Sunday, 3 February 2019

वीर ताना जी और सिंहगढ़ विजय

 सिंहगढ़ (शेर का किला) एक प्राचीन किला है. हालांकि इस किले का वास्तविक नाम "कोंढाणा" है. यह किला महारष्ट्र के पुणे शहर 30 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. ये किला राजगढ़, पुरन्दार और तोरणा रेंज में स्थित है. यूँ तो यह किला सदियों से अनेकों युद्धों का साक्षी रहा है परन्तु 4 फरवरी 1670 का युद्ध बहुत ही यादगार युद्ध माना जाता है.
वीरमाता जीजाबाई और समर्थ गुरु रामदास के कुशल मार्गदर्शन में शिवाजी महाराज का महाराष्ट्र में प्रभाव् बढ़ता जा रहा था. वीरमाता जीजाबाई का "कोंढाणा" दुर्ग से भावनात्मक लगाव था. एक दिन उन्होंने शिवाजी से कहा मुझे "कोंढाणा दुर्ग" चाहिए. शिवाजी ने माता के चरण छूकर कहा - आपकी आज्ञा का अवश्य पालन होगा.
शिवाजी जानते थे इस दुर्ग को जीतना आसान काम नहीं है. उन्होंने अपने बचपन के साथी "वीर तानाजी को सन्देश भेजा. परन्तु तभी शिवाजी को याद आया कि- कुछ ही दिन में उनकी बेटी की शादी होने को है और वे उसकी तैयारियों में व्यस्त होंगे, तो उनको बहुत ग्लानी महसूस हुई और उन्होंने तानाजी को मना करने के लिए दूसरा संदेशवाहक भेजा.
सन्देश मिलते ही तानाजी और उनके भाई शिवाजी महाराज से मिलने को चल पड़े. तब तक दूसरा सन्देशवाहक भी उनके पास पहुँच गया और उसने कहा- महाराज ने कहा है कि- आप शादी की तैयारी करें, अभी न आये. तब तानाजी ने कहा - मैं अवश्य जाऊँगा. अगर शिवाजी महाराज ने याद किया है तो अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण कार्य होगा.
तानाजी और सूर्याजी फौरन शिवाजी महाराज के पास पहुंचे. शिवाजी ने बताया कि- माता की इच्छा है कि- "कोंढाणा" के दुर्ग पर भगवा लहराना चाहिए. तब तानाजी ने कहा कि- मैं बचन देता हूँ कि - कल सुबह "कोंढाणा" पर भगवा लहरा रहा होगा. तानाजी और उनके भाई सूर्याजी ने 1000 सैनिको की फ़ौज ली और किले के पीछे पहुँच गए.
उनको पता था कि- किले में लगभग 5000 मुस्लिम सैनिक मौजूद है लेकिन किले के पीछे बिलकुल सीधी चट्टान है थी अतः उस तरफ विशेष पहरा नहीं रहता, क्योंकि उस पर चढ़ना असंभव है. तानाजी के पास एक पालतू गोह (एक तरह की बड़ी सी छिपकली) थी जिसका नाम था "यशवंती". उन्होंने उस प्रशिक्षित गोह को एक रस्सी पकड़ाकर, उसे ऊपर बांधकर जाने को कहा.
"यशवंती" गोह वह रस्सी मुह में दबाकर सीधी दीवार पर चढ़ गई और ऊपर जाकर मजबूत बुर्जी को फेरा देकर नीचे आ गई. इस प्रकार "यशवंती" गोह ने कई रस्से ऊपर पहुंचा दिए. उन रस्शों के सहारे कुछ सैनिक बड़ी खामोशी के साथ किले पर चढ़ गए और उन्होंने कई सारे और रस्से मजबूत स्थानों पर बांधकर नीचे लटका दिए.
उन रस्सों की सहायता से तानाजी लगभग 300 सैनिको के साथ किले के ऊपर पहुँच गए और सूर्याजी ने 700 सैनिको के साथ किले के बाहर मोर्चा सम्हाल लिया. भीषण युद्ध प्रारम्भ हो गया. 1000 मराठा योद्धाओं ने मुघल सैनिको को मारकर, किला जीत लिया. वीर तानाजी बुरी तरह घायल हो गए थे परन्तु स्वर्ग को सिधारने से पहले खुद भगवा फहराया.
शिवाजी को इसकी खबर मिली, तो वे अपनी माता जीजाबाई के पास पहुंचे. उनको मुह लटकाए देखकर जीजाबाई ने पूंछा - गढ़ का क्या हुआ ? शिवाजी ने उनको जबाब दिया - "गढ़ आला. पण सिंहा गेला” अर्थात- किला तो जीत लिया मगर शेर (ताना जी) नहीं रहे. तबसे "कोंढाणा" का किला "सिंहगढ़" के नाम से विख्यात हो गया.
इस किले के भीतर "वीर तानाजी" और शिवाजी महाराज के एक पुत्र "राजाराम जी" की समाधि बनी हुई है. किले में काली माँ और हनुमान जी की भव्य मूर्ति है जिनको इस किले का रक्षक माना जाता है. यह किला "खादकवासला : राष्ट्रिय सुरक्षा अकैडमी" का ट्रेनिंग स्थल भी है. इस किले में मांस मदिरा पूरी तरह से बर्जित है.
कहा जता है कि- अंग्रेजों ने हिन्दुओं की मान्यताओं को नकारते हुए किले में शराब की भट्ठी बनाई थी और गौ हत्या भी की. परन्तु अचानक कुछ ऐसी घटनाएं / दुर्घटनाए हुई कि- अंग्रेजो ने भी किले में मांस / मदिरा पर प्रतिबन्ध लगा दिया और शराब भट्ठी को बंद कर दिया. शराब की उस भट्ठी के अवशेष आज भी किले में मौजूद हैं.

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