Sunday, 24 February 2019

कश्मीर को विशेषाधिकार क्यों दिए गए थे ? और कैसे लागू हुई थी धारा 370 ?

कश्मीर को महाऋषि कश्यप की कर्मभूमि माना जाता है. कश्मीर में अधिकाँश समय हिन्दू राजाओं का राज रहा और उनके राज में कश्मीर की प्रतिष्ठा सारे विश्व में थी. कश्मीर को भारत का स्वर्ग कहा जाता था. कश्मीर की पहाड़ियों को सौन्दर्य सारी दुनिया के पर्यटकों को लुभाता था. कुल मिलाकर कश्मीर एक खुशहाल राज्य था.
ऐसा कहा जाता है कि - 1930 में हुए गोलमेज सम्मलेन के समय जहाँ सभी राजा और नेता, अंग्रेजो से दब कर बात कर रहे थे. वहीँ महाराजा हरिसिंह ने अंग्रेजों के सामने खुद को हिन्दुस्थान का राजा कहा था. वहीँ पर महाराजा हरि सिंह और जवाहरलाल नेहरु के बीच भी कुछ विवाद हो गया था. इस विवाद के कारण नेहरु, महाराजा हरिसिंह से नाराज हो गए थे
उन्ही दिनों कश्मीर में एक युवा नेता "शेख अब्दुल्ला" उभर रहे थे. शेख अब्दुल्ला एक बहुत ही विवादित नेता थे. माना जाता है कि - वो अंग्रेजों के एक भेदिये के रूप में काम करते थे. शेख अब्दुल्ला को कश्मीर का सुलतान बन्ने की महत्वाकांक्षा थी. शेख कश्मीर से बाहर सेक्युलर बनकर रहता था लेकिन कश्मीर पहुँचते की कट्टर मुसलमान बन जाता था.
अंग्रेजों के इशारे पर शेख ने "मुस्लिम कांफ्रेंस" नाम के एक दल का गठन किया गया, जिसके प्रमुख सदस्य थे - शेख अब्दुल्ला, मीर बाईज युसूफ शाह, सरदार इब्राहिम, गुलाम अब्बास. बाद में नेहरु के कहने पर शेख अब्दुल्ला ने "मुस्लिम कांफ्रेंस" का नाम बदलकर "नेशनल कांफ्रेंस" रख लिया था. धीरे - धीरे शेख और नेहरु में बहुत घनिष्ठता हो गई.
महाराज हरिसिंह को परेशान करने के लिए, मांउटबेटन और नेहरु ने भी शेख अब्दुल्ला को सपोर्ट किया. इसी बीच कश्मीर रियासत का दीवान "गोपाल स्वामी आयंगर" भी नेहरु से मिल गया. भारत आजाद होते समय नेहरु ने साफ़ कह दिया कि - महाराज हरि सिंह को अपने अधिकार शेख अब्दुल्ला को सौंपकर कश्मीर से बाहर जाना पड़ेगा.
विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने में हुई देरी का यही एकमात्र कारण था. 20 अक्तूबर 1947 को पापिस्ताना ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया. लेकिन नेहरु ने साफ़ कह दिया कि -जब तक हरिसिंह विलयपत्र पर हस्ताक्षर करके कश्मीर नहीं छोड़ते हैं तब तक कश्मीर को कोई सैन्य मदद नहीं दी जायेगी, तब जनता की रक्षा की खातिर उनको इसे मानना पड़ा.
नेहरू ने यह भ्रम भी फैलाया कि - महाराज हरिसिंह ने कश्मीर के लिए विशेष अधिकार मांगे थे जबकि हकीकत यह है कि - उस समय महाराज हरिसिंह शर्त रखने की स्थिति में नहीं थे बल्कि खुद मजबूर थे. उनको तो खुद कश्मीर छोड़ना पडा और मुंबई में निर्वासित जीवन बिताना पडा. कश्मीर के लिए विशेष अधिकार तो शेख अब्दुल्ला ने मांगे थे.
शेख अब्दुल्ला ने एक ड्राफ्ट तैयार किया, जिसे धारा 306-A कहा जाता था. इस ड्राफ्ट को "गोपाल स्वामी आयंगर" ने नेहरु और माउंटबटन के सामने प्रस्तुत किया. धारा 306-A के अनुसार जम्मू & कश्मीर को विशेष अधिकार देने की बात कही गई थी. इस धारा 306-A को लेकर नेहरु ने सरदार पटेल तक को अँधेरे में रखा गया था.
