Monday, 4 February 2019

कायमखानी और कायमखान

मैं बर्षों से "कायमखानी" जाति के कुछ मुस्लिम्स को फेसबुक पर देख रहा हूँ कि - वे लोग "कायमखानियों" की वीरता का खूब बखान करते रहते है और बताते हैं कि सेना में उनकी अलग से "कायमखानी रेजीमेंट" है. "कायमखानियों" की वीरता का गुणगान करते समय यह लोग अन्य सभी जातियों के लोगों का निरादर तक करने लग जाते हैं.
मेरा हमेशा यह मानना है कि- कोई भी व्यक्ति अपनी जाति के कारण महान नहीं होता है, केवल किसी की व्यक्तिगत उपलब्धि ही उनको महान बनाती है. सेना में हर जाति और क्षेत्र के लोग है और उन्होंने जो कुछ भी किया है वो अपने देश के लिए किया है और यही उनकी ड्यूटी भी थी जिसके लिए देश के नागरिक उनको धन और सम्मान देते है.
"कायमखानियों" की वीरता का बखान सुनने के बाद मैंने इसकी वास्तविकता जानने का प्रयास किया. तो पता चला कि - भारतीय सेना में "कायमखानी रेजीमेंट" नाम की कोई रेजीमेंट है ही नहीं. कायमखानी तो क्या किसी भी मुस्लिम नाम की कोई रेजीमेंट नहीं है. फिर सोंचा कि शायद इन लोगों ने अन्य रेजीमेंट में रहते हुए कोई बड़ा काम किया हो.
सेना में असाधारण बहादुरी दिखाने वाले सैनिको को उनकी वीरता के हिसाब से परमवीर चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र, अशोक चक्र, कीर्ति चक्र, शौर्य चक्र, आदि प्रदान किये जाते हैं. उनकी लिस्ट खंगालने पर भी मुझे केवल एक कायमखानी "अय्यूब खान" का नाम मिला जिनको युद्ध में बहादुरी के लिए तीसरी श्रेणी का अवार्ड "वीर चक्र" मिला है.
तो आखिर ये लोग किस आधार पर कायमखानियों की वीरता का बखान करते रहते हैं.  इनका यह भी कहना है कि - कायमखानी जाति एक लड़ाका कौम है. तो अपने गाँव में अन्य जातियों के ऊपर दबंगई दिखाना कोई वीरता नहीं होती है बल्कि उसे गुंडागर्दी कहते हैं. मार्शल या लड़ाका कौम तो उनको कहते हैं जो देश के लिए लड़ते हैं.
मैंने कायमखानियों के स्वयंभू प्रवक्ताओ से भी पूंछा कि - स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने वाले तथा आजादी के बाद भारत पर आक्रमण करने वाले, दुश्मन देशों से युद्ध में असाधारण वीरता दिखाने वाले कुछ कायमखानियो के बारे में बताने की कृपा करें तो यह लोग, बताने के बजाय अभद्र भाषा बोलकर बिषय बदलने लगते हैं.
कायमखानियो का और ज्यादा पता लगाने की कोशिश की तो भी मुझे भारत के इतिहास में किसी भी ऐसे कायमखानी का कोई पता नहीं चल सका जिसने पिछले सैकड़ों साल में, देश के लिए कोई उल्लेखनीय योगदान दिया हो. यह स्वयंभू प्रवक्ता भी किसी कायमखानी वीर के बारे में कुछ नहीं बता पाए.
 मैंने पता लगाने की कोशिश की कि आखिर यह कायमखानी कौन हैं. तो पता चला कि - यह लोग भी भारतीय मूल के ही चौहान जाति के लोग हैं, जिन्होंने तुगलक के आक्रमण के समय, आक्रमणकारियों का मुकाबला करने के बजाय, उन आक्रमणकारियों का साथ दिया था तथा अपने धर्म को छोड़कर इस्लाम को अपना लिया था. 
यह लोग हिन्दू क्षत्रीय थे मगर मुसलमान बन गए. ददरेवा गाँव (चुरू) के राजा मोटाराव चौहान का बेटा था करम चन्द चौहान, जिसने धर्म छोड़ कर इस्लाम को अपना लिया था और अपना नाम रख लिया था कायमखान.  एक बात समझ नहीं आती उसके बच्चे खुद को कायम खानी कहते थे ठीक था, लेकिन रियासत का हर बच्चा कायमखानी कहलाने लगा. 
 खुद को मार्शल कहने के बाबजूद, कभी भी इन कायमकहानियों  ने अत्याचारी मुघलो या अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ  आवाज नहीं उठाई. कायमखान की सेना कायमखानी सेना कहलाती थी. अंग्रेजों ने जरूर इनको मार्शल कहकर इनका खूब फायेदा उठाया और इनका भारतीय क्रांतिकारियों के खिलाफ भरपूर  इस्तेमाल किया. 
कायमखानी अपने आपको चाहे कुछ भी बताएं लेकिन उनकी सारी ताकत हमेशा अपने हिन्दुस्थानी भाइयों के खिलाफ ही इस्तेमाल हुई, न कि विदेशी हमलावरों के खिलाफ. अंग्रेजो के राज में भी कायमखानी लोग अंग्रेजों की सेना में थे और अपने अंग्रेज मालिकों के आदेश पर क्रांतिकारियों पर गोली चलाया करते थे .

2 comments:

  1. Tbhi tumhe log balayi ka darja de rkhe hai, tum verma log nich ke darje me dikhayi dete ho sabke samne....

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  2. Bete rajasthan k 19 veer chakr m se 7 khayamkhani kom h pas h ...
    Or hemesha rajputo k sath reh ...apne blood k wfadar reh h..tabhi history m name ijjet se liya jata h...
    Tum only jl skte ho

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