Wednesday, 27 June 2018

1971 युद्ध : युद्ध को जीतने में इंदिरागांधी के योगदान का सच

बंगलादेश अपना स्वतंत्रता दिवस 26 मार्च 1971 को मनाता है और भारत पापिस्तान का युद्ध 3 दिसंबर 1971 से 16 दिसंबर तक चला था. बंगलादेश ने अपने आपको 26 मार्च 1971 को पापिस्तान से अलग घोषित कर दिया था. इसके बाद पापिस्तान (पश्चिमी पापिस्तान) ने बंगलादेश (पूर्वी पापिस्तान) पर बेतहाशा जुल्म करने शुरू कर दिए थे.

बंगलादेश (पूर्वी पापिस्तान) की जनता भारत से हस्तक्षेप करने की मांग कर रही थी लेकिन इंदिरा गांधी ने इस पर खामोशी धारण की हुई थी. बंगलादेश से जो बंगाली शरणार्थी बनकर भारत के पश्चिमी बंगाल, बिहार और आसाम में आ रहे थे उनकी हालत देखकर भारत की जनता भी सरकार से बंगलादेश में हस्तक्षेप की मांग कर रही थी.

बंगलादेश की मुक्ति वाहिनी जिसमे वहा के क्रान्तिकारी और पूर्वसैनिक थे वही लोग पापिस्तानी सेना का मुकाबला कर रहे थे. इंदिरा गांधी इसे पापिस्तान का अंदरूनी मामला बताती थी. 3 दिसंबर 1971 को जब पापिस्तान ने भारत पर हमला किया था उस दिन भी इंदिरा गांधी कोलकाता में भी लोगों को यही समझा रही थी.

3 दिसम्बर को पापिस्तान द्वारा भारत पर किये गए हवाई हमले (आपरेशन चंगेज खान) के बाद भी इंदिरा गांधी युद्ध का निर्णय नहीं ले पा रही थी. तब जनरल मानेकशा ने कहा था कि- आप घोषणा करती हैं या फिर मैं खुद युद्ध की घोषणा करू ? उस युद्ध की घोषणा के बाद युद्ध की सारी कमान जनरल मानेकशा के हाथ में थी.

जनरल मानेकशा ने तो नेताओं के द्वारा, युद्ध को लेकर कोई बयान तक देने पर रोक लगा दी थी. उस 14 दिन के भीषण युद्ध में भारतीय सेना ने बहुत सीमित संसाधनों के साथ पापिस्तान को शिकस्त दी थी. इंदिरा गांधी या उनकी सरकार का काम था सेना को अधिक से अधिक आधुनिक हथियार उपलब्ध कराना जिसमे वह नाकाम रही थी.

अगर किसी मोर्चे पर 123 सैनिको ने साधारण MMG के साथ 3,000 पापिस्तानियो की टैंक ब्रिगेड को तबाह कर दिया था, तो यह उन सैनिको की जीत थी न कि - सरकार की. अगर एक देशभक्त डाकू (बलबंत सिंह भाखासर) की सहायता से सेना ने पापिस्तान के 100 से ज्यादा गाँवों पर कब्ज़ा कर लिया था तो क्या यह इंदिरा की जीत थी ?

अगर साधारण टूरिस्ट मैप की सहायता से भारतीय वायुसेना ने मात्र 3 मिनट के हवाई हमले में, ढाका में मौजूद पापिस्तानी मुख्यालय को उड़ा दिया था तो यह उन जोशीले वायु सैनिको की बहादुरी और बुद्धिमानी थी या इसके पीछे इंदिरा गांधी की कोई रणनीति काम कर रही थी ? सैनिको की बहादुरी की ऐसी अनेकों घटनाएं उस युद्ध के इतिहास में दर्ज हैं.

भारत के नौसैनिकों ने एक साधारण युद्धपोत की सहायता से पापिस्तान की पनडुब्बी (पीएनएस गाजी) को नष्ट कर दिया तो यह उन नौसैनिको की जीत थी न कि - उस निकम्मी सरकार की, जो नौसेना के लिए तब तक एक पनडुब्बी भी उपलब्ध नहीं करा सकी थी. उस युद्ध की महत्वपूर्ण घटनाए आप मेरे ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं.

14 दिन के उस भीषण युद्ध में भारतीय सेना ने अनेकों देशभक्त गाँव वालों के सहयोग से पापिस्तान को करारी शिकस्त दी और हजारों पापिस्तानी सैनिको को बंदी बना लिया था. जिस समय बंगलादेश में पपिस्तानी सेना के 30,000 सैनिको ने भारतीय सेना ने हथियर डाले थे उस समय बंगलादेश में भारत के केवल 3,000 सैनिक मौजूद थे.

भारतीय सेना ने अपनी बहादुरी और कुर्बानियों के द्वारा पापिस्तान पर जो जीत हाशिल की थी, इंदिरा गांधी ने तो उस जीत को ही "शिमला समझौते" के द्वारा हार में बदल दिया था. युद्ध के बाद जब सेना बैरकों में वापस लौट गई तब कांग्रेसियों ने इंदिरा का ऐसे गुणगान शुरू कर दिया जैसे युध्ह इंदिरा गांधी ने खुद लड़ा हो.

अपने झूठ को और पक्का बनाने के उद्देश्य से कांग्रेसियों ने एक झूठ और गढ़ा कि- युद्ध में इंदिरा गांधी की बाहादुरी को देखते हुए, जनसंघ के नेता "अटल बिहारी बाजपेई" उनको दुर्गा का अवतार कहते थे. अटल जी सारी जिन्दगी हर मंच पर इसका खंडन करते रहे, लेकिन कांग्रेसी यही झूठ फैलाते रहे कि-अटल जी इंदिरा को दुर्गा कहते थे.

अगर अटल जी इंदिरा गांधी को दुर्गा मानकर पूजते थे और इंदिरा गांधी भी अटल जी को सम्मान देती होतीं तो, आपातकाल की घोषणा होते ही , उसी रात को अटल जी को गिरफ्तार कर जेल में न भेज देतीं. इंदिरा गांधी की प्रशंसा में गाये जाने वाले गीत उतने ही सच्चे हैं, जितना गांधी के चरखे द्वारा भारत को आजाद कराने का सच.
और हाँ, उस काल की सबसे निंदनीय घटना के बारे में तो बताना रह ही गया. बांग्लादेश में चल रहे गृहयुद्ध के दौरान मुक्तिवाहिनी की मदद करने के नाम पर बैंको से खूब पैसा निकाला गया. 1972 में जिसमे एक मामला "नागरवाला घोटाला काण्ड" खुल गया था. इस घोटाले के बारे में पुराने लोग जानते ही हैं और नए लोग गूगल पर सर्च कर सकते है.  

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