Friday, 21 April 2017

सारागढ़ी जंग

 "सारागढ़ी जंग" की बरसी (12 सितम्बर ) पर 10,000 पठानों को हराने वाले 21 वीरों को नमन
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हमारे देश में महान वीरों की इतनी सारी गाथाएँ हैं की उनपर अनेकों ग्रन्थ लिखे जा सकते है. मगर हमाई शिक्षा प्रणाली इतनी ज्यादा भेदभाव पूर्ण रही है की अधिकाँश सच्चे वीरों का जिक्र तक नहीं होता है. ऐसी ही एक दुर्लभ लड़ाई की दास्तान है "सरागढ़ी की लड़ाई" जिसमे मात्र 21 सिक्ख जवानो ने 10,000 पठानों / पश्तूनो को धूल चटाई थी.
"सरागढ़ी" पश्चिमोत्तर भाग में स्थित हिंदुकुश पर्वतमाला की श्रृंखला पर स्थित एक छोटा सा गाँव है. सितम्बर 1897 की बात है यहाँ की एक चौकी पर "36 सिख रेजीमेंट" तैनात थी. यह चौकी सामरिक रूप से महत्वपूर्ण "गुलिस्तान" और "लाकहार्ट" के किले के बीच में स्थित थी और इन दोनों किलों के बीच एक कम्यूनिकेशन नेटवर्क का काम करती थी.
12 सितम्बर की सुबह लगभग 15 हजार पश्तूनों / पठानों ने सारागढ़ी के किले को चारों और से घेर लिया. उस समय वहां केवल 21 सिक्ख सैनिक मौजूद थे. सिग्नल इंचार्ज ‘गुरुमुख सिंह’ ने ले. क. जॉन होफ्टन को हेलोग्राफ पर स्थिति का ब्योरा दिया, परन्तु जॉन होफ्टन ने कहा कि- किले तक तुरंत सहायता पहुँचाना काफी मुश्किल है किसी तरह उनको रोको.
सिक्ख जवानो ने किले के भीतर अलग अलग जगहों पर मोर्चा लगा लिया और हमलावर अफगानों पर सटीक निशाना लगाना शरू कर दिया. सिखों के हौंसले से, पठानों पश्तूनों के कैम्प में हडकंप मच गया. मोर्चा लगाकर सटीक निशाने लगाकर उन्होंने उन पठानों की लाशों के ढेर लगा दिए. अफगानों को लगा कि - किले में कोई बड़ी सेना मौजूद है.
पठानों ने किले की दीवार तोडंने की कोशिश की तो हवलदार इशर सिंह ने अपनी टोली के साथ “जो बोले सो निहाल,सत श्री अकाल” का नारा लगाया और दुश्मन पर झपट पड़े. उन्होंने हाथापाई मे ही 20 से अधिक पठानों को मौत के घात उतार दिया. सारी दिन यह लड़ाई चलती रही. इस युद्ध में 21 सिक्ख जवानो ने 10,000 पठानों को रोके रखा.
इस भीषण लड़ाई में 1400 के लगभग अफगान सैनिक मारे गए तथा किले की रक्षा करने वाले सभी 21 सिक्ख सैनिक भी शहीद हो गए. उन अफगानों के मन में इतना भय बैठ गया था कि -किले से गोली चलना बंद होने के बाद भी उनकी हिम्मत किले में घुसने की नहीं हुई. सुबह तक किले की रक्षा के लिए दुसरी सेना पहुँच गई जिसे देखकर पठान भाग खड़े हुए.
जब ये खबर यूरोप पंहुची तो ब्रिटेन की संसद ने खड़े होकर, इन 21 वीरों की बहादुरी को सलाम किया. इन सभी 21 वीरों को मरणोपरांत "इंडियन आर्डर ऑफ़ मेरिट" दिया गया, जो आज के परमवीर चक्र के बराबर था. इस लड़ाई को दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाइयों में स्थान मिला है मगर अफसोश की बात है कि - भारत में इसका कोई जिक्र नहीं होता है.

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