Monday, 11 February 2019

प्रो. बलराज मधोक

बलराज मधोक जी का जन्म 25 फरवरी, 1920 में बाल्टिस्तान के स्कार्दू में हुआ था. उनके पिता जगन्नाथ मधोक जम्मू कश्मीर के लद्दाख़ में एक सरकारी अधिकारी थे. बलराज मधोक ने अपनी उच्चतर माध्यमिक शिक्षा श्रीनगर से और स्नातक स्तर की पढ़ाई लाहौर से की. बलराज मधोक 20 बर्ष की आयु में (1940 में) आरएसएस के स्वयंसेवक बनेे.

वे मात्र 24 वर्ष की आयु में डीएवी पोस्ट ग्रेड्यूट कालेज में इतिहास के विभागाध्यक्ष बने. उनकी योग्यता को देखते हुए उन्हें वाइसप्रिंसिपल भी बना दिया गया. उनका मानना था कि - गुलामी के दौर में भारत में धर्म की हानि हुई है और हिन्दू समाज बिखरा हुआ है. वे बिखरे हुए समाज को एकत्र कर भारत को महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते थे.

विभाजन के कारण पापिस्तानी हिस्से से जान बचाकर कश्मीर में आये शरणार्थी हिन्दुओं को आर्थिक व सामाजिक सहायता प्रदान की. आज़ादी के बाद जब पापिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया, उस समय बलराज मधोक डी.ए.वी. कॉलेज, श्रीनगर में उपप्रधानाचार्य थे. इस दौरान उन्होंने शरणार्थी रिलीफ कमेटी का गठन किया और

पूरे जम्मू-कश्मीर में शेख अब्दुल्ला और पाकिस्तान के षड्यंत्र पूरे उफान पर थे. लेकिन जवाहर लाल नेहरू, शेख अब्दुल्ला की मोहब्बत में गिरफ्तार थे. शेख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के डोगरा हिन्दू शासक "राजा हरिसिंह" को हटा कर घाटी में इस्लामी शासन की स्थापना करना चाहते थे. नेहरु भी जाने अनजाने में इसमें अब्दुल्ला का साथ दे रहे थे.

22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया, 25 अक्टूबर 1947 तक दोमेल, मुज़फ़्फ़राबाद, उड़ी, बारामुला और महूरा पर पाकिस्तान का कब्ज़ा हो गया. नेहरु का कहना था कि जबतक राजा हरिसिंह कश्मीर की सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं होंते तब तक कश्मीर को कोई सैन्य मदद नहीं दी जायेगी.

उस समय बलराज मधोक और संघ के गुरु गोलवरकर जी ने ही राजा हरिसिंह को 25 अक्टूबर 1947 को विलयपत्र पर हस्ताक्षर करने को राजी किया था. कश्मीर के भारत में विलय हो जाने के बाद राजासिंह को कश्मीर छोड़ना पड़ा. कश्मीर के मुस्लिम सैनिको ने बगावत कर दी और पापिस्तानी सेना तथा कबायलियों का साथ देने लगे.

संघ संस्कारों की वजह से मधोकजी के भीतर कश्मीर को पापिस्तान से बचाने की अदम्य इच्छा थी. पापिस्तानी सेना ने श्रीनगर हवाई अड्डे को क्षतिग्रस्त करने की कोशिश की थी. 26 अक्टूबर की सर्द रात में संघ ने हवाई पट्टी से बर्फ हटाने का संकल्प लिया. तो मधोक के आग्रह पर उनके कालेज के विद्यार्थी भी स्वयंसेवकों के साथ शामिल हुए थे.

27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना हवाई जहाजों से श्रीनगर उतरी. सेना ने उड़ी, बारामुला व अन्य क्षेत्र वापस जीत लिए लेकिन नेहरू, माउंटवेटन, शेख अब्दुल्ला और जिन्ना के षड्यंत्रों के चलते नेहरू ने एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी और कश्मीर का 40 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान के हिस्से में ही रह गया.

