
राबर्ट कर्ल का कहना है कि- भारत के लोगों ने अनजाने में ही, दो हजार साल पहले नैनोटेक्नोलाजी का प्रयोग कर खुद को ज्यादा आधुनिक साबित कर दिया है. टीपू सुल्तान की तलवार और अजंता की गुफाओं में की गई चित्रकारी में, जिस दमिश्क फलक [ब्लेड] का इस्तेमाल इस बात के प्रमाण हैं कि- दोनों में नैनोटेक्नोलाजी का प्रयोग हुआ है.
उन्होंने बताया कि- बेहतरीन हथियार बनाने तथा पत्थरों की कटाई के लिए ब्लेड बनाने के लिए, लोहे के टुकड़े को लाल कर के पीटा जाता था फिर उसको मोड़कर दोबारा गर्म किया जाता था. उसको फिर दोहरा करके हथौड़े से पीटा जाता था. इस प्रकार उस तलबार मे लोहे की हजारों नैनो परत बन जाती थी. टीपू की तलवार भी इसी तकनीक से बनी थी.
आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के लिए, भारतीय वैध्य सदियों से 'धातुओं की भष्म" बनाते आये हैं, यह चिकित्सा विज्ञान में "नैनो" तकनीक के उपयोग, का उत्कृष्ट उदाहरण है. इसके अलाबा, भारतीय दर्शन शास्त्र में जिस तरह से "आत्मा" और "परमात्मा" का बिश्लेषण किया गया हैं, वह तो नैनो तकनीक से भी बहुत आगे कि चीज है.

उल्लेखनीय है कि - अमेरिकी वैज्ञानिक कर्ल को 1996 में रिचर्ड स्माइली और हैराल्ड क्रोटो के साथ संयुक्त रूप से रसायन शास्त्र का पुरस्कार दिया गया था. वे पिछले अनेकों बर्षों से भारतीय प्राचीन ग्रंथो का गहन अध्यन कर रहे हैं और सन 2011-12 में विशाखापत्तनम में आयोजित विज्ञान / वेदान्त कांग्रेस में चर्चा में भाग लेने के लिए भारत भी आये थे.
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