Sunday, 10 February 2019

सरस्वति घाटी सभ्यता

 पश्चिमी इतिहासकारों ने सरस्वति घाटी सभ्यता को, सिन्धु घाटी सभ्यता का नाम क्यों और किस उद्देश्य से दिया यह तो वही बता सकते हैं लेकिन यह बात अब निर्विवाद रूप से साबित हो चुकी है कि - सरस्वति नदी रोपड़, पेहोवा, कालीबंगा, कच्छ की रण होते हुए अरब सागर में गिरती थी. वैदिक काल से ही सरस्वति नदी एक पवित्र नदी मानी गई है.
सरस्वति नदी का संगम कभी भी गंगा/ यमुना के साथ नहीं हुआ था. सरस्वति नदी के सूख जाने के बाद, सरस्वति घाटी के लोग भी गंगा यमुना की घाटी में पलायन कर गए. शायद सरस्वति घाटी में रहने वालों की मानसिक संतुष्टि के लिए यह मान्यता प्रचलित की गई, आप लोग निराश न हों, आपकी सरस्वति नदी भी अंडरग्राउंड संगम में मिल गई है.
जिन स्थानों पर प्राचीन नगरों और सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं, उन बिन्दुओं के बीच रेखा खींचने से जो मार्ग प्राप्त होता है उसे ही सरस्वति नदी माना जा सकता है. प्राचीन समय में जितनी भी सभ्यताएं फैली या जितने भी नगर बसे वे सभी नदी किनारे बसे थे क्योंकि एक बड़ी आबादी का पालन बिना जल की पर्याप्त मात्रा के होना असंभव है.
पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा खोजे गए बिन्दुओं और पौराणिक घटनाओं का अध्ययन करने से भी सरस्वति नदी के इसी मार्ग की पुष्टि होती है. महाभारत के युद्ध के लिए भी, बिशाल मैदान तथा पर्याप्त पानी के लिए सरस्वति नदी को देखकर ही कुरुक्षेत्र का मैदान युद्ध के लिए चुना था और युधिष्ठिर ने मृतकों का तर्पण भी पेहोवा में सरस्वति नदी में किया था.
सिंधु घाटी सभ्यता का काल जहां 3000 ईसा पूर्व से 1500 ईसा माना जाता है, वहीं पुरातात्विक साक्ष्यों की कार्बन तिथि निर्धारण द्वारा सरस्वती नदी सभ्यता का काल 7500 ईसा पूर्व तक निर्धारित हो चुकी है. "इतिहास" केवल एक विषय ही नहीं, बल्कि किसी राष्ट्र की पहचान भी होता है. इसलिए इसकी सत्यता को जानना आवश्यक है.
यह बात पुरातात्विक सर्वेक्षणों से प्रमाणित हो चुकी है कि - भारत में प्रथम सभ्यता का उदय सिंधु नदी घाटी में नहीं अपितु सरस्वती नदी घाटी में हुआ था. सरस्वती नदी के तट पर 200 से अधिक छोटे / बड़े नगर बसे थे. इस कारण इसे 'सिंधुघाटी की सभ्यता' कहने के स्थान पर 'सरस्वति नदी की सभ्यता' ही कहना चाहिए.
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आजकल कुछ शोधकर्त्ता "भागीरथ के गंगा अभियान" और "देव दानवों द्वारा समुद्र मंथन" जैसी पौराणिक कथाओं को आधार बनाकर भी गंगा यमुना सरस्वति नदियों पर शोध कर रहे हैं. आधुनिक खोज और पौराणिक कथाओं में सामनजस्य बिठाकर उनका तुलनात्मक अध्ययन कर नए तथ्य खोजे जा रहे हैं.
कुछ शोधकर्त्ताओ को ऐसा लगता है कि यमुना और सरस्वति प्राचीन नदियाँ थीं. यमुना यमुनोत्री से निकल कर दिल्ली, मथुरा, प्रयाग, पटना, ढाका होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती थी, बंगलादेश के काफी इलाके में गंगा को आज भी जमुना कहा जाता है. सरस्वति शिवालिक की पहाड़ियों से निकलकर रोपड़, पेहोवा, कालीबंगा, कच्छ की रण, होते हुए अरब सागर में गिरती थी.
समय के साथ साथ दोनों नदियों में जल की कमी हो गई और इन नदियों के किनारे रहने वाले लोग पानी की कमी की बजह से मरने लगे. पानी की कमी को पूरा करने के उद्देश्य से भागीरथ के दादा "सगर"ने गंगा को हिमालय से लाकर यमुना में मिलाने का अभियान शुरू किया, जिसमे दो पीढ़ी बाद भागीरथ को सफलता मिली.
