देश आजाद होते समय अनेकों जटिलताये थी. अंग्रेजों ने जाने से पहले देशी राजाओं और गांधी / नेहरु की सहमती से एक ऐसी व्यवस्था बना दी थी कि - रियासतों के राजा, कांग्रेस के नेता और अंग्रेज मिलकर यह निर्धारित करेंगे कि - भारत क्या स्वरूप होगा. जिनके कारण आजादी मिली थी उन क्रांतिकारियों को दरकिनार कर दिया गया था.
वो तो कहिये कि - उस समय कांग्रेस में भी सरदार पटेल जैसे कुछ राष्ट्रवादी नेता थे तथा कांग्रेस के बाहर डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी , श्री गुरूजी जैसे कई प्रभावशाली नेता मौजूद थे, जिन्होंने राजाओं को समझाकर भारत में विलय के लिए राजी कर लिया. उन राजाओं को समझाया कि - अगर उन्होंने कुछ गड़बड़ की तो उनकी प्रजा बगावत कर देगी.
इस बजह से ज्यादातर रियासतों का विलय तो आसानी से हो गया लेकिन कुछ राज्यों में समस्या बनी रही. तब उस समय स्थिति को सम्हालने के लिए संविधान में आर्टिकल 370 और आर्टिकल 371, जैसे अस्थाई प्रावधान किये गये. इन अस्थाई प्राव्धानो द्वारा कुछ राज्यों को कुछ विशेषाधिकार देकर उनको भारत में शामिल किया गया.
इन आर्टिकल के द्वारा जम्मू -कश्मीर, हिमाचल, नागालैंड, आदि जैसे कुछ राज्यों को कुछ विशेषाधिकार दिए गए. इसके अलावा कई साल बाद आजाद होने वाले और भारत में शामिल होने वाले गोवा , सिक्किम आदि को भी कुछ अन्य विशेषाधिकार दिए गए. इसके अलावा भाषा और भौगोलिक स्थति के आधार पर राज्यों का निर्माण किया गया.
हम जानते हैं कि - उस समय ऐसा करना नेताओ की मजबूरी भी थी, उस समय किसी भी तरह से भारत को एक राष्ट्र बनाना सभी की प्राथमिकता थी, इसलिए इन बातों को मानकर कुछ अस्थाई अलगाववादी प्रावधानों को भी देशवाशियों ने स्वीकार कर लिया था. मगर गलती यह हुई कि- उन अस्थाई पाव्धानो को बाद में हटाया नहीं गया.
राज्य स्तरीय क्षेत्रीय पार्टियों ने अपने राजनैतिक लाभ के लिए, राष्ट्र के बजाय राज्य की बात कर देश को कमजोर करने का काम शुरू कर दिया जिसमे वे आज भी लगे हुए हैं. लेकिन अब ऐसी तुच्छ मानशिकता वाली क्षेत्रीय पार्टियों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है. साथ ही उन अलगाववादी प्रावधानों को भी ख़त्म करना चाहिए.
अब समय आ गया है कि - संविधान की ऐसी विघटनकारी धाराओं को समाप्त किया जाए और राज्यों का पुनर्गठन किया जाए. सम्पूर्ण "भारतबर्ष" को एक संप्रभुतासंपन्न राष्ट्र घोषित कर, राज्य को केवल प्रशासन का विकेंद्रीकर्ण करने की इकाई मात्र माना जाए, प्रत्येक प्राकतिक संसाधन पर प्रत्येक नागरिक का हक़ हो.
मुख्यमंत्री अपने आपको अपनी रियाशत का राजा समझने के बजाय, केवल उस क्षेत्र का प्रतिनिधि समझे. अपने राज्य के प्राक्रतिक संशाधन या राज्य से गुजरने वाली नदी को वहां के नेता अपनी निजी संपत्ति समझने की भूल न करें. देश समस्त नदियों को आपस में जोड़कर पूरे भारत में पानी पहुंचाकर बाढ़ / सूखे का स्थाई हल किया जाए.
ऐसे ही जाती / धर्म / क्षेत्र / लिंग आदि जैसे शब्दों को संविधान से निकालकर इनके आधार पर किया जाने वाला हर भेदभाव समाप्त कर देना चाहिए. सभी के लिए एक समान अधिकार और कर्तव्य निर्धारित हों. सबके लिए एक सामान कानून हों. किसी को भी भाषा, क्षेत्र, जाती, धर्म, लिंग, आदि के आधार पर श्रेष्ठ अथवा तुच्छ न माना जाए.
शिक्षा / चिकित्सा / सुरक्षा / न्याय ववस्था / सबके न्यूनतम आवश्यकता लायक भोजन / पानी आदि को पूरी तरह निशुल्क तथा पारदर्शी किया जाए. चाहे तो इसके लिए अलग से कोई टैक्स भी लगाया जा सकता है. अभी इन प्रणालियों पर धनवानों का कब्ज़ा है. धनवान धनबल से इनका उपयोग अपना हित साधने में कर लेते हैं और गरीब बंचित रह जाते हैं.
देश आजाद होते समय मजबुरिया, जल्दबाजी और अनुभवहीनता के कारण, नियम बनाते बहुत सारी कमिया रह गई थी जिनके कारण निरंतर विवाद / झगड़े / दंगे / अराजकता होती रहती हैं. अब आजादी के 70 बर्षो के अनुभव का सिंहावलोकन करके, नए सिरे से राज्यों का पुनर्गठन करने तथा नए नियम बनाने, आदि की आवश्यकता है.
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