Wednesday, 13 June 2018

राजनैतिक "रोजा इफ्तार पार्टियाँ" :: सद्भावना है ड्रामेबाजी

हिन्दू धर्म में दान का बहुत महत्त्व है. कोई भी पर्व / त्यौहार हो उसमे अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों, जरूरतमंदों. भंडारों, गौ-शालाओं, मंदिरों, आदि में दान देने का प्रावधान है. छोटे मोटे काम करने वाले लोग भी यह जानते हैं और कोई भी पर्व आने पर त्योहारी मांगने निकल पड़ते हैं और उनको मिलती भी है.
दान की महिमा पर हिन्दुओं के प्राचीन ग्रंथों में इतना लिखा हुआ है कि उन बातों को संकलित कर विस्त्रत ग्रन्थ तैयार किया जा सकता है. लेकिन दान की महिमा का बखान करते हुए भी यह कहा गया है कि - दाहिने हाथ से किये गए दान का पता बाएं हाथ तक को नहीं चलना चाहिए, अर्थात उस दान / पुण्य का दिखावा न किया जाए.
ज्यादातर हिन्दू इन परम्पराओं को मानते हुए त्योहारों, तीर्थों, आदि में दान / पुन्य करते भी है. इसी लिए ज्यादातर गरीब और लाचार लोग मंदिरों, तीर्थों के आसपास शरण लेते है. जगह-जगह होने वाले धार्मिक और सामजिक क्रार्यक्रम इसी दान से चलते हैं. दीपावली पर हिन्दू मालिक अपने कर्मचारियों को उपहार, बोनस, आदि देते हैं.
मेरी नजर में मुस्लिम्स का रोजा नाम का व्रत बहुत कठिन व्रत है जिसमे पूरा दिन भूख और प्यास पर नियत्रण रखते हुए अपने रोजमर्रा के सारे काम भी करने होते हैं. वह भी केवल एक दिन नहीं बल्कि पूरे एक महीने भर लगातार. मुझे लगता है ऐसे में अगर हम उनको कोई राहत दे पाने में सक्षम हों, तो हमें अवश्य करना ही चाहिए.
पहले मैं जब अखबारों में पढता था कि- हिन्दू नेताओं ने मुसलमानों को रोजा इफ्तार की पार्टी दी है, तो मुझे अपने उन हिन्दू नेताओं पर बड़ा गर्व महेसूस होता था क्योंकि मुझे लगता कि- वे नेता अपनी सनातन परंपरा को निभाते हुए दुसरे धर्म के लोगों को भी राहत देते हे और गरीब मुसलमानों को बेहतरीन पकवान खिलाते हैं.
जब मुझे वास्तविकता का पता चला कि- यह कोई सभी (अमीर / गरीब सब के लिए) मुसलमानों के लिए लगने वाला सार्वजनिक भंडारा या लंगर नहीं होता है बल्कि अपने राजनैतिक फायेदे के लिए अमीर और प्रभावशाली मुसलमानों को अपने यहाँ दावत पर बुलाने का बहाना मात्र होता है तो बहुत दुःख हुआ क्योंकि यह हमारी परम्परा नहीं है.
मेरा सभी हिन्दू भाइयों से विनम्र निवेदन है कि- ऐसी ड्रामेबाजियों से दूर रहें. यह सद्भावना का नहीं बल्कि स्वार्थ का प्रतीक है. यदि आप कुछ कर पाने में सक्षम है और मुस्लिम्स के त्यौहार में उनके लिए वास्तव में कुछ करना चाहते हैं तो जरुर कीजिए, यह बहुत अच्छी बात है. लेकिन जो भी करें सद्भावना के साथ करे, किसी स्वार्थ को साधने के लिए नहीं.
यदि आपकी दूकान / कारखाने / दफ्तर / प्रतिष्ठान आदि में कोई मुस्लिम कर्मचारी काम करते हैं तो उन रोजेदार मुस्लिम कर्मचारियों को मेहनत वाले काम में राहत दीजिये, अतिरिक्त बोनस दीजिये, उनके परिबार के लिए उपहार दीजिये , मस्जिद जाने के लिए अपना बाहन दीजिये, उनके लिए सार्वजनिक लंगर लगाइए. आदि जैसे काम कीजिए.
लेकिन केवल अमीर और प्रभावशाली मुसलमानों को शानदार दावत देकर फोटो खिंचवाने वाली पार्टियाँ देनेवाली परिपाटी से दूर रहिये. यह आपकी सद्भावना नहीं बल्कि आपकी सौदेबाजी है और यह बैसा ही है जैसा चालाक व्यापारी लोग नए आर्डर को पाने के लिए, अपने ग्राहकों या संभावित ग्राहकों को, पार्टिया देकर फुसलाने का काम करते हैं.

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