
लगभग 25 बर्ष की आयु के समय उसका विवाह कर दिया जाता है तथा वह ब्रह्मचर्य आश्रम में अपने सीखे अपने ज्ञान के हिसाब से कार्य करते हुए अपने परिवार का पालन करने लगता है. जब वह लगभग 50 का हो जाता है तो उसके बच्चे भी युवा होने लगते हैं, तब वह अपने काम धंधे का भार धीरे धीरे अपनी संतानों पर डालने लगता है.
व्यक्ति अपनी संतानों का मार्गदर्शन करते हुए खुद अपनी जिम्मेदारियां धीरे धीरे कम करता जाता है. यह वानप्रस्थ कहलाता है. 75 साल की आयु तक पहुँचने के बाद वह सांसारिक जीवन को त्याग कर आध्यात्मिक जीवन जीने लगता है. और एक दिन संसार को त्यागकर ईश्वर में विलीन हो जाता है. इसे संन्यास कहते हैं.
भारत में हजारों साल से यह पद्धति चली आ रही थी. विदेशी आक्रमणकारियों के भारत में आकर बसने के बाद उनकी देखा देखी इस भारतीय आश्रम पद्धति का भी ह्रास हो गया. यहाँ भी वाल विवाह होने लगे, वाल विवाह में सबसे बड़ी समस्या यह आई कि - युवा होने पर कई बार बच्चों ने अपने विवाह को अस्वीकार कर दिया.
कभी बच्चों को बड़े होने पर अपने साथी की लम्बाई पसंद नहीं आई तो कभी उसके बिचार, कभी किसी की सोंच भगवान् की भक्ति में लग गई तो कभी कोई ग्रस्त जीवन को त्यागकर समाज कल्याण के कार्यों में लग गया. इन सब के कारण दुसरे साथी को काफी तकलीफ भी हुई. इन बातों ने वाल विवाह को अप्रसांगिक साबित कर दिया.
ऐसा ही एक विवाह अपने प्रधानमन्त्री "नरेंद्र मोदी" का था. नरेंद्र मोदी बचपन से संघ की शाखा में जाया करते थे और उनके मन में संघ का प्रचारक बनकर राष्ट्र की सेवा करने की भावना थी. संघ के प्रचारक विवाह नहीं करते हैं केवल समाज कल्याण में लगे रहते हैं. इनका जीवन प्राचीन काल के संतों के समान होता है
इसी बीच एक दिन नरेंद्र की माँ ने एक साधू को नरेंद्र की कुंडली दिखाई और उसके भविष्य के बारे में पूंछा तब साधू ने कहा कि - इसका जीवन उथल-पुथल भरा रहेगा. यह या तो एक दिन राजा बनेगा या फिर शंकराचार्य की तरह एक महान संत की सिद्धि हासिल करेगा. इन बातों से उनके माता पिता घबरा गए.
इसी बीच नरेंद्र की पूजा-पाठ में भी बहुत रुचि हो गई. वे अधिकतर समय पूजा-पाठ में ही व्यतीत करने लगे. तो परिजन को चिंता होने लगी कि कहीं उनका बेटा सचमुच में ही साधू न बन जाए. इसी के चलते परिवार ने मोदी की शादी करवा देने का फैसला लिया. उन्हें लगा कि शादी हो जाने के बाद वह परिवार एवं ग्रहस्थी में व्यस्त हो जाएगा.
माता पिता अपनी जानकारी के एक परिवार की 13 बर्षीय बालिका जसोदा बेन से कर दिया. उस समय नरेंद्र की आयु 14 बर्ष थी. उस समय विवाह हो गया परन्तु गौना नहीं हुआ. यह तय हुआ कि - नरेंद्र के मैट्रिक करने के बाद गौना लिया जाएगा. माता पिता द्वारा जबरन विवाह किये जाने पर बच्चे बड़ों का बिरोध नहीं कर पाते थे.
मोदी पर किताब लिखने वाली लेखिका - "कालिंदी रांदेरी" ने अपनी किताब में ऐसी कई बातों से पर्दा उठाया है. किताब के अनुसार मैट्रिक पास करने के बाद नरेंद्र की माँ ने कहा कि - अब बहू को घर ले आना चाहिए, परन्तु नरेंद्र ने कहा कि - मैं हिमालय पर जाकर तपस्या करना चाहता हूँ. और वे 16 बर्ष की आयु में हिमालय की तरफ चले गए.
वे काफी दिन बद्रीनाथ / केदारनाथ क्षेत्र में रहे. लेकिन उनकी छोटी सी उम्र को देखते हुए एक साधू ने उन्हें समझाया कि- ईश्वर की तलाश समाज की सेवा करके भी की जा सकती है. इसके लिए साधू बने रहने की कोई जरूरत नहीं. इसके बाद मोदी हिमालय से वडनगर वापस आ गए. लेकिन उनका अधिकाँश समय मंदिर अथवा संघ कार्यालय में बीतता था.

नरेंद्र की माँ ने जशोदाबेन के परिजन को भी सूचना दे दी थी कि- वे नरेंद्र को वैवाहिक बंधन से मुक्ति दे दें. इसके लिए पूरे परिवार ने जशोदाबेन के परिवार से माफी मांगी. नरेंद्र के परिजन को इस फैसले का दुख था, पिता को अंतिम समय तक यह दुःख रहा कि उनकी गलती की बजह से एक मित्र और रिश्तेदार की बच्ची का जीवन बर्बाद हो गया.
लेखिका कालिंदी रांदेरी के शब्दों में- मैं जब मोदी की मां हीराबा से मिली तो उनकी आंखों में आंसू ही थे. उनका कहना था कि - नरेंद्र की मर्जी के खिलाफ उनकी शादी कराना, उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी. हीराबा ने बताया कि- नरेंद्र के पिता को तो अंतिम समय तक इस बात का रंज रहा कि उन्होंने जबर्दस्ती मोदी पर शादी थोप दी थी.
अब आप खुद फैसला कीजिए कि - क्या नरेंद्र मोदी को वास्तव में विवाहित कहा जा सकता है ? इस विवाह और विवाह बिच्छेद के लिए नरेंद्र मोदी जिम्मेदार है या मध्ययुग में शुरू हुई "वाल विवाह" जैसी कुप्रथा. वाल विवाह के कारण ऐसी बहुत सारी विसंगतियां उत्पन्न हुई. इन्ही कारणों से वाल विवाह को अभिशाप मानते हुए, इस पर प्रतिबन्ध लगाया गया.
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