Wednesday, 9 January 2019

डा. हरगोविन्द खुराना

बायो टेक्नोलाजी के जनक, नोबल पुरष्कार विजेता, महान चिकित्सा वैज्ञानिक
पद्म भूषण डा. हरगोविन्द खुराना के जन्मदिवस (9 जनवरी ) पर सादर नमन 
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डा. हरगोविन्द खुराना एक भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक थे, उनका मुख्य बिषय आण्विक जीव विज्ञान (मॉलीक्यूलर बॉयोलॉजी) था. उन्हें सन 1968 में प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का प्रदर्शन करने के लिए चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया. यह पुरुष्कार उन्हें दो अन्य वैज्ञानिकों के साथ दिया गया था.
 डा. हरगोविंद खुराना का जन्म अविभाजित भारत में. 9 जनवरी 1922 को मुल्तान जिले के रायपुर कसबे में हुआ था. इनके पिता पटवारी थे. 12 बर्ष की आयु में उनके पिता का निधन हो गया. उन्होंने मुल्तान के डी. ए. वी. हाई स्कूल में अध्यन किया. प्रतिभावान विद्यार्थी होने के कारण उनको सदैव विधालयों से छात्रवृत्ति मिलती रही.
उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से सन् 1943 में बी. एस-सी. (आनर्स) तथा सन् 1945 में एम. एस-सी. (ऑनर्स) उच्च अंकों के साथ की. इसकी बजह से उनको सरकार से इंग्लैंड जाकर शोध करने के लिए छात्रव्रत्ति मिली. इंग्लैण्ड के लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ए. रॉबर्टसन् के अधीन अनुसंधान कर इन्होंने डाक्टरैट की उपाधि प्राप्त की.
इसके उपरान्त इन्हें एक बार फिर भारत सरकार से शोधवृत्ति मिलीं, जिसके बाद वे जूरिख (स्विट्सरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑव टेक्नॉलोजी में प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ शोध करने लगे. देश आजाद होने के बाद वे नबम्बर 1947 में भारत आ गए. उनको लगता था कि- आधुनिक वैज्ञानिक सोंच से ही भारत को आगे बढ़ाया जा सकता है.
लेकिन दो साल तक भारत में कोशिश के बाद जब अपनी शिक्षा के अनुकूल कोई काम न मिला. उन्होंने नेहरु से मिलकर, नेहरु को चिकित्सा के क्षेत्र में शोध करने के लिए एक विश्व स्तरीय संस्थान बनाने का प्रस्ताव दिया. परन्तु नेहरु सरकार ने उसमे कोई रूचि नहीं ली. तब उनका आजादी का उत्साह ठंडा हो गया और वे 1949 वापस इंग्लैण्ड चले गए
सन 1950 से 1952 तक कैंब्रिज के प्रख्यात विश्वविद्यालयों में पढ़ने और पढ़ाने दोनों का कार्य किया. 1952 में उन्हें वैंकोवर (कैनाडा) की कोलम्बिया विश्‍विद्यालय (Columbia University) से बुलावा आया जिसके उपरान्त वे वहाँ चले गये और जैव रसायन विभाग के अध्‍यक्ष बना दिए गये. यहां उन्‍होंने आनुवाँशिकी के क्षेत्र में शोध कार्य प्रारंभ किया
उनके शोधपत्र अन्‍तर्राष्‍ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं और शोध जर्नलों में प्रकाशित होने लगे. इसके फलस्वरूप वे काफी चर्चित हो गये और उन्‍हें अनेक सम्मान और पुरस्‍कार भी प्राप्‍त हुए. सन 1960 में उन्हें ‘प्रोफेसर इंस्टीट्युट ऑफ पब्लिक सर्विस’ कनाडा में स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया और उन्हें ‘मर्क एवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया.
1960 में डॉ खुराना अमेरिका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑव एन्ज़ाइम रिसर्च में प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुए. सन 1966 में उन्होंने अमरीकी नागरिकता ग्रहण कर ली. सन 1970 में डॉ खुराना मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एम.आई.टी.) में रसायन और जीव विज्ञान के अल्फ्रेड स्लोअन प्रोफेसर नियुक्त हुए.
