Sunday, 24 February 2019

संविधान की धारा (आर्टिकल ) 370 के बिरोध का बिरोध क्यों ?

संविधान की धारा- 370 का बिरोध करने वाले का बिरोध, अगर कोई कश्मीरी करता है, तो समझ में आता है क्योंकि कोई भी मुफ्त मिले विशेषाधिकार को भला क्यों छोड़ना चाहेगा ? लेकिन अगर शेष भारत का कोई नागरिक (मुस्लिम या मुस्लिम वोट के सहारे राजनीति करने वाला) बिरोध करता है तो उसका तो कोई कारण समझ नहीं आता.
संविधान की धारा-370 के कारण कश्मीर को जो विशेष दरजा दिया गया है, उसका लाभ केवल कश्मीरी को ही मिलता है शेष भारत के किसी अन्य मुसलमान को नहीं. पता नहीं शेष भारत के मुसलमानों को इसकी जानकारी है या नहीं ? धारा-370 के कारण शेष भारत का कोई भी व्यक्ति कश्मीर में नहीं बस सकता चाहे वो मुस्लिम ही क्यों न हो?
संघ का अंधा बिरोध करने वालों ने, देश में भ्रम फैलाया है कि- धारा- 370 खतम हो जाने से मुसलमानों का नुकशान होगा. जबकि धारा- 370 केवल कश्मीरी के नागरिक (हिन्दू मुस्लिम दोनों) के लिए ही विशेषाधिकार प्रदान करती है, शेष भारत के किसी मुसलमान के लिए नही. धारा- 370 का बिरोध तो शेष भारत के हर मुस्लिम को भी करना चाहिए.
धारा- 370 की तरह ही हिमाचल और नागालेंड जैसे राज्यों में भी धारा- 371 लागू है जो इन राज्यों को कुछ विशेषाधिकार (कश्मीर से थोडा कम ) देती है. आजादी के समय देश में परिस्थितिया तेज़ी से बदल रहीं थी कि - उस समय नेताओं को उनपर सोंचने का ज्यादा समय नहीं मिल पाया होगा इसलिए इन विवादास्पद बातों को उन्होंने मंजूर किया होगा.
लेकिन अब देश के सभी नेताओं और नागरिकों को मिलकर पुनर्बिचार करके विघटनकारी धाराओं को ख़तम करके सभी के लिए समान कानून बनाना चाहिए. देश में कहीं भी, किसी भी क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर किसी को भी न तो कोई विशेष का दर्जा दिया जाए और न ही किसी को अछूत ही माना जाए.

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