Saturday, 23 June 2018

डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी नवभारत के निर्माताओं में से एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ है. जिस प्रकार हैदराबाद को भारत में विलय करने का श्रेय सरदार पटेल को जाता है, ठीक उसी प्रकार बंगाल, पंजाब और कश्मीर के अधिकांश भागों को भारत का अभिन्न अंग बनाये रखने की सफलता प्राप्ति में डॉ. मुखर्जी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता.
उन्हें आज भी एक प्रखर राष्ट्रवादी और कट्टर देशभक्त के रूप में याद किया जाता है. वे एक महान शिक्षाविद और चिन्तक होने के साथ-साथ भारतीय जनसंघ के संस्थापक भी थे. उन्हें किसी दल की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता क्योंकि उन्होंने जो कुछ किया देश के लिए किया और इसी भारतभूमि के लिए अपना बलिदान तक दे दिया था.
डॉ. मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को एक प्रसिद्ध बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे. अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में अनेकों उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं.
33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने. अपने कार्यकाल के दौरान अनेक रचनात्मक सुधार कार्य किए तथा 'कलकत्ता एशियाटिक सोसायटी' में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया. वे 'इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ़ साइंस', बंगलौर की परिषद एवं कोर्ट के सदस्य और इंटर-यूनिवर्सिटी ऑफ़ बोर्ड के चेयरमैन भी रहे.
कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए थे, लेकिन कुछ समय बाद कांग्रेस की नीतियों से क्षुब्ध होकर त्यागपत्र दे दिया. उसके बाद स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा और चुनाव में पुनः भारी बहुमत से निर्वाचित हुए.
मुस्लिम लीग की राजनीति से बंगाल का वातावरण दूषित हो रहा था. ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिन्दुओं की उपेक्षा न हो. इसी समय वे वीर सावरकर के राष्ट्रवाद के प्रति आकिर्षत हुए और हिन्दू महासभा में सिम्मलित हो गए.
बंटबारे के समय पंजाब और बंगाल की कई रियासतें स्वतंत्र रहना चाहती थी उनको भारत में विलय के लिए राजी करने का काम डा. मुखर्जी ने किया. गान्धी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वे भारत के पहले मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए. उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी.
नेहरु की कश्मीर नीति का उन्होंने बिरोध किया था. नेहरु और लियाकत अली के दिल्ली समझौते के मुद्दे पर 6 अप्रैल, 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया. उसके बाद उन्होंने आरएसएस के संघचालक गुरुजी से परामर्श करने के बाद 21 अक्तूबर, 1951 को दिल्ली में 'भारतीय जनसंघ' की नींव रखी.
उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था. वहाँ के मुख्यमन्त्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था. जम्मू कश्मीर में प्रवेश के लिए गैर कश्मीरियों को परमिट लेना पड़ता था. अगस्त 1952 में जम्मू रैली में कहा था या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा.
जून -1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े. वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया और श्रीनगर जेल में बंद कर दिया गया. वे 22 जून 1953 की रात को सोये और 23 जून की सुबह को रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाए गए. इसलिए 22 जून / 23 जून दोनों तिथियों में से सही किया है किसी को नहीं पता.
डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की म्रत्यु भी, सुभाष चन्द्र बोष और लाल बहादुर शास्त्री की मौत की तरह अनसुलझा रहस्य है. डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी रहस्यमयी मौत को, आज भी बहुत से लोग, नेहरु और शेख अब्दुल्ला की साजिश मानते हैं. कश्मीर की समस्या के लिए भी यही दोनों जिम्मेदार माने जाते हैं.
कश्मीर को लेकर डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नारा दिया था. "नहीं चलेगा एक देश मे, दो निशान - दो विधान - दो प्रधान". उनकी बनाई भारतीय जनसंघ ने लम्बे समय तक ससक्त विपक्ष की भूमिका निभाई. इंदिरा गांधी की निरंकुशता को रोकने के लिए 1977 में उसने अपना जनता पार्टी में विलय भी कर लिया था .
लेकिन जनता पार्टी को चौधरी चरण सिंह द्वारा धोखा देकर तोड़ देने के बाद भारतीय जनसंघ के पूर्व नेताओं ने एक नई पार्टी का गठन किया जिसे नाम दिया "भारतीय जनता पार्टी ". आज डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के आशीर्वाद से "भारतीय जनता पार्टी " हिन्दुस्थान की सबसे सशक्त और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन कर देश को सम्हाल रही है.

No comments:

Post a Comment