तब से लेकर सन 2007 वे इस संस्थान से जुड़े रहे और बहुत ख्याति अर्जित की. 1960 के दशक में खुराना ने नीरबर्ग की इस खोज की पुष्टि की कि डी.एन.ए. अणु के घुमावदार ‘सोपान’ पर चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लिओटाइड्स के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को निर्धारित करता है.
डी.एन.ए. के एक तंतु पर इच्छित अमीनोअम्ल उत्पादित करने के लिए न्यूक्लिओटाइड्स के 64 संभावित संयोजन पढ़े गए हैं, जो प्रोटीन के निर्माण के खंड हैं. खुराना ने इस बारे में आगे जानकारी दी कि न्यूक्लिओटाइड्स का कौन सा क्रमिक संयोजन किस विशेष अमीनो अम्ल को बनाता है.
उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि न्यूक्लिओटाइड्स कूट कोशिका को हमेशा तीन के समूह में प्रेषित किया जाता है, जिन्हें प्रकूट (कोडोन) कहा जाता है. उन्होंने यह भी पता लगाया कि कुछ प्रकूट कोशिका को प्रोटीन का निर्माण शुरू या बंद करने के लिए प्रेरित करते हैं. उनका दल खमीर जीन की पहली कृत्रिम प्रतिलिपि संश्लेषित करने में सफल रहा.
डॉ खुराना ने जीन इंजीनियरिंग (बायो टेक्नोलॉजी) विषय की बुनियाद रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जेनेटिक कोड की भाषा समझने और उसकी प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका प्रतिपादित करने के लिए सन 1968 में डॉ खुराना को चिकित्सा विज्ञान का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया.
डॉ हरगोविंद खुराना नोबेल पुरस्कार पाने वाले भारतीय मूल के तीसरे व्यक्ति थे. यह पुरस्कार उन्हें दो और अमेरिकी वैज्ञानिकों डॉ. राबर्ट होले और डॉ. मार्शल निरेनबर्ग के साथ सम्मिलित रूप से प्रदान किया गया था. इन तीनों ने डी.एन.ए. अणु की संरचना को स्पष्ट किया था और यह भी बताया था कि डी.एन.ए. प्रोटीन्स का संश्लेषण किस प्रकार करता है.
नोबेल पुरस्कार के बाद अमेरिका ने उन्हें ‘नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंस’ की सदस्यता प्रदान की (यह सम्मान केवल विशिष्ट अमेरिका वैज्ञानिकों को ही दिया जाता है). डॉक्टर खुराना ने अमेरिका में अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान कार्य जारी रखा और देश-विदेश के तमान छात्रों ने उनके सानिध्य में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.
चिकित्सा के क्षेत्र डॉ खुराना के कार्यों को सम्मान देने के लिए विस्कोसिंन मेडिसन यूनिवर्सिटी, भारत सरकार और इंडो-यूएस सांइस एंड टेक्नोलॉजी फोरम ने संयुक्त रूप से सन 2007 में खुराना प्रोग्राम प्रारंभ किया. डा. हरगोविंद खुराना को उनके शोध और कार्यों के लिए अनेकों पुरस्कार और सम्मान दिए गए। इन सब में नोबेल पुरस्कार सर्वोपरि है.
डॉ. खुराना ने सन 1952 में स्विस मूल की एस्थर एलिजाबेथ सिब्लर से विवाह किया था. खुराना दंपत्ति की तीन संताने हुईं – जूलिया एलिज़ाबेथ (1953), एमिली एन्न (1954) और डेव रॉय (1958). उनकी पत्नी ने ताउम्र डॉ खुराना का उनके शोध और अध्यापन के कार्यों पूरा सहयोग किया. सन 2001 में एस्थर एलिजाबेथ सिब्लर की मृत्यु हो गयी.
अनेकों विदेशी पुरुष्कारों के अलावा सन 1969 में भारत सरकार ने डॉ. खुराना को पद्म भूषण से अलंकृत किया. पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ ने डी.एस-सी. की मानद उपाधि दी. 09 नवम्‍बर 2011 को इस महान वैज्ञानिक ने अमेरिका के मैसाचूसिट्स में अन्तिम सांस ली। उनके पीछे परिवार में पुत्री जूलिया और पुत्र डेव हैं.
डा. खुराना ने भले ही अमेरिका की नागरिकता ले ली थी, लेकिन भारत भूमि से उनका बड़ा लगाव था. उनका कहना था कि - कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि हाशिल करने के बाद भारत में पुरुष्कार पाना बहुत आसान है लेकिन उस उपलब्धि को हाशिल करने के लिए संसाधन मिलना बहुत मुश्किल है, यह स्थिति बदलनी चाहिए, तभी प्रतिभा पलायन रुकेगा

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