नेहरु और पटेल के बीच विवाद की सबसे बड़ी बजह यही थी. डॉ भीमराव अंबेडकर ने भी इस धारा को लागू करने से मना कर दिया था. लेकिन कश्मीर के खराब हालात का हवाला देकर नेहरू जबरदस्ती इस धारा को लागू कर दिया. उस समय नेहरु ने भी यही कहा था कि - हालात सुधर जाने के बाद इस धारा को ख़त्म कर दिया जाएगा.
लेकिन संविधान लिखते समय यही धारा थोड़े से परिवर्तन के बाद संविधान में "आर्टिकिल -370" के रूप में रख दी गई. 26 जनवरी 1950 को जब संविधान पारित हुआ तब अनेकों राष्ट्रवादी नेताओं ने "आर्टिकिल 370" पर सवाल उठाया. उद्योग मंत्री "डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी" ने इस पर नेहरु से बात करनी चाही तो नेहरु ने साफ़ इनकार कर दिया.
इससे नाराज होकर 6 अप्रैल 1950 को "डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी" ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर-संघचालक गुरु गोलवलकर जी से परामर्श लेकर 21 अक्टूबर 1951 को "भारतीय जनसंघ" की स्थापना की. 1951-52 के आम चुनावों में राष्ट्रीय जनसंघ के 3 सांसद चुने गए जिनमे एक डॉ. मुखर्जी भी थे.
उसके बाद उन्होंने संसद के अन्दर 32 लोकसभा और 10 राज्यसभा सांसदों के सहयोग से "नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी" (गठबंधन) का गठन किया. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत की अखंडता और कश्मीर के विलय के दृढ़ समर्थक थे. उन्होंने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को भारत की अखंडता के लिए बहुत बड़ा ख़तरा बताया.
अनुच्छेद 370 के राष्ट्रघातक प्रावधानों को हटाने के लिए "जनसंघ" ने "हिन्दू महासभा" और "रामराज्य परिषद" के साथ मिलाकर सत्याग्रह आरंभ किया. डॉ मुखर्जी ने कश्मीर के परमिट सिस्टम का बिरोध करते हुए बिना परमिट कश्मीर जाने की घोषणा कर दी. 11 मई 1953 को उन्होंने परमिट सिस्टम का उलंघन करके कश्मीर में प्रवेश किया.
उनका नारा था . "नहीं चलेंगे एक देश में, दो निशान - दो विधान - दो प्रधान". कश्मीर में प्रवेश करते ही उनको शेख अब्दुल्ला सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया. हिरासत में ही संदिग्ध परिस्थितियों में 23 जून 1953 को उनकी म्रत्यु हो गई. अधिकाँश लोग आजतक यही मानते हैं कि - उनकी म्रत्यु राजनैतिक हत्या थी.
तब से लेकर आजतक राष्ट्रवादी लोग इस विघटनकारी "धारा 370" को ख़त्म करने की मांग करते आ रहे हैं. परन्तु कांग्रेस ने चालाकी से यह झूठी बात फैला दी कि - जो लोग धारा 370 का बिरोध कर रहे हैं वे दरअसल मुस्लिम बिरोधी हैं. इसलिए भारत के मुसलमान भी धारा 370 का बिरोध करने वालों को अपना दुश्मन समझने लगे.
जबकि धारा 370 केवल कश्मीरी मूल के लोगों के लिए ही है. कश्मीर के बाहर के शेष भारत के मुसलमानों के लिए बैसी ही है जैसे कश्मीर के बाहर के हिन्दुओं के लिए. कांग्रेस द्वारा फैलाए गए भ्रम के कारण भारत के मुसलमान आज भी यही समझते हैं कि- शायद धारा 370 उनके फायेदे की चीज है जिसे भाजपा वाले ख़त्म करना चाहते हैं
इसी कारण देश की अन्य पार्टियां भी धारा 370 का बिरोध करने से घबराती है कि - कहीं इससे उनके मुसलमान वोटर नाराज न हो जायें. संविधान में बदलाब करने के लिए संसद में दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है अगर सभी देशवाशियों को इसकी सच्चाई समझ आ जाए तो 90% लोग भी इसे ख़त्म करने को तैयार हो जायेंगे.

No comments:

Post a Comment