इसी घटना को वे समुद्र मंथन से भी जोड़ने का प्रयास करते हैं. उनके अनुसार यमुनानदी के किनारे रहने वालों को इस अभियान में जब अकेले सफलता नहीं मिली तो इसमें सरस्वति नदी के किनारे रहने वालों को भी शामिल किया गया. दोनों ने मिलकर अभियान को अंजाम दिया लेकिन जलधारा सरस्वति के बजाय यमुना की तरफ मोड़ दी गई.
इस घटना के बाद दोनों में युद्ध प्रारम्भ हो गया और शान्ति बनाए रखने के उद्देश्य से सरस्वति नदी के किनारे वालों को भी गंगा / यमुना की घाटी में रहने को स्थान दिया गया और यह मान लिया गया कि सरस्वति नदी भी अंडरग्राउन्ड प्रयाग में आकर संगम में मिल जाती है. उसके बाद सरस्वति घाटी के लोग भी गंगा/यमुना की घाटी में ही बस गए.
सरस्वति घाटी वालों के द्वारा अपने इलाके छोड़ देने के बाद वह इलाके इतिहास में दफ़न हो गए. कहानी और शोध में समानता होने के बाबजूद बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो आपस में मेल नहीं खाती हैं, इसलिए इस सिद्धांत को अपनाया नहीं जा सकता. यह तथ्य सत्य प्रतीत होने के बाबजूद प्रामाणिक नहीं हैं, इसलिए अभी काफी रिसर्च की आवश्यकता है.
फिर भी कुछ शोधकर्ता मानते है कि - घटना ऐसे ही घटी होगी, लेकिन कवियों और कथाकारों ने उसमे अनेकों अतिश्योक्ति पूर्ण घटनाएं जोड़ दी होंगी. इस लेख में दिए गए तथ्यों को आधार बनाकर शोध में आप भी अपना योगदान देने का प्रयास कीजिए. इसके लिए पौराणिक कथाओं के अध्ययन से लेकर इन क्षेत्रों में भ्रमण और पुराने परिणामो की समीक्षा करें.
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यमुना और सरस्वति भारत की दो प्राचीन नदियां है और इनके किनारे ही सभ्यता विकसित हुई. यमुना और सरस्वति के बीच का क्षेत्र प्राचीन काल में भारतीय संस्कृति का केंद्र बिंदु रहा है. यह क्षेत्र आज का हरियाणा है. कहा जाता है कि - जल प्रलय के बाद महाराजा मनु ने बचे हुए लोगों को लेकर फिर से इसी क्षेत्र में बसाया था.
जल प्रलय को लेकर आज के वैज्ञानिक भी यही मानते हैं कि - भयानक भूकंप के कारण हिमालय पर ग्लेशियर टूटे होंगे जिसके कारण सरस्वति, यमुना, घाघरा, आदि बड़ी नदियों में एक साथ भयानक बाढ़ आई होगी जिसमे उत्तराखंड / उत्तर प्रदेश में प्राचीन नदियों के किनारे बसे शहर डूब गए होंगे और बहुत ही जान माल की हानि हुई होगी.
उस समय महाराज मनु ने बचे हुए लोगों को यमुना पार कराकर हरियाणा के ऊँचे स्थानों पर रखा और दोबारा उनका जीवन पटरी पर लाये. ऐसा माना जाता है कि - मनु स्मृति की रचना भी उन्होंने कुरुक्षेत्र में की. कुरुक्षेत्र का अर्थ केवल कुरुक्षेत्र जिला या कुरुक्षेत्र विधानसभा क्षेत्र नहीं बल्कि वर्तमान कुरुक्षेत्र का 48 कोस (60km) लम्बा और 48 कोस चौड़ा पूरा क्षेत्र है.
भूकंप के बाद बाढ़ आई और बाढ़ के बाद नदिया सूख गई तब भागीरथ द्वारा हिमालय को काटकर गंगा को मैदान में लाया गया. जिसमे यमुना और सरस्वति के किनारे रहने वालों ने भी सहयोग दिया. परन्तु गंगा का जल सरस्वती में न आ सका और उसके बाद सरस्वति घाटी सभ्यता विलुप्त होती चली गई और गंगा - यमुना के मैदान हरे भरे हो गए.







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