
रानी चेनम्मा की शादी बेलगाम में कित्तूर राजघराने में हुई थी. चेनम्मा के जीवन में प्रकृति ने कई बार क्रूर मजाक किया . पहले पति का निधन हो गया और कुछ साल बाद एकलौते पुत्र का भी निधन हो गया. रानी चेनम्मा ने पुत्र की मौत के बाद शिवलिंगप्पा को अपना उत्ताराधिकारी बनाया लेकिन अंग्रेजों ने रानी के इस कदम को स्वीकार नहीं किया.
अंग्रेजों ने शिवलिंगप्पा को पद से हटाने का का आदेश दिया लेकिन रानी चेनम्मा ने अंग्रेजों का आदेश स्वीकार करने से इनकार कर दिया. ईस्ट इण्डिया कम्पनी की विशाल व शक्तिशाली सशस्त्र सेना ने कित्तूर दुर्ग को घेर लिया था. रानी इससे भयभीत नहीं हुई बल्कि सेना और नागरिको को युद्ध के लिए तैयार किया.
अचानक कित्तूर दुर्ग का फाटक खुला और देखते ही देखते अन्दर से एक वीरागंना पुरुष वेश में शेरनी के समान गरजते हुए शत्रु दल पर टूट पड़ी . भयानक युद्ध हो रहा था, रानी रणचण्डी बन शत्रु के सैनिकों का संहार कर रही थीं, थैकरे मारा गया और अग्रेंजी सेना भाग खड़ी हुई. अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में रानी चेनम्मा ने अपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया .
अग्रेजों ने पुन: दुर्ग पर डेरा डाला, कित्तूर की फौज ने दृढ़ता के साथ प्रतिरोध किया . रानी लंबे समय तक अंग्रेजी सेना का मुकाबला नहीं कर सकी. उन्हें कैद कर बेलहोंगल किले में रखा गया जहां उनकी ( 21-फरवरी -1829 ) मृत्यु हो गई. कहते हैं कि मृत्यु से पूर्व रानी चेनम्मा काशीवास करना चाहती थीं पर उनकी यह चाह पूरी न हो सकी थी.
यह संयोग ही था कि रानी चेनम्मा की मौत के छः वर्ष बाद काशी में ही लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ. रानी लक्ष्मी बाई का जीवन भी काफी हद तक रानी चेनम्मा के जीवन से मिलता जुलता ही रहा है. इतिहास के पन्नों में अंग्रेजों से लोहा लेने वाली प्रथम वीरांगना कित्तूर की रानी चेनम्मा को ही माना जाता है.
पुणे बेंगलूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बेलगाम के पास कित्तूर का राजमहल तथा अन्य इमारतें गौरवशाली अतीत की याद दिलाने के लिए मौजूद हैं. उनके सम्मान में उनकी एक प्रतिमा संसद भवन परिसर में भी लगाई गई है . रानी चेनम्मा पहली महिलाओं में से थीं जिन्होंने अनावश्यक हस्तक्षेप और कर संग्रह प्रणाली को लेकर अंग्रेजों का विरोध किया था
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