लेकिन कश्मीर की रक्षा करने के लिए राष्ट्रवादियों को इनाम नहीं बल्कि सजा मिली. शेख़ अब्दुल्ला ने श्रीनगर की गद्दी पर बैठते ही सभी स्वयंसेवकों को गिरफ्तार करने का हुक्म दे दिया. अनेकों स्वयंसेवक मार दिए गए. प्रोफेसर बलराज मधोक और प. प्रेमचन्द डोगरा साहसिक रूप से श्रीनगर से निकल जम्मू पहुचे.

शेख अब्दुल्ला की देशद्रोही हरकतों का सामना करने के लिए उन्होंने 'जम्मू कश्मीर प्रजा परिषद' की स्थापना की. प्रजा परिषद् के सदस्यों ने उस समय कदम कदम पर सेना का साथ दिया. 1949 में उन्होंने संघ के "दत्तोपंत ठेंगडी" जी के साथ मिलकर "अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्" नामक छात्र संगठन की नींव रखी थी.

"अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्" आज दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन है. 1951 में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने "अखिल भारतीय जनसंघ" की स्थापना की तो बलराज मधोक भी उसके संस्थापक सदस्य बने. उन्होंने दिल्ली, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनसंघ के विस्तार और प्रचार का काम किया.

1961 के लोकसभा चुनाव में बलराज मधोक "दक्षिण दिल्ली" सीट से विजय प्राप्त कर संसद में पहुंचे. 1966-67 में वे जनसंघ के अध्यक्ष बने. 1966 भारतीय जनसंघ ने 33 सीटें जीतीं और वह कांग्रेस का मजबूत विकल्प बनकर उभरी, लेकिन दुर्भाग्य से जनसंघ के बड़े नेताओं में आपस में मनमुटाव होने लगा.

पार्टी में एक गुट अटल / अडवानी का तथा दूसरा गुट बलराज मधोक का बन गया. 1973 में उनका आपस का विवाद इतना बढ़ गया कि - तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण अडवानी ने "बाजराज मधोक" को पार्टी से निष्काषित कर दिया. हालांकि पार्टी के कई सीनियर / जूनियर नेता उनके साथ संपर्क में रहे.

इसी बीच 1975 में इंदिरा गांधी ने देश पर जबरन आपातकाल थोप दिया. तब बिना किसी बजह के "बलराज मधोक" को भी 18 महीने के लिए जेल में बंद कर दिया गया. 1977 में सभी गैर कांग्रेसी पार्टियों ने आपस में विलय करके एक नई पार्टी "जनता पार्टी" का गठन किया और इंदिरा गांधी / कांग्रेस को हराने में कामयाब हुए.

बलराज मधोक उस समय भी भारतीय जनसंघ का जनता पार्टी में विलय का बिरोध करते रहे. 1979 में उन्होंने अपनी भारतीय जनसंघ को जनता पार्टी से अलग घोषित कर दिया. उन्होंने अपनी पार्टी को आगे बढाने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली. अधिकाँश जनसंघी नेता अटल / अडवानी के नेतृत्व वाली "भारतीय जनता पार्टी" से जुड़ गए.

उन्होंने "भारतीय जनसंघ" को "अखिल भारतीय जनसंघ" के नाम से पुर्नजीवित करने का प्रयास किया परन्तु अधिक आयु, बीमारी और आर्थिक तंगी के चलते असफल रहे. धीरे धीरे यह महान राष्ट्रवादी नेता गुमनामी की ओर चला गया. धीरे धीरे लोग उन्हें भूल गए और वे एकाकी जीवन जीने लगे.

2 मई 2016 को 96 साल की आयु में बलराज मधोक अनाम और खामोश मृत्यु को प्राप्त हुए. उनकी म्रत्यु के समय एक तरह से उनके द्वारा बनाई गई पार्टी के लोगों कि ही सरकार थी, मगर उनको वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे वास्तव में हकदार थे. बैसे इसमें कुछ गलती उनकी भी थी जो उन्होंने आपसी विवाद के चक्कर में पार्टी को छोड़ दिया था.

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