Tuesday, 1 January 2019

महाराजा हरि सिंह

जम्मू और कश्मीर रियासत के पूर्व राजा "महाराजा हरि सिंह" का जन्म 23 सितम्बर 1895 को हुआ था. उनके पिता अमर सिंह, जम्मू और कश्मीर रियासत के शासक महाराज प्रताप सिंह के भाई थे. महाराज प्रताप सिंह अपने भतीजे "हरी सिंह" से बहुत स्नेह करते थे, जब हरी सिंह मात्र 20 साल के थे तब उन्होंने उसे अपना सेनापति बनाया.
1925 में जम्मू और कश्मीर रियासत की सत्ता उन्हें आपने चाचा से विरासत में मिली. उनके साशन में हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, सिक्ख, आदि सभी बड़े स्नेह से रहते थे. उनके शासन काल में हिन्दू धर्म के तीर्थ ( अमरनाथ, वैष्णो देवी, आदि) के साथ साथ मुस्लिम ( हजरत बल, चरार-ए-शरीफद, आदि ) और बौद्ध तीर्थों ( लेह-लद्दाख में) का भी बहुत विकास हुआ.
उनका शासन पंथनिरपेक्षता की एक मिशाल था. हिन्दू , बौद्ध और यहाँ तक कि गिलगीत बल्तिस्तान के मुस्लिमों में भी उनके प्रति आदर और प्रेम का भाव था. उन्होने अपने राज्य में प्रराम्भिक शिक्षा अनिवार्य कर दिया एवं बाल विवाह के निषेध का कानून शुरु किया. ऐसे लोकप्रिय राजा को भी नेहरु, अब्दुल्ला और माउंटबेटेन ने विलेन बना दिया.
महाराजा हरिसिंह के बारे में ऐसा भ्रम फैलाया गया कि - वे जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय नहीं चाहते थे, जबकि वास्तविकता यह है कि - केवल वर्तमान वाला जम्मू कश्मीर ही नहीं बल्कि उनके नेतृत्व में गिलगित, बालतिस्तान वाले भी भारत में विलय को तैयार थे. इसमें रुकावट था तो केवल कश्मीर का एक रहस्यमयी नेता "शेख अब्दुल्ला".
इतिहासकार "शेख अब्दुल्ला" को "जवाहर लाल नेहरु" का घनिष्ट मित्र बताते है, लेकिन आजकल सोशल मीडिया पर बताया जा रहा है कि - वे नेहरु के "कजन" थे. नेहरु से शेख की घनिष्टता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि- 1946 में जब महाराजा हरि सिंह ने शेख को जेल में डाला तो, नेहरु उसे छुडाने कश्मीर पहुँच गए थे.
महाराजा हरी सिंह "J & K" का भारत में विलय करना चाहते थे लेकिन "माउंटबेटेन" और "शेख अब्दुल्ला" वहां पर मुसलमानों की ज्यादा संख्या का हवाला देकर, महाराजा हरिसिंह पर दबाब डाल रहे थे कि - कश्मीर का पापिस्तान में विलय करो. इसीलिए बिलम्ब हो रहा था. नेहरु ने यह भ्रम फैलाया कि - वे राज्य को स्वतंत्र देश बनाना चाहते थे.
उस समय तक "शेख अब्दुल्ला" कश्मीर घाटी में बहुत लोकप्रिय हो चुका था और वह चाहता था कि - कश्मीर एक स्वतंत्र देश बने, जिसकी सत्ता उसके हाथ में हो, जिससे कि वो भारत और पापिस्तान दोनों से बरावर लाभ लेता रहे. गौर तलब है कि - शेख को सिर्फ़ काश्मीर घाटी से ही मतलब था, जम्मू , लद्दाख,गिलगित, बल्तिस्तान से मतलब नहीं था.
शेख अब्दुल्ला की पार्टी कई बर्षों से मुसलिम आवादी के बीच "हिन्दू राजा" के खिलाफ माहौल बनाने का काम कर रही थी. जिन दिनों भारत के देशभक्त "अंग्रेजों भारत छोडो" का नारा लगाते थे उन्ही दिनों शेख अब्दुल्ला की पार्टी "महाराजा घाटी छोडो" का नारा बुलंद किये हुए थी. कश्मीर के भारत में विलय में हुए बिलम्ब की यह मुख्य बजह थी.
इसी बीच पापिस्तान सेना ने कबायलियों की आड़ में कश्मीर पर हमला कर दिया. महाराजा हरिसिंह ने नेहरु से मदद मांगी, लेकिन नेहरु ने कहा कि - आप पहले कश्मीर को छोडिये और शेख अब्दुल्ला को कश्मीर की सत्ता सौपिये, तब ही वहां सेना भेजी जायेगी. महाराजा हरिसिंह नेहरु की इस शर्त पर राजी नहीं थे और विलय का मामला अधर में लटक रहा था.
नेहरु के कहने पर गांधी जी भी कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देकर "शेख अब्दुल्ला" को वहां का प्रधानमंत्री घोषित करने को तैयार हो गए थे. नेहरु का मानना था कि - अगर पापिस्तानी सेना और कबायली कश्मीर पर कब्जा कर भी लेंगे तो हम उसे बाद में भारतीय सेना और शेख अब्दुल्ला की मदद से खाली करा लेंगे.
हालात दिनों दिन बिगड़ते जा रहे थे, लेकिन नेहरु बिना महाराजा को हटाये सेना भेजने को तैयार नहीं थे. सरदार पटेल के जोर देने पर कश्मीर में सेना को भेजा गया. इसी बीच आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक पूज्य गुरु जी के समझाने पर महाराजा हरिसिंह, बिना शर्त जम्मू और कश्मीर के बिना शर्त भारत में विलय के लिए तैयार हो गए.
विलय के बाद नेहरु ने उनको कश्मीर से निर्वाषित कर मुंबई भेज दिया और वे 18 साल तक मुंबई में ही रहे. इसप्रकार कह सकते हैं कि- कश्मीर से सबसे पहले जिस हिन्दू को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा, वहा हिन्दू था महाराजा हरी सिंह और उनके पलायन का जिम्मेदार था शेख अब्दुल्ला और नेहरु.
शेख अब्दुल्ला को "जम्मू & कश्मीर" का प्रधानमत्री घोषित कर दिया. महाराजा हरी सिंह का बेटा करण सिंह भी अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने पिता को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गया और नेहरु की चापलूसी करने लगा. उसकी इस हरकत के कारण महाराजा हरी सिंह सदैव अपने बेटे से नाराज रहे
उन्होंने मरने से पहले अपने परिजनो से कहा कि - उनके पार्थिव शरीर को उनका बेटा करणसिंह हाथ न लगाने पाए तथा उनकी राख को कश्मीर में "तवी नदी" बहाया जाए. उनके स्टाफ और परिजनों ने ऐसा ही किया. महाराजा की छवि को धूमिल करने में माउंटबेटन , शेख अब्दुल्ला और नेहरू की तिकड़ी के षडयंत्रों का बड़ा हाथ रहा था.
सोशल मीडिया के प्रभावशाली होने के बाद एक लोकप्रिय हिन्दू राजा और 1930 के गोलमेज सम्मेलन में अँगरेजों को आँखें दिखाने वाले "महाराजा हरिसिंह" आज झूठे वामपंथी इतिहासकारों के मोहताज नहीं है. सत्य परेशान हो सकता है पर परास्त नहीं. महाराजा हरिसिंह के जन्मदिन ( 23 सितंबर) उनको एक बार फिर सादर नमन.

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