Monday, 21 January 2019

महान क्रांतिकारी नृत्यान्गना अजीजन बाई

कानपुर की मशहूर खूबसूरत तबायफ (नर्तकी) अजीजन बाई ने सन 1857 के प्रथम स्वाधीनता में हिस्सा लेकर अपने देश के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी थी और अपने दामन पर लगे बदनाम पेशे (तबायफ) के दाग को अपनी शहादत के खून से धो डाला था. 1857 के स्वाधीनता संग्राम में दिए गए योगदान ने उन्हें अमर बना दिया.
 अजीजन बाई ने देश की खातिर अपना बलिदान देकर यह साबित कर दिया कि - श्रेष्ठ लोगों को हालात चाहे कहीं भी पहुंचा दे, वो अपनी श्रेष्ठता कायम रखते है. अजीजन बाई का वास्तविक नाम "अंजुला" था. उसका जन्म 22 जनवरी 1824 को मध्यप्रदेश में मालवा क्षेत्र के राजगढ़ में एक धर्मनिष्ठ क्षत्रीय परिवार में हुआ था.
उसके पिता का नाम शमशेर सिंह था और वे एक बड़े जमीदार थे. एक बार वह अंजुला अपनी सहेलियों के साथ मेले से आ रही है, तभी कुछ अंग्रेज सैनिको ने उन लड़कियों का अपहरण कर लिया. और उन सबको एक गाड़ी में बिठाकर ले गए. शमशेर सिंह को जब इसका पता चला तो उन्होंने लड़कियों को छुडाने का बहुत प्रयास किया.
उन्होने अंग्रेज उच्चाधिकारियों से फ़रियाद की. लेकिन इससे बच्चियों को छोड़ने के बजाये अंग्रेजों ने शिकायत करने के अपराध में उनकी जमीदारी ही छीन ली. बच्चियों के गम में दुखी होकर उनका प्राणांत हो गया. इधर रास्ते में मौक़ा मिलने पर किसी तरह अंजुला और उसकी एक सहेली हरि देवी उनकी कैद से निकलने में कामयाब हो गई.
बचने का कोई उपाय न दिखने पर अपनी इज्जत बचाने के लिए दोनों ने यमुना नदी में छलांग लगा दी. हरि देवी की म्रत्यु हो गई लेकिन अंजुला को एक मुसलमान पहलवान ने बचा लिया. लेकिन वह भी कोई अच्छा आदमी नहीं था. उसने अंजुला को कानपुर लेजाकर, "अम्मीजान" के नाम ने कुख्यात तवायफ के पास 500 रूपय में बेंच दिया.
अम्मीजान ने अंजुला का धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बना दिया और नाम रख दिया "अजीजन बाई" . इस प्रकार एक संस्कारी हिन्दू परिवार की लड़की मुसलमान बन गई और तवायफ जैसे गंदे पेशे में आ गई. मजबूर अजीजन ने पुरे मनोयोग से नाचना गाना सीखा. मशहूर तबायफ "उमराव जान" से भी उन्होंने नृत्य सीखा था.
अजीजन बाई केवल अपनी कला (नृत्य और गायन) बेचती थी, अपना शरीर नहीं. कहा जाता है कि - वह तात्या टोपे से बहुत प्रभावित थी और उनके किस्से सुनकर मन ही मन उनसे प्रेम करने लगी थी. जब 10 मई 1857 को मेरठ में बगावत हुई तो उस की गूंज सारे भारत में सुनाई दी. कानपूर भी क्रान्ति के लिए तैयार हो गया.
अजीजन बाई ने आस पास के चकलो की लगभग 400 तवायफों को एकजुट किया और इसको नाम दिया "मस्तानी टोली", तवायफें अंग्रेजो की छावनी में भी नृत्य प्रदर्शन के लिए जाती थी. वे वहां से जानकारी हाशिलकर क्रांतिकारियों को पहुंचाने लगीं. इसी बीच अंग्रेजों ने बिठुर में अंग्रेजों ने बहुत सारी औरतों और बच्चों को मार दिया.
