Tuesday, 1 January 2019

भगवान् दत्तात्रेय

प्राचीन काल में सात महाऋषि हुए है, जिनको सप्तऋषि कहा जाता है. ये सप्तऋषि है - 1. वशिष्ठ, 2. विश्वामित्र, 3. कण्व, 4. भारद्वाज, 5. अत्रि, 6. वामदेव और 7. शौनक. ऋषि अत्रि की पत्नी का नाम था सती अनुसुइया. एक बार सती अनुसूइया ने अपने तपोवल से ब्रह्मा, बिष्णु और शिव को नन्हा बालक बना दिया था.
इन्ही ऋषि अत्रि और अनुसुइया के तीन पुत्र हुए. दत्तात्रेय, दुर्बासा और चन्द्र देव. ऋषि दत्तात्रेय को शैव मत को मानने वाले "शिव" के रूप में तथा वैष्णव मत को मानने वाले लोग "विष्णु" के रूप में पूजते है. दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं इसीलिए उन्हें 'परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु'और 'श्रीगुरुदेवदत्त'भी कहा जाता हैं.
भगवान दत्तात्रेय की जयंती मार्गशीर्ष माह के कृष्णपक्ष की दशवी को मनाई जाती है. वे एक महान विज्ञानिक थे. ऐसा कहा जाता है कि - पारे के शक्ति से हवाई जहाज को उड़ाने का ज्ञान उन्होंने ही खोजा था, जो आज भी आधुनिक विज्ञान के लिए शोध का बिषय है. इसके अलावा उन्होंने आयुर्वेद को अनेकों बहुमूल्य खोजें दी.
भगवान दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है. यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय ही थे. भगवान दत्तात्रेय ने वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही धारा में जोड़ा था. वे प्रक्रति का अध्यन करते थे और प्रकति को ही अपना गुरु मानते थे, एक बार राजा यदु ने उनसे उनके गुरु का नाम पूंछा था
तब उन्होंने कहा था - हम अपने जीवन में जिस किसी से भी कुछ सीखते है वह ही हमारा गुरु होता है. मुझे जिनके गुणों ने प्रभावित किया है वे हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी.
उनको तीनो प्राचीन संप्रदाय (वैष्णव, शैव और शाक्त) का गुरु माना जाता है इसलिए इस त्रिवेणी के कारण ही प्रतीकस्वरूप उनके तीन मुख दर्शाएँ जाते हैं. उनका अधिक समाय भारत के राज्य त्रिपुरा में बीता था. त्रिगुण रखने वाले भगवान् दत्तात्रेय की कर्मभूमि के कारण ही उस क्षेत्र का नाम त्रिपुरा पड़ा था, ऐसा माना जाता है.
भगवान् परशुराम, शिवपुत्र कार्तिकेय, भक्त प्रहलाद, आदि उनके शिष्य रहे. कार्तवीर्यार्जुन को तंत्र विद्या एवं नागार्जुन को रसायन विद्या की प्राप्ति भी इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई थी. कहा जाता है कि- गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय की भक्ति से प्राप्त हुआ था.
दत्तात्रेय का उल्लेख पुराणों में मिलता है. इन पर दो ग्रंथ हैं 'अवतार-चरित्र' और 'गुरुचरित्र', जिन्हें वेदतुल्य माना गया है. मार्गशीर्ष 7 से मार्गशीर्ष 14, यानी दत्त जयंती तक दत्त भक्तों द्वारा गुरुचरित्र का पाठ किया जाता है. इसमें श्रीपाद, श्रीवल्लभ और श्रीनरसिंह सरस्वती की अद्भुत लीलाओं व चमत्कारों का वर्णन है.
ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य प्रात: काशी में गंगाजी में स्नान करते थे. इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका दत्त भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है. इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है. देश भर में भगवान दत्तात्रेय को गुरु के रूप में मानकर इनकी पादुका को नमन किया जाता है.

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