Wednesday, 27 June 2018

1971 युद्ध : तीन मिनट का आख़िरी हमला (14 दिसंबर)

3 दिसम्बार 1971 को पापिस्तान ने अमेरिकी हथियारों के दम पर भारत पर यह सोंच कर हमला किया था कि वो युद्ध मे भारत को मात दे देगा, लेकिन भारतीय सेना ने उसे दस दिन में ही छठी का दूध याद दिला दिया था. भारतीय सेना ने पापिस्तान को हर मोर्चे पर मात दी. भारतीय सेना के हौशले के सामने पापिस्तानी टिक ही नहीं पाए.
थल सेना ने पूर्वी और पश्चिमी दोनों पापिस्तान में बड़े भूभाग को जीत लिया था. कराची के बन्दरगाह पर भारतीय नौसेना ने कब्जा कर लिया था. पापिस्तान के सैकड़ों टैंक, तीन युद्धपोत, एक बड़ी पनडुब्बी, अनेको लड़ाकू विमान, आदि को भारतीय सेना ध्वस्त कर चुकी थी. इसके अलावा पूर्वी पापिस्तान की आम जनता भारत के साथ आ गई थी.
इस हालात से निपटने के लिए, पूर्वी पापिस्तान के गवर्नर "डाक्टर ए. एम. मलिक" ने 14 दिसंबर 1971 को सर्किट हाउस में एक मीटिंग बुलाई, जिसमे पापिस्तानी प्रशासन के सारे आला अधिकारी भाग लेने वाले थे. उनका यह मैसेज भारतीय वायुसेना के एक रेडियों ने पकड़ लिया. वायु सेना ने निर्णय लिया कि - इस मीटिंग के समय बड़ा हमला करना है.
गुवाहाटी से 150 मील दूर हाशिमारा एयर बेस में विंग कमांडर आरवी सिंह ने, 37 स्कवॉड्रन के सी.ओ. विंग कमांडर एसके कौल को बुला कर ब्रीफ़ किया कि- उन्हें ढाका के सर्किट हाउस को ध्वस्त करना है. साथ ही उनको निर्देश दिया गया कि- हमले में ध्यान रखना कि - बंगाल की आम जनता को कोई नुकशान नहीं होना चाहिए.
दुसरी तरफ गुवाहाटी में विंग कमांडर बी.के.बिश्नोई के नेतृत्व 4 मिग को इस काम की जिम्मेदारी दी गई. विश्नोई का विमान उड़ने ही वाला था कि -एक अफसर एक कागज़ लहराते हुए, दौड़ते हुए उनके पास आया और बताया कि - लक्ष्य बदल दिया गया है. मीटिंग सर्किट हाउस के बजाय गवर्नर हाउस में हो रही है, इसलिए वहीं हमला करना है.
बिश्नोई ने पूछा- ये है कहाँ ? तो उसका जवाब था कि आप को ही पता करना है कि- वो कहाँ है. बिश्नोई को अगले 24 मिनट में हमला करना था जिसमे से 21 मिनट वहां पहुँचने में ही लगने वाले थे. उनके पास इतना समय भी नहीं था कि उस पर चर्चा कर पाते. वे अपने साथी पायलेट्स को भी रेडियो पर नहीं बता सकते थे, क्योंकि मैसेज पकडे जाने का डर था.
बीस मिनट की उड़ान ने बाद वे ढाका के पहुँच गए, वहां पहुँच कर उन्होंने टूरिस्ट मैप को निकाल कर देखा और अपने साथी पायलेट्स को रेडियो पर संदेश भेजा कि - ढाका हवाई अड्डे के दक्षिण में लक्ष्य को ढ़ूंढ़ने की कोशिश करें. अब ये लक्ष्य सर्किट हाउस न हो कर गवर्मेंट हाउस है. उनके दुसरे पायलट विनोद भाटिया ने सबसे पहले गवर्मेंट हाउस को ढूंढ़ा.
विनोद भाटिया ने उसके बारे में विश्नोई को सूचित किया. लोकेशन सुनिश्चित करने के लिए बिश्नोई अपने मिग को बहुत नीचे ले आये. नीचे बहुत सारी कारें और बहुत सारे सैनिक देखकर उनको लक्ष्य पक्का हो गया. भवन की गुम्मद पर पापिस्तान का झंडा देखने के बाद उन्होंने अपने साथी पायलट्स को बोला - यही लक्ष्य है, हमें यहीं हमला करना है.
उनके आगे निकलते ही अन्य विमानों ने राकेट दाग दिए. वहां एकदम अफरा तफरी मच गई. इससे पहले की वे लोग कुछ समझ पाते, विंग कमांडर एस.के. कौल भी अपनी टीम के साथ पहुँच गए. उनके निशाने इतने सटीक लगे थे कि - गवर्नर हाउस के आसपास की किसी बिल्डिंग को कोई नुकशान नहीं हुआ. हवाई हमले में ऐसा होना बहुत बड़ी बात है.
इस हमले के समय गवर्नर हाउस में गवर्नर ए. एम. मलिक अपने मंत्रिमंडल के साथियों से मंत्रणा कर रहे थे और संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधि जॉन केली भी उसी समय वहां पहुंचे थे. उनके बीच चर्चा हो ही रही थी कि - अचानक यह हमला हो गया. केली और उनके साथी व्हीलर जंगले से बाहर कूदे और बचने के लिए बाहर खड़ी एक जीप के नीचे छिप गए.
इस हमले के बाद गवर्नर ए. एम. मलिक ने हार मान ली और रेडियो पर ही अपना इस्तीफा राष्ट्रपति याहया खान को दे दिया. याहया खान ने कहा कि- जनरल नियाजी भारत को इसका जबाब देगा, लेकिन मलिक ने कहा अब कोई कुछ नहीं कर पायेगा, अब हम खुद शरणार्थी हैं. इस हमले के बाद 14 दिसंबर को पापिस्तान का प्रतिरोध समाप्त हो गया था.
मुक्तिवाहिनी के सैनिक सड़कों पर आ गए और वो पापिस्तानी सैनकों से गिन गिन कर जुल्म का हिसाब लेने लगे. इधर लेफ्लीनेंट जनरल जैकव के नेतृत्व में थल सेना ढाका पहुच गई. जैकव ने नियाजी को सन्देश दिया कि- अगर सरेंडर कर दोगे तो हम तुम्हारी रक्षा का बचन देते हैं, वरना ये मुक्ति वाहिनी वाले तुममे से किसी को ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे.
उस समय ढाका शहर में ही पापिस्तान के 30,000 सैनिक थे और भारत के केवल 3,000, लेकिन पापिस्तानियों की हिम्मत जबाब दे चुकी थी. अपने अधिकारियों से मंत्रणा करने के बाद जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण करने का निर्णय ले लिया और जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. इसके साथ ही वह युद्ध समाप्त हो गया.
तीन मिनट के इस हमले ने पापिसान की हार निश्चित कर दी थी. युद्ध में असाधारण वीरता दिखाने के लिए विंग कमांडर एसके कौल को महावीर चक्र और विंग कमांडर बीके बिश्नोई और हरीश मसंद को वीर चक्र प्रदान किए गए. आगे चलकर विंग कमांडर एसके कौल वायुसेना अध्यक्ष बने तथा उनके बाद हरीश मसंद भी वायुसेना अध्यक्ष बने.


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