इसका बदला लेने के लिए क्रान्तिकारियो ने (जिसमे अजीजन की मस्तानी टोली भी थी) 15 जुलाई 1857 को बीबीघर (कानपुर) में बहुत सारे अंग्रेज औरतों / बच्चों को मार कर कुएं में फेंक दिया. तब अंग्रेजों तवायफों के मोहल्ले को घेर लिया और कई तवायफो को गिरफ्तार कर लिया लेकिन अजीजन किसी तरह से निकल भागने में कामयाब रही.
अजीजन नाना साहब पेशवा के वकील अजीमुल्ला खा के पास पहुंची. अजीमुल्ला ने उन्हें नाना साहब और तात्या टोपे से मिलबाया. जब नाना साहब को पता चला कि- अजीजन कुलीन घर कि है और मजबूरी में नर्तकी बनी है तो उन्होंने उसे अपनी बहन बना लिया. उसे एक तलवार भेंट की और उससे अपने हाथ में बंधवा ली.
अजीजन फिर से "अंजुला" बन गई.मस्तानी टोली की 25 सदस्याओं (पूर्व तवायफों) को घुड़सवारी और बन्दुक चलाने का प्रशिक्षण दिया गया. अब 'अंजुला" की मस्तानी टोली क्रांतिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलकर अंग्रेजों का मुकाबला करने लगी. महाराजपुर की लड़ाई में "अंजुला" ने तात्या टोपे की जान बचाई और वहां से निकलने में मदद की.
बिठुर की हार के बाद जब सारे क्रांतिकारी भूमिगत हो गए तो "अंजुला" भी पुरुष वेश में जंगल में छुप गई. जब वह एक कुएं से पानी पी रही थी तभी 6 अंग्रेज सैनिक वहां आ गए. उस समय उसके बाल खुले हुए थे वो सैनिक उसे पहेचान गए. खुनी संघर्ष में अंजुला ने उन सभी को मार गिराया लेकिन उसके कंधे में भी गोली लग गई थी.
तभी वहां कई सारे अंग्रेज सैनिक आ गए और अंजुला को पकड़कर जनरल हैवलाक के सामने ले गए. जनरल हैवलाक ने उससे कहा कि - अगर तुम अपने किये की क्षमा मांग लो और अपने साथियों को पता बता दो तो तुम्हे माफ़ के दिया जाएगा साथ ही ईनाम भी दिया जाएगा. वरना तुमको तोप के आगे बांधकर उड़ा दिया जाएगा.
इस पर अंजुला ने हुंकार भरकर कहा कि - भारतवाशियों पर अमानवीय जुल्म करने के लिय तुम्हे माफी मांगनी चाहिए. एक नर्तकी से ऐसा जवाब सुनकर अंग्रेज अफसर तिलमिला गए और उसे मौत के घाट उतारने का आदेश दे दिया गया. देखते ही देखते अंग्रेज सैनिकों ने उसके शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया.
महान क्रांतिकारी "विनायक दामोदर सावरकर" ने अपने ग्रन्थ "1857-प्रथम स्वातंत्र्य समर" में अजीजन उर्फ़ अंजुला की तारीफ करते हुए लिखा है, ‘अजीजन एक नर्तकी थी परंतु सिपाहियों से उसको बेहद स्नेह था. अजीजन का प्यार धन के लिए नहीं बिकता था. अजीजन के सुंदर मुख की मुस्कुराहट भरी चितवन युद्धरत सिपाहियों को प्रेरणा से भर देती थी. उनके मुख पर भृकुटी का तनाव युद्ध से भागकर आए हुए कायर सिपाहियों को पुन: रणक्षेत्र की ओर भेज देता था.’

No comments:

Post a Comment