Saturday, 23 June 2018

संघ की एक घंटे की "शाखा" का महत्त्व

जिनको लगता है कि - शाखा में एक घंटा खेलकूद कर, छोटे छोटे बच्चे देश को कैसे बदल सकते हैं, उनको "महाराणा हम्मीर सिंह" के पिता "अरी सिंह" और माता "उर्मिला" की कहानी पढनी चाहिए. चित्तौड़गढ़ को खिलजियों से आजाद कराने वाले "महाराणा हम्मीर सिंह" को उनके पिता "अरी सिंह" ऐसे ही तैयार किया था.
जैसा कि आपको पता ही है कि- 1303 में राणा रत्नसेन के शाका और माता पद्मावती के जौहर के बाद, चित्तौड़गढ़ पर अलाउद्दीन खिलजी का कब्ज़ा हो गया था. अलाउद्दीन ने चित्तौड़गढ़ का शासन अपने बेटे खिज्रखान को सौंपकर किले का नाम खिजराबाद रख दिया था. खिज्रखान गद्दार राजपूत मालदेव के सहयोग से सत्ता सम्हालता था.
खिलजी के आक्रमण के समय "अरी सिंह" के पिता चित्तौड़गढ़ किले के रक्षक थे. उन्होंने राणा रत्नसेन के साथ शाका और उनकी पत्नी ने माता पद्मावती के साथ जौहर किया था. शाका और जौहर के समय "अरी सिंह" चित्तौडगढ़ से दूर अपनी ननिहाल में थे. अरी सिंह हमेशा चित्तौड़ और समस्त मेवाड़ को आजाद कराने का स्वप्न देखते थे.
उन्होंने अपने आसपास के छोटे छोटे बच्चों को इकठ्ठा कर खेलकूद के माध्यम से युद्ध्भ्यास कराना प्रारम्भ किया. वे उन बच्चों को चित्तौड़गढ़ के माहन वीरों / वीरांगनाओं की महानता की कहानिया सुनाते थे और कहते थे कि - हमें केवल चित्तौड़गढ़ और मेवाड़ को ही नहीं बल्कि पूरे हिन्दुस्थान को इन विदेशियों से आजाद कराना है.
अरी सिंह की पत्नी "उर्मिला" भी आस-पास की बच्चियों को लेकर, इसी तरह शाखा लगाती और उनको खेलकूद के साथ साथ लड़ना सिखाती. उनको महारानी पद्मावती के जौहर के बारे में बताती और साथ ही कहतीं कि - अगर कोई तुमको परेशान करे तो तुम में उसकी जान लेने की ताकत की भी होनी चाहिए और अपनी जान देने का साहस भी.
और इतिहास गवाह है खेलकूद में तैयार हुए उन बालकों ने, 12 बर्षीय राणा हम्मीर सिंह के नेत्रत्व में सभी चित्तौड़वाशियों को एकजुट किया और चित्तौडगढ़ को 23 साल बाद खिलजी / मालदेव से आजाद कराया था. उस महापुरुष "अरी सिंह" की कार्यशैली को ही "मुंजे जी" और "हेडगेवार जी" ने संघ की शाखा का में स्वयंसेवक तैयार करने में उपयोग किया.
संघ की शाखा में छोटे / बड़े एकसाथ खेलते है. वहां खेलकूद में उनको बहादुर बन्ने की प्रेरणा तथा देशभक्ति की शिक्षा दी जाती है. एक साथ खेलने के कारण वे बच्चे उम्र, जाती, पंथ के आधार पर भेदभाव से दूर रहते हैं. उनको शाखा में भारत के महान देशभक्तों की कहानिया सुनाई जाती है जिससे उनको भी बैसा बन्ने की प्रेरणा मिलती है.
खेलकूद में तैयार होने वाले ये स्वयंसेवक आज भारत में महत्वपूर्ण पदों पर बैठकर देश की सेवा कर रहे हैं. आज भारत के राष्ट्रध्यक्ष, प्रधानमंत्री और अनेकों राज्यों के मुख्यमंत्री वही लोग हैं जो कभी शाखा में जाकर खेलकूद करते थे. आज भारतीय सेना में ऐसे जवानो की संख्या बहुत ज्यादा है जो बचपन से शाखा में जाते रहे है.

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