उनको पता होना चाहिए कि - धर्म को बचाने के लिए पूर्वजों ने कितने कष्ट सहे हैं.
औरंगजेब ने संभाजी को दर्दनाक मौत देकर सोंचा था कि - इससे मराठे डर जायेंगे , मगर हुआ इसका उलट. जिन मराठा सरदारों की आपस में भी नहीं बनती थी वो लोग भी संभा जी की ह्त्या के बाद एक हो गए और उन्होंने लगभग सारा दक्कन मुघलों से आजाद करा लिया था. इसी गम में औरंगजेब की म्रत्यु भी वही दक्कन (अहेमदनगर) में हो गई थी.
बैसे औरंगजेब की म्रत्यु के बारे में यह कहा जाता है कि- बुन्देलखंड के राजा "छत्रसाल" ने अपने गुरु प्राणनाथ द्वारा दिए हुए, विशेष दवा लगे खंजर से औरंगजेब को घाव दिया था, दवा के कारण वो जख्म नासूर बन गया था. औरंगजेब की म्रत्यु उसके कारण तड़प तड़प कर हुई थी. औरंगजेब ने औरंगशाही में लिखा है कि उसे छत्रसाल से छल से मारा.

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