Saturday, 23 June 2018

बाला साहब देवरस

महान संगठनकर्ता "बाला साहब देवरस" के जन्मदिवस (11 दिसंबर) पर सादर नमन 
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बाला साहब देवरस जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक थे. उनका वास्तविक नाम "मधुकर दत्तात्रेय देवरस" था परन्तु वे 'बाला साहब देवरस" नाम से अधिक प्रसिद्ध थे. श्री बाला साहब देवरस का जन्म 11 दिसम्बर 1915 को नागपुर में हुआ था. उनका परिवार मूलरूप से मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के का रहने वाला था.
उनके पिताजी नागपुर आकर बस जाने के कारण वे नागपुर के हो गए थे. उनकी सम्पूर्ण शिक्षा नागपुर में ही हुई. उनकी कुशाग्र बुद्धि को देखते हुए उनके पिता जी उनको बड़ा अफसर बनाना चाहते थे. उनको अंग्रेजी स्कूल "न्यू इंगलिश स्कूल" मे पढने भेजा. लेकिन जब डा.हेडगेवार जी ने नागपुर में आरएसएसकी स्थापना की, तो वे शाखा में जाने लगे
संघ की शाखा में जाने के बाद उनका अंग्रेजी से मोह भंग हो गया. अब उन्होने अपना लक्ष्य, सरकारी नौकरी के बजाय भारतीय प्राचीन ज्ञान को जन जन तक पहुंचाना बना लिया. इस उद्देश्य के लिए उन्होंने संस्कृत और दर्शनशास्त्र विषय लेकर पढ़ाई शुरु की और 1935 मे उन्होंने संस्कृत और दर्शनशास्त्र में बी.ए. की डिग्री हाशिल की.
1937 में उन्होंने लॉ की डिग्री हाशिल की. विधि स्नातक बनने के बाद बालसाहेब ने दो वर्ष तक एक 'अनाथ विद्यार्थी बस्ती' मे निशुल्क अध्यापन का कार्य किया. वे पढ़ाई करने के साथ साथ संघ से समय समय पर मिलने वाले दायित्वों को पूरी निष्ठा से निभाते रहे. उनकी क्षमताओं को देखते हुए "श्री गुरुजी " उनसे बहुत स्नेह करते थे.
देवरस जी, छुआछूत के बहुत खिलाफ थे. वे कहते थे कि - अगर अस्पर्षयता पाप नहीं है तो दुनिया में कुछ भी पाप नहीं है. संघ के स्वयंसेवकों को एक दुसरे नाम को पुकारते समय, जाति के बजाय नाम में "जी" लगाकर पुकारने की परम्परा उन्होंने ही शुरू की थी. 1965 में उन्हें सरकार्यवाह का दायित्व सौंपा गया जो 6 जून 1973 तक उनके पास रहा.
श्रीगुरूजी के स्वर्गवास के बाद 6 जून 1973 को सरसंघचालक के दायित्व को ग्रहण किया. उनके कार्यकाल में संघ कार्य को नई दिशा मिली. उन्होने सेवाकार्य पर बल दिया परिणाम स्वरूप उत्तर पूर्वाचल के साथ साथ, देश के वनवासी क्षेत्रों के हजारों की संख्या में सेवाकार्य आरम्भ हुए. उनके कार्यकाल में संघ का सर्वाधिक विस्तार हुआ.
उन दिनों इंदिरा गांधी का शासन था, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के बजाय स्वयं की मर्जी इ शासन चलाने में विशवास रखती थीं. अपनी मर्जी से राज करने तथा बिरोधियों का दमन करने के उद्देश्य से 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया. ाष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसका बिरोध किया तो इंदिरा गांधी ने संघ पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया.
स्वयंसेवको की धर पकड़ शुरु की. उनको निरपराध ही गिरफ्तार कर प्रताड़ित किया जाने लगा. इदिरा गांधी ने संघ के हजारों स्वयंसेवको को "मीसा" तथा "डी आई आर" जैसे काले कानून के अन्तर्गत जेलों में डाल दिया. तब परम पूज्यनीय बाला साहब देवरस जी ने आपातकाल के बिरोध में अखिल भारतीय स्टार विशाल सत्याग्रह प्रारम्भ कर दिया.
उनके मार्गदर्शन में लाखों स्वयंसेवक इंदिरागांधी की निरंकुशता का बिरोध करने लगे. देवरस जी ने ही तत्कालीन "भारतीय जनसंघ" को अन्य कांग्रेस बिरोधी दलों को एक मंच पर लाने का निर्देश दिया. सभी कांग्रेस बिरोधी लोगों ने एक मच "जनता पार्टी" बनाकर 1977 में कांग्रेस को पराजित किया और जनता की सरकार बनाई.
जनता पार्टी की सरकार बन्ने के बाद संघ से प्रतिबन्ध हटा. आपातकाल का बिरोध बहुत सारे गैर कांग्रेसी दलों ने किया था और सभी दलों के लोग जेल गए थे लेकिन कुल जेल जाने वाले सत्याग्रहियों में आधे से अधिक संख्या केवल अकेले "राष्ट्रे स्वयंसेवक संघ के" स्वयंसेवकों की थी. लेकिन इसके बाबजूद कांग्रेसी मूल के नेता संघ से नफरत करते रहे.
जनता पार्टी की सरकार बनवाने ,में महत्वपूर्ण योगदान देने के बाबजूद "जनता पार्टी" के कुछ नेता संघ से नफरत करते थे. जनसंघ के नेताओं पर दबाब बनाया जाने लगा कि - वे या तो संघ को छोड़ दें या जनता पार्टी को. जनसंघ के नेताओं ने भी स्पष्ट कर दिया कि - वे सत्ता छोड़ सकते हैं लेकिन संघ को किसी हाल में नहीं छोड़ सकते.
इसी बीच चौधरी चरण सिंह जैसे कई नेता तो "जनता पार्टी" से गद्दारी कर इंदिरा गांधी से भी मिल गए थे. इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह को प्रधान मंत्री बनबाने का लालच देकर जनता पार्टी को तोड़ दिया. तब बाला साहब देवरस जी के आशीर्वाद से ही जनसंघ के नेताओं में जनता पार्टी से अलग होकर, भारतीय जनता पार्टी नाम की नई पार्टी का गठन किया.
बाला साहब देवरस जी हमेशा जाति पात को छोड़कर हिंदुत्व को मजबूत करने की प्रेरणा देते थे. उन्होंने निर्धन बस्तियों में सेवा कार्य चलाकर धर्मान्त्रण को रोकना का कार्य किया. उन्होंने प्रांत स्तर पर तथा व्यवसाय के स्तर पर अनेकों अनुशागिक संगठन गठित किये, जो स्थानीय उद्देश्यों तथा व्यवसाय हितों को पूरा करते हैं.
मधुमेह के कारण स्वाथ्य गिर जाने पर उन्होंने स्वयंसेवकों से परामर्श कर, अपने जीवनकाल में ही, अपना दायित्व प्रो. रज्जू भैया को सौंप दिया. 17 जून, 1996 को उन्होंने अन्तिम श्वास ली. उनकी इच्छानुसार उनका दाहसंस्कार रेशीमबाग की बजाय नागपुर में सामान्य नागरिकों के शमशान घाट में किया गया.
हिंदुत्व के उत्थान में उनका योगदान सदैव याद किया जाता रहेगा. उन्होंने जाति को मिटाकर हिन्दू समाज को संगठित करने का संकल्प लिया था. आपातकाल का बिरोध और अयोध्या आन्दोलन में उनका बहुत योगदान था. वंदेमातरम्, भारत माता की जय

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