Monday, 25 June 2018

1975 का आपातकाल

1966 में लालबहादुर शास्त्री जी की म्रत्यु के बाद "नेहरु" परिवार के बफादार "इंदिरा गाँधी" को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन ज्यादातर सीनियर नेता किसी बड़े कांग्रेसी नेता को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे, इसलिए अस्थाई तौर पर "गुलजारी लाल नंदा" जी को कामचलाऊ प्रधानमन्त्री बनाया गया. गौर तलब है कि उस समय विपक्ष ज्यादा मजबूत नहीं था और इन्दिरा गांधी का जो भी बिरोध था वो कांग्रेस के अन्दर ही था.
नेहरु परिवार के बफादारों ने 1967 में कांग्रेस को दोफाड़ कर दिया. अब कांग्रेस दो भागों (कांग्रेस "ओ" और कांग्रेस "आर") में विभाजित हो गई. कांग्रेस "ओ" का नेत्रत्व "कामराज" और "मोरारजी देसाई" कर रहे थे और कांग्रेस "आर" का "इंदिरा गांधी". कांग्रेस "आर" ने इंदिरागांधी को प्रधानमंत्री बना दिया. अब 1971 के आम चुनाव में कांग्रेस "आर" को किसी भी तरह जिताना इंदिरा गांधी का लक्ष्य था,
उस समय गैर कांग्रेसी विपक्ष बहुत कमजोर था और "इंदिरा गांधी" का मुकाबला कांग्रेस "ओ" के ही बड़े और सीनियर नेताओं से था. 1971 का चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अनैतिकता की सारी सीमाएं लाँघ दीं. जमकर धनबल, बाहुबल और सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग हुआ. कहीं वोटरों को पैसा दिया गया, कहीं बूथ कैप्चरिंग कराई गई और कहीं सरकारी अधिकारियों द्वारा गिनती में हेराफेरी की गई.
इस प्रकार इंदिरा गांधी 1971 का चुनाव भारी बहुमत ( 352 / 518 ) से जीत गईं. इन धांधलियों के खिलाफ देश की अनेकों अदालतों में, अनेकों केस किये गए. ऐसा ही एक केस समाजवादी नेता राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में "जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा" की अदालत में किया था. इस मामले में "इंदिरा गांधी" की पैरवी प्रशिद्ध वकील "नानी पालकीवाला" और राज नारायण की पैरवी "शान्ति भूषण" ने की थी.
दोनों पक्षों को सुनने के बाद , 12 जून 1975 को जस्टिस "जगमोहनलाल सिन्हा" ने इंदिरा गांधी को वोटरों को घूस देने, सरकारी मशनरी का गलत इस्तेमाल, सरकारी संसाधनों का गलत इस्तेमाल जैसे 14 आरोपों में दोषी घोषित किया और 6 साल तक कोई भी चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया. इंदिरा गांधी ने इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया और फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी.
24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा लेकिन अगली व्यवस्था होने तक इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दे दी. 25 जून 1975 की सुबह लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग की और इस्तीफ़ा न देने पर राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करने का ऐलान कर दिया. जे.पी. की इस घोषणा का सभी विपक्षी दलों ने भी समर्थन कर दिया.
इस सब को देखते हुए हुए इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की रात को ही, राष्ट्राध्यक्ष "फखरुद्दीन अली अहेमद" के द्वारा देश में आंतरिक आपातकाल की घोषणा करवा दी. अब देश की सभी लोकतांत्रिक और सवैधानिक संस्थायें निष्प्रभावी हो चुकी थी और इंदिरा गांधी भारत की शासक (डिक्टेटार) बन गईं थी. संजय गांधी, बंसीलाल, वी,सी.शुक्ल, ओम मेहता की चौकड़ी, मनमाने तरीके से देश को चलाने लगा.
देश में सारे मानवाधिकार खत्म हो चुके थे, दिखावे के लिए संजय गांधी का पांच सूत्रीय कार्यक्रम चल रहा था जिसका काम - प्रौढ़ शिक्षा, दहेज प्रथा का खात्मा, पेड़ लगाना, परिवार नियोजन और जाति प्रथा उन्मूलन था. लेकिन सबसे ज्यादा जोर परिवार नियोजन पर था. पुलिसवाले गांव को घेर लेते थे और पुरुषों की जबरदस्ती नसबंदी कर दी जाती थी, इस दौरान 83 लाख पुरुषों की जबरन नसबंदी की गई थी.
25 जून की रात को ही, इंदिरा गांधी ने तमाम बड़े विपक्षी नेताओं जय प्रकाश नारायण, अटल बिहारी बाजपेई, लाल कृष्ण अडवानी, राज नारायण, मोरारजी देसाई, आदि को गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिसका इस मामले में कोई रोल नहीं था उसके स्वयंसेवकों को पकड़कर जेल भेजा जाने लगा. आरएसएस पर यह आरोप लगाया कि- उसके मुखपत्र आर्गनाइजर ने "इंदिरा गांधी" के बिरोध में लिखा था.
इंदिरा को लगा कि- विपक्ष के बड़े नेताओं को गिरफ्तार करने से विपक्ष दब जायेगा लेकिन हुआ इसका उल्टा. अब अनेकों नेता तथा युवा इंदिरा गांधी के खिलाफ सड़कों पर उतर आये, जिनमे चंद्रशेखर, बालासाहब देवरस, सुब्रहमन्यम स्वामी, लालू यादव, नरेंद्र मोदी, मुलायम सिंह यादव, अरुण जेटली, सीताराम येचुरी, संतोष गंगवार, नितीश कुमार, शिवराज सिह चौहान, कल्याण सिंह, शंकर सिंह बाघेला, आदि प्रमुख थे.
लालू, मुलायम, मोदी और स्वामी तो इतना प्रचंड आन्दोलन कर रहे थे कि- सरकार ने इनको गिरफ्तार करने के बजाय सीधे गोली मार देने की साजिश कर ली थी. लालू प्रसाद यादव ने तो एक अफवाह फैलवाकर कि - लालू को मारकर गंगा में फेंक दिया है, अपना बचाव किया और फिर भूमिगत रहकर आन्दोलन चलाया. नरेंद्र मोदी और सुब्रहमन्यम स्वामी सिक्ख वेश में फरार होकर सरकार के खिलाफ अलख जगाते रहे.
इस प्रकार 21 माह के इस आपातकाल ने जितने नेताओं को कैद किया था, उससे कहीं ज्यादा नए नेताओं को जन्म दिया. आज लोग फेसबुक, ट्वीटर, आदि पर लिखते हैं कि - मोदी ने अघोषित आपातकाल लगा रखा है उनको पता होना चाहिए कि- आपातकाल में मामूली सा बिरोध करने की भी इजाजत नहीं थी. उस समय कोई भी व्यक्ति, पत्रकार, कर्मचारी, आदि किसी भी प्रकार से सरकार के खिलाफ नहीं बोल सकते थे.
इंदिरा गांधी ने जिस तरह अचानक आपातकाल लगाने की घोषणा की थी उसी तरह 18 जनवरी 1977 को, लोकसभा चुनाव कराने की घोषणा कर दी. 6-20 मार्च के बीच देश में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ऐतिहासिक हार हुई. इंदिरा और संजय गांधी दोनों ही चुनाव हार गए. 21 मार्च 1977 को आपातकाल हटा दिया गया और 24 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई के नेतृत्व में देश में पहली गैरकांग्रेसी सरकार बनी.

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