पूरे भारत में अनेकों विश्व प्रशिद्ध मंदिर हैं जिनके दर्शन के लिए देश / विदेश के करोड़ों हिन्दू प्रतिबर्ष तीर्थयात्रा करते है. इन मंदिरों के कारण ही पर्यटन उद्योग फलफूल रहा है. हम लोग पूरी श्रद्धा के साथ और बहुत सारा धन खर्च करके इन मंदिरों तक पहुँचते है लेकिन जब हम इन मंदिरों में अव्यवस्था देखते हैं तो बहुत दुःख होता है.
मुख्य मंदिरों के आसपास तथा रास्ते में अनेकों लोगों ने, अपनी प्रापर्टी पर अथवा सरकारी प्रापर्टी पर कब्ज़ा करके छोटे छोटे मंदिर बना लिए है. इनके दलाल रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से तीर्थयात्रियों को घेरना शुरू कर देते हैं कि - हम गाइड हैं, आप हमे केवल 50 देना, हम आपको यहाँ के 11 मुख्य मंदिरों के दर्शन आराम से करवा देंगे.
जो तीर्थयात्री इनकी बातों में फंस जाते हैं उनको यह दलाल अपने प्राइवेट मंदिरों में ले जाकर पर खूब लुटबाते हैं. इस प्रकार अपना धन और समय खर्च करके आने वाले तीर्थयात्री का मन क्षुब्ध हो जाता है. इसके अलावा प्राचीन मंदिरों के मार्ग में ही मंदिर के नाम बनाई गई निजी दुकानों के कारण रास्ते में जाम और गंदगी का माहौल बना रहता है.
इस समस्या का हल करने के लिए हिन्दुओं को अपनी कोई "अन्तराष्ट्रीय हिन्दू मंदिर प्रबंधक कमेटी", आदि जैसी कोई संस्था बनानी चाहिए. जो मुख्य मंदिरों का प्रबंधन देखे, इसके साथ साथ वह पुजारियों को कर्मकांडों की और सेवादारो को व्यवस्था की ट्रेनिंग दे. साथ ही बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा का ध्यान रखे.
हिन्दुओं की उस अंतराष्ट्रीय धार्मिक संस्था में केवल हिन्दुओं को ही वोट डालने और चुनाव लड़ने का अधिकार हो. एक केंद्रीय धर्मसंसद और कुछ क्षेत्रीय धर्मसभाएं हों. यहाँ हिन्दुओं की केवल धार्मिक संस्थाओ की व्यवस्था, धार्मिक कर्मकांड, धार्मिक साहित्य, तीर्थ यात्रियों की सुविधा और हिन्दुओं की धार्मिक समस्याओं पर नियमित चर्चा हो.
इसके अलावा मेरा केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, समाज सेवी संस्थाओं एवं धार्मिक संस्थाओं से निवेदन है कि- विश्व प्रशिद्ध प्राचीन मंदिरों के आसपास बने हुए छोटे छोटे मंदिरों (मंदिर जैसी प्राइवेट दुकानों) और भवनों को हटाकर उस जगह को खुला करने की व्यवस्था करे तथा मुख्य प्राचीन मंदिर को भव्य और बहुउद्देशीय बनाया जाए.
जिन छोटे मोटे मंदिरो और भवनों को हटाया जाए उन मंदिरों की मूर्ति को भी उसी प्रांगड़ में उचित स्थान दिया जाए. साथ ही जिन घरों और दुकानो को तोडना पड़ा हो उनको भी समीप ही दूकान तथा मकान दिया जाए, जिससे वे लोग उन मंदिर में धार्मिक साहित्य, प्रसाद, चित्र, कपडे, पूजा सामिग्री, खाने पीने का सामान, आदि का व्यापार कर सकें.
इन भव्य मंदिरो की व्यवस्था की एक स्थानीय कमेटी भी हो जिसमे केवल वहां के स्थानियों हिन्दुओं को स्थानीय हिन्दुओं द्वारा चुना जाए. किसी भी मंदिर पर किसी भी व्यक्ति या परिवार का अधिकार न माना जाए बल्कि उसे समस्त हिन्दू समाज की सम्पत्ति समझा जाए. किसी भी गैर हिन्दू को इसमें वोट डालने या चुनाव लड़ने का अधिकार न हो.
ऐसे प्रत्येक प्रशिद्ध मंदिर को अनेकों प्रकार से सुविधाओ से लैस किया जाए. इनमे धर्मशाला, लंगर, स्कूल, डिस्पेंसरी, गौशाला, पुस्तकालय, सभाकक्ष, सार्वजनिक हवन, कथा स्थल, आदि की व्यवस्था हो. मंदिरो पर सरकार का नियन्त्रण समाप्त होना चाहिए और हिन्दुओ की प्रबंधक कमेटी के पास ही चढ़ावे के धन को खर्च करने का अधिकार होना चाहिए
इसके लिए हमें, सिक्खों की गुरुद्वारा प्रबंधन व्यवस्था से भी कुछ सीख लेनी चाहिए. कोई भी गुरुद्वारा किसी व्यक्ति की निजी प्रापर्टी नहीं होता है. बल्कि गुरुद्वारों का प्रबंधन करने के लिए सिक्खों ने अपनी एक खुद की धार्मिक लोकतांत्रिक संस्था है,जिसका नाम है "शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी". यही गुरुद्वारों का प्रबंधन देखती है
"शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी" के सदस्यों का तय समय के अनुसार चुनाव होता है जिसमे दुनिया भर के सिक्ख वोट देते हैं. यह संस्था गुरुद्वारों का प्रबधन देखती है और सारी आवश्यक व्यवस्था करती है. जबकि अपने यहाँ हिन्दुओं में कहीं भी कोई भी अपनी मर्जी से मंदिर बना लेता है और उसे अपनी कमाई का जरिया बना लेता है.
हिन्दुओं को भी "शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी".की तरह अपनी भी कोई "अन्तराष्ट्रीय हिन्दू मंदिर प्रबंधक कमेटी" जैसी कोई संस्था बनानी चाहिए. जो मुख्य मंदिरों का प्रबंधन देखे, इसके साथ साथ वह पुजारी और सेवादार को ट्रेनिंग दे, मंदिरों में साफ़ सफाई, सुरक्षा, वित्त, लंगर, स्कूल, डिस्पेंसरी, गौशाला, धर्मशाला, आदि की व्यवस्था करे.
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