Saturday, 9 March 2019

खेती को उद्ध्योग बनाय बिना, न खेती का विकास संभव है और न ही किसान का

चाहे कितनी भी सब्सिडी दो, चाहे कितनी भी कर्ज माफी करो, चाहे कितना भी मुआवजा देदो, लेकिन जब तक कृषि को उद्योग की तरह नहीं चलाओगे न किसान का भला होगा और न ही देश का. बस इन किसानो के नाम पर राजनीति होती रहेगी. न उत्पादन बढेगा और न ही किसान की गरीबी दूर होगी, बस किसान के नाम पर वोट मांगे जाते रहेंगे.
हमारे देश में तीन तरह के किसान है. एक बहुत बड़े बड़े जमींदार जिनके पास सैकड़ो एकड़ जमीन है, दुसरे वो किसान हैं जिनके पास पर्याप्त जमीन भी है और उसके अलावा सरकारी / गैर सरकारी नौकरी भी करते ह. तीसरे वो किसान हैं जिनके पास 2 से 20 वीघे जमीन है और पुरी तरह से कृषि पर ही निर्भर हैं , ऐसे लोग ज्यादा पढ़े लिखे भी नहीं है.
सबसे ज्यादा मुश्किल में यही छोटे और अशिक्षित किसान हैं. इन्हीं की मजबूरी को हाईलाईट कर बड़े और मध्यम किसान अपना फायेदा उठाते रहते हैं और ये छोटे किसान उसी हाल में पड़े रहते हैं. इन्ही की गरीबी को दिखाकर बड़े और माध्यम किसान अपने लोन माफ़ कराते हैं तथा सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडियों को इन तक पहंचने नहीं देते हैं.
इन सब्सिडियों और कर्जमाफी, इन गरीब किसानो का कोई भला नहीं होने वाला है. इनकी भलाई के लिए खुद सरकार को या बड़े व्यापारियों को आगे आना होगा. छोटे छोटे सैकड़ों किसान की जमीन को एक बड़े खेत के रूप में बनाकर उस फ़ार्म को एक पब्लिक लिमिटेड कम्पनी का रूप दे देना चाहिये, जिसमे भूमि के हिसाब से उनको शेयर होल्डर माना जाय.
फिर उस फ़ार्म में निवेश करने वाले आमजन, व्यापारी, सरकार को भी शेयर बेचा जाना चाहिए जिससे प्रचालन की रकम इकट्ठी हो. फिर उस फ़ार्म में किसी फैक्ट्री की तरह मैनेजर, सुपरबाईजर, एकाउंटेंट, वर्कर रखे जाने चाहिए. विशेषज्ञों की देखरेख में खेती हो. लीज की अवधि ख़त्म होने पर भूमि पर मालिकाना हक़ उस मूल किसान का ही रहे.
उस फ़ार्म में, उन किसानो को काम पर रखने में प्राथमिकता दी जाए जिन्होंने भूमि दी हैं. उनसे उनकी योग्यता के हिसाब से काम लिया जाए और उनको काम करने के बदले तनखा दी जाए. खेती के साथ साथ उस फ़ार्म में, पशुपालन, मछली पालन, आदि भी किया जाए और बायो गैस प्लांट भी लगाए जाएँ. इससे अच्छी खाद और सस्ती ऊर्जा भी मिलेगी.
अनाज के भंडारण और संरक्षण की भरपूर व्यवस्था हो, जिससे फसल तैयार होते ही, फौरन में सस्ते में बेचने की मजबूरी न हो. विशेषग्य लोग बाजार पर नजर रखकर फसल का चुनाव करें कि- बाजार में किस अनाज की कमी है और किस अनाज की अति उपलब्धता. तो उत्पादन भी बढेगा, महंगाई भी नियंत्रण में रहेगी और किसान का भी भला होगा.
इसी प्रकार किसान को मुफ्त बिजली कहकर थोड़ी देर बिजली देने के बजाय पूरी कीमत लेकर पूरी बिजली दी जाए. अभी मुफ्त के नाम पर थोड़ी सी बिजली मिलती है और बाक़ी का काम उनको महंगा डीजल खरीदकर करना पड़ता है. कीमत देकर खरीदी गई बिजली हर हाल में डीजल पर होने वाले खर्च से सस्ती पड़ेगी.

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